sheena chohan :कई रीजनल फिल्मों का हिस्सा रहीं अभिनेत्री शीना चौहान बीते दिनों हिंदी फिल्मों में अपनी शुरुआत संत तुकाराम फिल्म से की है. वह इस शुरुआत के लिए बहुत आभारी हैं क्योंकि भारतीय कल्चर को समर्पित फिल्म से उन्होंने हिंदी में अपनी शुरुआत की.अपनी जर्नी और भविष्य से जुड़ी अपनी तैयारियों पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत
मेरी मां अभिनेत्री बनना चाहती थी
अभिनेत्री बनना मेरी मां का सपना था लेकिन सरदार फैमिली से होने की वजह से उन्हें रजामंदी नहीं मिली थी तो उन्होंने अपने सपने को मेरी जरिये पूरा किया. एक्टिंग डांस से लेकर मार्शल आर्ट्स सबकुछ मुझे सिखाया. मैं उनके साथ साथ अपने सपने को जी रही हूं. जर्नी आसान नहीं रही है. आउटसाइडर के लिए चुनौतियां बढ़ जाती है लेकिन मैं कम्प्लेन करने में नहीं बल्कि सॉलूशन ढूंढने में यकीं रखती हूं. मेरा अप्रोच जिंदगी और अपने काम को लेकर बहुत पॉजिटिव है. अपने क्राफ्ट पर काम करते रहने से देर सवेर काम मिल ही जाता है.
हिंदी से पहले कई रीजनल फिल्में कर चुकी हूं
संत तुकाराम मुझे अभी भी लोगों की तारीफें मिल रही हैं ,फिल्म से लोगों को पहली बार मेरा परफॉरमेंस ओरिएंटेड काम देखने को मिला। लोगों ने कहा भी पहली ही फिल्म में मैंने बहुत ही अच्छे से अपने क्राफ्ट को पकड़ा है. वैसे यह मेरी पहली हिंदी फिल्म है, लेकिन एक्टिंग से मेरा जुड़ाव बहुत पुराना है. पांच साल अरविंद गौर जी के साथ दिल्ली में थिएटर किया है. खुद को बहुत घिसा है.यह मेरी पहली हिंदी फिल्म है लेकिन मैंने दूसरी भाषाओं में कुलमिलाकर दस फिल्में हो चुकी हैं.जिसमें बांग्ला और साउथ के अलावा एक हॉलीवुड की भी फिल्म है. मैंने मलयालम सुपरस्टार ममूटी के साथ काम किया है. बुद्धदेव दासगुप्ता की दो फिल्में की हैं. बांग्लादेश के लेजेंड्री निर्देशक मुस्तफा फारुकी के साथ भी काम किया है. सभी से बहुत कुछ सीखने को मिला है.वैसे मैं अभी भी एक्टिंग क्लासेज मैं हफ्ते में एक बार करती ही हूँ ताकि किरदारों में मैं आसानी से जा पाऊं.
अवली के किरदार के बहुत मेहनत की
फिल्म संत तुकराम में मैं उनकी पत्नी अवली जीजाबाई की भूमिका में नजर आयी थी. उस रोल के लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी. सबसे पहले तो उनके ऊपर जो भी नावेल लिखी गयी थी. मैंने उसे पढ़ने की कोशिश की.उनके ऊपर दो फिल्में पहले भी बन चुकी हैं. राधिका आप्टे और गौरी जी इस भूमिका को पहले निभाया है. ये फिल्में मराठी में थी तो मैंने उनको भी देखा। हमने फिल्म की शूटिंग महाराष्ट्र के गांव में की थी तो मैंने गांव की औरतों की बॉडी लैंग्वेज को भी समझने की कोशिश की.मैं पंजाब में पैदा हुई हूं और कोलकाता में पली बढ़ी हूँ तो गांव के माहौल से परिचय नहीं था तो इससे मदद मिली .इस फिल्म के मेरे को एक्टर सुबोध भावे जी को बायोपिक किंग कहा जाता है. उन्होंने और निर्देशन ने भी मुझे बहुत गाइड किया.
निजी जिंदगी में आध्यात्मिक
मैं निजी जिंदगी में धार्मिक से ज्यादा खुद को आध्यात्मिक करार दूंगी. वैसे संत तुकाराम का मैसेज भी बहुत सशक्त है। फिल्म अपने आप में विश्वास की सीख देती है. भेद भाव मत करो. संत तुकाराम छोटी जाति के ही थे. उन्होंने ही औरतों को भी भक्ति से जोड़ा. मैं अभिनेत्री होने के साथ -साथ सामाजिक कार्यों से भी जुड़ी रहती हूं. ह्यूमन राइट्स की अम्बेस्डर हूं तो कहीं ना कहीं इस फिल्म से मैं उस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है.
रिजेक्शन इंडस्ट्री का हिस्सा
हमारी इंडस्ट्री में कोई भी चीज परफेक्ट नहीं है. हर चीज में आपको टू सुनने को मिलेगा. आप टू टॉल हैं तो कहीं टू स्माल.मैंने अपने लिए भी कई बार ये बात सुनी है कि आप इस किरदार के लिए टू प्रीटी हैं लेकिन मैं इन सबको सुनकर डिमोटिवेट नहीं होती हूं. मैं इस बात को जानती हूं कि रिजेक्शन इंडस्ट्री का हिस्सा है,अपने क्राफ्ट पर काम कर खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करती रहती हूं.
आनेवाले प्रोजेक्ट्स
हंसल मेहता एक प्रोजेक्ट्स है. एक हिंदी वेब सीरीज भी कर रही हूं। साउथ की एक फिल्म में भी नजर आउंगी.