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संघर्ष से फलक तक का सफर तय कर बने आर्दश



LGBTQ Pride Month: हां मैं एक किन्नर हूं , इस बात को कहने में मुझे कोई संकोच और शर्म नहीं है. मैं ईश्वर का बनाया हुआ एक वरदान हूं. मेरा भी वजूद हैं मैं भी एक इंसान हूं. ये कहना है हमारे राज्य के ट्रांस जेंडर समुदाय का. इन दिनों समुदाय का प्राइड मंथ यानी कि गौरव माह चल रहा है. हर साल पूरे दुनिया में जून के महीने को समुदाय का गौरव माह के रूप में मनाया जाता है. 28 जून को गौरव दिवस मनाया जाता है. इस उत्सव में आमतौर पर गर्व समुदाय को लेकर परेड, कार्यशालाएं, संगोष्ठियां जैसे आयोजन होते हैं. यह समय एलजीबीटीक्यू समुदाय के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए भी होता है. जिसमें उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, उनके सिद्धांत और विचारधाराएं, नागरिक के रूप में उनके अधिकार, समाज में समान रूप से स्वीकार किये जाने की उनकी इच्छा आदि शामिल हैं.

इसी कड़ी में झारखंड में भी प्राइड मंथ का आयोजन समुदाय की ओर से किया गया. जिसमें झारखंड के एलजीबीटीक्यू समुदाय की सैंकडों सदस्य अपने इंद्रधनुषी रंग के झंडे को लेकर एकजुट हुये. लोेगों को संदेश दिया कि इस समुदाय का भी एक वजूद है, वो भी समाज का एक हिस्सा है. समाज उन्हें अपनाये ना कि ठुकराये. रोटी कपड़ा और मकान हम सबकी जरूरत है. जिसे लेकर इस जून माह में राजधानी रांची में 15 जून को गौरव मार्च निकाला गया वहीं जमशेदपुर में 23 जून को प्राइड मार्च काआयोजन किया गया. झारखंड में सबसे पहले प्राइड मार्च की शुरुआत जमशेदपुर से 2018 में हुई. वहीं रांची में यह गौरव ध्वज एक दिसंबर 2019 को निकाली गयी. बेशक आज भी ट्रांस जेंडर समुदाय समाज के हाशिये पर है, पर इनकी संघर्ष भरी कहानी प्रेरणा दायक है, विपरीत परिस्थितियों में भी बेहतर काम कर रही हैं केवल अपने समुदाय हीं नही पूरे समाज के लिये आदर्श है.

इतिहास

एलजीबीटीक्यू प्राइड मंथ 1969 में मैनहट्टन, यूएसए में स्टोनवॉल विद्रोह के सम्मान में मनाया जाता है. इसके बाद 1995 में इस महीने को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एलजीबीटी महीने के रूप में शामिल किया गया.

इंद्रधनुषी झंडा समुदाय के सामाजिक आंदोलनों का प्रतीक

इंद्रधनुषी झंडा या गौरव ध्वज एलजीबीटी गौरव और एलजीबीटी सामाजिक आंदोलनों का प्रतीक है. रंग इस समुदाय की विविधता और मानव कामुकता और लिंग के स्पेक्ट्रम को दर्शाते हैं. समुदाय गौरव के प्रतीक के रूप में इंद्रधनुषी झंडे का उपयोग सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया में शुरू हुआ, लेकिन अंततः दुनिया भर में उनके अधिकारों के आयोजनों में आम हो गया.

आईये सुनते हैं इनकी कहानी इन्ही की जुबानी

पिंकी किन्नर: रांची

रांची की पुरानी रांची निवासी पिंकी किन्नर बचपन से हीं अपने समुदाय के लोगों के साथ हैं. उन्हें पता भी नहीं कि उनके मां बाप कौन हैं. लेकिन अपने मां बाप को देखने के लिये आज भी उनकी आंखे तरस रही हैं. पता चला कि मुझे बिहार और नेपाल के बॉर्डर से लाया गया. कहती हैं बचपन से ही मेरी मां मेरे पिता मेरा सब कुछ मेरी गुरु मां नरगिस किन्नर ही हैं. अपने समुदाय के साथ खुश हूं. पर समुदाय के लिये कुछ करना चाहती हूं. रांची में 200-300 किन्नरों के साथ रह रहें हैं. ये गौरव माह हैं इस गौरव माह में मैं चाहती हूं कि कम से कम सरकार हमारे लिये आवास का प्रबंध करें. हर राज्य हर जिले में आवास की सुविधा हैं. पर रांची में किन्नर समुदाय के लिये कोई सुविधा कुछ नहीं. हम आज भी बधाई के लिये निकलते हैं. पर सरकार हम युवा किन्नरों को रोजगार दे दे तो हमें बधाई के लिये मजबूर नहीं होना होगा.

