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जैन श्रद्धालुओं ने पर्युषण पर्व के अंतिम दिन की क्षमा याचना


प्रतिनिधि, बिंदापाथर. बिंदापाथर व सालकुंडा गांव स्थित जैन मंदिर में आयोजित आठ दिवसीय पर्युषण पर्व बुधवार को सम्पन्न हुआ. समापन के दिन को संवत्सरी कहा जाता है. जैन धर्म का यह सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. पूरे आठ दिनों तक चले पर्युषण पर्व के समापन पर संवत्सरी आती है, जिसे आत्मशुद्धि, आत्ममंथन और क्षमायाचना का दिन माना जाता है. संवत्सरी का मूल संदेश है “क्षमा वीरस्य भूषणम् ” अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण है. इस दिन जैन समाज के लोग उपवास, तप, ध्यान और स्वाध्याय करते हैं. एक-दूसरे से और सभी प्राणियों से हुई भूल-चूक के लिए हृदय से क्षमा मांगते हैं. मौके पर समाजसेवी राजेंद्र सराक ने कहा कि संवत्सरी केवल धार्मिक महत्व का पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक सौहार्द और भाईचारे का संदेश भी देता है. क्षमा मांगने और क्षमा करने से ही रिश्ते मजबूत होते हैं और समाज में शांति कायम रहती है. संवत्सरी के अवसर पर जैन धर्मावलंबी “मिच्छामि दुक्कड़म् ” कहकर अपने परिवार, मित्रों और समाज से विनम्रतापूर्वक क्षमा याचना करते हैं. इसका अर्थ है “यदि मुझसे व्यवहार में, वाणी में या मन से कोई भूल हुई हो तो कृपया उसे क्षमा करें. वहीं मंदिरों और उपाश्रयों में आज विशेष पूजा-अर्चना और प्रवचन का आयोजन हुआ. कई लोगों ने पूरे दिन का उपवास रखा और साधु-साध्वियों से ज्ञान का लाभ लिया. मौके पर असीत माजी, रंजीत माजी, बिजन माजी, बालिका मंडल स्वीटी माजी, शिल्पी माजी, रूबी माजी, इला माजी, बिनापानी माजी, चानया माजी, चंपा माजी, मंजू माझी, नंदलाल माजी, कौशिक माजी, वरुण माजी, तपन माझी, राज माजी आदि ने बताया कि संवत्सरी हमें यह सीख देती है कि जीवन में क्रोध, द्वेष और अहंकार को छोड़कर क्षमा, करुणा और सद्भावना का भाव अपनाना चाहिए. यह पर्व केवल धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है, जो रिश्तों में मधुरता और समाज में एकता का संदेश देता है.

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