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Jitendra Kumar :अब तक की जर्नी का श्रेय मेहनत से ज्यादा किस्मत को दूंगा


jitendra kumar :अभिनेता जितेंद्र कुमार इन दिनों जी 5 की फिल्म ‘भागवत चैप्टर 1: राक्षस’ में अपने नेगेटिव अवतार के लिए वाहवाही बटोर रहे हैं. इस फिल्म और अपने करियर को लेकर उन्होंने कई दिलचस्प बातें उर्मिला कोरी से साझा कीं.

आपकी लोकप्रिय इमेज से आप कुछ अलग करते नजर आ रहे हैं, इसलिए भागवत को ‘हां’कहना आसान था?

मेरा किरदार नेगेटिव है, इसलिए मैंने फिल्म को हां नहीं किया था, बल्कि मुझे पूरी कहानी बेहद पसंद आयी थी. मुझे जब स्क्रिप्ट सुनाई गयी थी तो वह मुझे पहली बार में ही अपील कर गयी क्योंकिमुझे कहानी काफी एंगेजिंग लगी थी. निश्चित तौर पर मैंने ऐसा किरदार पहले कभी नहीं किया था. उसको लेकर भी उत्साहित था, लेकिन मुख्य वजह फिल्म की कहानी ही थी.

इस किरदार ने आपके सामने किस प्रकार की चुनौती पेश की?

सच कहूं तो मेरे पास जितने भी किरदार आते हैं, वह मेरे लिए एलियन होते हैं. उनके साथ चैलेंजेस भी होते हैं. मेरे लिए पंचायत का किरदार भी उतना ही मुश्किल ही था, जितना कि यह किरदार. सभी को लगता है कि पंचायत का किरदार करना मेरे लिए आसान रहा होगा तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है. उस किरदार को परफॉर्म करते हुए भी अपनी चुनौतियां होती हैं.ऐसे में मैं अपने निर्देशकों के विजन व स्क्रिप्ट को ध्यान में रखकर अपने किरदार को परफॉर्म करता हूं.

यह फिल्म साइनाइड मोहन की कहानी से प्रेरित है. क्या आप उस घटना से परिचित थे?

हां, जब वह खबर अखबार में आयी थी. उस वक्त ही मैंने उसे पढ़ी थी कि बेंगलुरु में ऐसा कोई सीरियल किलर था, जिसने कई महिलाओं को अपना शिकार बनाया था . मगर इस फिल्म के लिए मुझे वह केस फिर से रिकॉल करने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि निर्देशक ने मुझे कहा कि मुझे इसकी जरूरत नहीं है.मैंने निर्देशक से इस बारे में पूछा था तो उन्होंने कहा कि तुमको उस केस के पूरे इतिहास में जाने की जरूरत नहीं है,तुम बस स्क्रिप्ट पढ़ो

विजय वर्मा अभिनीत वेब सीरीज दहाड़ भी इसी पर थी?

हां मैंने इस बारे में सुना है,लेकिन अपने बिजी शेड्यूल की वजह से मैंने वह सीरीज नहीं देखी.जिससे विजय वर्मा का परफॉरमेंस भी नहीं देख पाया, पर निर्देशक ने मुझे बताया कि इस फिल्म में कई बातें उस सीरीज से बहुत अलहदा और रियल हैं. साइनाइड मोहन ने अपना केस खुद अदालत में लड़ा था. इस पहलू को किसी भी फिल्म या सीरीज में अब तक नहीं दिखाया गया है,लेकिन हमारी फिल्म में इसे प्रमुखता से दिखाया गया है.

अब तक की जर्नी में टाइपकास्ट होने का डर नहीं लगा?

मैं खुद को लकी कहूंगा कि मुझे ज्यादातर निर्देशक अलग-अलग तरह का किरदार देते हैं. वह मुझे टाइपकास्ट नहीं करते हैं. मैं भले ही पंचायत का तीसरा सीजन करूं या चौथा, लेकिन सिचुएशन किरदार और उसके एक्सप्रेशन को अलग बना देते हैं. मेरे जो आने वाले प्रोजेक्ट्स हैं, उनमें भी मैं काफी अलग अंदाज में दिखूंगा. मैं इसे अपनी मेहनत नहीं, किस्मत कहूंगा जो मुझे ऐसे मौके मिल रहे हैं.

क्या आप काम के लिए निर्माता निर्देशकों को अप्रोच करते हैं ?

हां ,जिन लोगों के काम को मैं पसंद करता हूं। उन्हें अप्रोच भी करता हूं लेकिन फ़ोन पर नहीं बल्कि कोई इवेंट या किसी जगह पर जब उन लोगों से मिलता हूं तो उनसे बात कर अपनी ख्वाहिश जाहिर कर देता हूं कि मैं काम करना चाहता हूं.

ओटीटी के आप स्टार हैं. क्या थिएटर रिलीज फिल्मों को मिस करते हैं?

मेरी कोशिश अच्छा काम करने की होती है. माध्यम मेरे लिए मायने नहीं रखता है. एक्टर्स के तौर पर हमें हर माध्यम में काम करना चाहिए, तभी जो भेद बनाने वाली लाइन्स हैं वह कमजोर होंगी.

इन दिनों आठ घंटे की शिफ्ट की मांग हो रही है. बतौर एक एक्टर आपका क्या कहना है?

मुझे लगता है कि अगर किसी एक्टर को आठ घंटे काम करना है, तो वह अपनी बात रख सकता है. इसमें कोई बुराई नहीं है