किन्नर रोजी माई : जमशेदपुर

परिजनों से अब जुड़ाव है. पहले परिवार से अलग थीं. पर अब परिजनों ने अपना लिया. दसवीं तक पढ़ाई भी की. बधाई पर तो जाती ही हैं. पर एक समाज सेविका भी हैं. मानव अधिकार क्राइम ब्रांच की प्रसिडेंट भी रह चूकी हैं. किन्नरों के साथ साथ आम जनों के हक अधिकार और उनके सहयोग के लिये काम कर रही हैं. कहती हैं हम जन्म से बांझ हैं पर कर्म से नही हैं. सबकी मां हूं. हम किन्नर हैं हम किसी से कम नही हैं. आप हमें समझें. हम भी किसी मां के कोख से जन्म लिया है. हमें कचड़ा ना समझे. केवल गौरव माह में ही नहीं हमेशा हमें सम्मान दें.

नैना किन्नर : टाटा नगर

परिवार से अलग भाड़े के घर में रह रही हैं. एक घर की जरूरत है. बचपन मे ही मां बाप गुजर गये. चार बेटे के बाद हुई. कहती हैं मैं जुड़वा बच्चों में से एक थी. बड़े होने पर मुझे पता चला कि मैं औरों से अलग हूं. बाद में मेरे हरकतें दिख कर मैं खुद परिवार को मैनें अपने किन्नर होने का बताया. बाहर माप पीट भी हुई मेरे साथ. पर अपनी जिंदगी खुद संवारी. दुनिया के ताने सुने पर रहम पर जीने से अच्छा खुद की पहचान बनाने की ठानी. सरकार रोजगार दे बधाई की जरूरत नहीं पड़ेगी. लेकिन सरकार हमें घर बैठे काम दे दे तो हमे दुनियां के ताने ननही सुनने पड़ेगा.

अमरजीत शेरगिल : रामगढ़

अमजीत को जब उनके परिवार को मेरे किन्नर होने का पता चला तो उन्हें घर से बेघर कर दिया गया. पढ़ नही पाईं. पर जब नौकरी मिली तो परिजनों ने उन्हें अपना लिया. टाटा स्टील में नौकरी मिली. अंबुलेंस ऑरेटर का काम किया. पर अमजीत को अपने समुदाय के लिये कुछ करना था. अपने समुदाय के लिये अपनी नौकरी छोड़ दी. किन्नरों के लिये काम कर रहें हैं. किन्नरों के हक के लिये उत्तथान नामक संस्था चला रही हैं.समुदाय के हक और अधिकार के लिये सालों से जंग लड़ रही हैं. रांची जमशेदपुर में प्राइड की नेतृत्व किया. सरकार से किन्नरों के हक के लिये आवाज बुलंद की है. कहती हैं हम भी समाज का अंग है. परिवार हमें स्वीकार नी करता कम से कम समाज हमें अपनायें. हमारा भी वजूद है.

विविधताओं को को साथ लेकर आगे बढ़ने का समय

अब हम 2024 मे हें. ये समय है संक्रीर्णता से उपर उठने का . जीतने भी विविधतायें हैं हमारे मानव समाज में अब उन विविधताओं को को साथ लेकर आगे बढ़ने का समय है. ये विविधतायें प्राकृितक और स्वाभाविक है. लेकिन समाज और हमारी सोच अलग अलग विभाग कर दिया है. समुदाय भी समाज के मुख्य धारा के हिस्सा है. उन्हें समझने और जानने की जरूरत है. अब अपनी सोच बदल कर सबके साथ चलने की आवश्यकता है. समुदाय के साथ आप जुड़ते हैं तो आप एक बेहतर इंसान बनते हैं आप उनके संघर्षों से बहुत कुछ सीखते हैं. आज की युवा पीढ़ी को चाहिए कि विभाजित दुनिया बनाने की कोशिश को नाकामयाब करें और आगे बढ़े. अल्पना डांगे : कंसलटेंट रिर्सच डायरेक्टर हमसफर ट्रस्ट