Film Bihaan: मीठापुर के रहने वाले निर्देशक धीरज कुमार (Film Director Dheeraj Kumar) का सफर आम नहीं रहा. एक समय नीट क्वालिफाइ कर चुके धीरज डॉक्टर बनने निकले थे, लेकिन स्टेशन पर पैसों की चोरी ने जिंदगी ने स्क्रिप्ट ही बदल दी. उन्होंने तय किया कि अब वही करेंगे, जो दिल कहे और वहीं से शुरू हुई उनकी फिल्मी यात्रा. जिसके बाद फिल्मों में धीरज की शुरुआत साल 2002 में हुई थी जब वे छोटी-बड़ी फिल्मों और सीरियल्स के निर्देशन में सक्रिय रहे.
फिल्म आशिकी के प्रसिद्ध अभिनेता के साथ मिलकर उन्होंने फिल्म एलान से अपनी मुख्य निर्देशन यात्रा शुरू की. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पटना के विभिन्न लोकेशनों पर ‘बिहान’ की शूटिंग पूरी की है, जो एक पत्रकार और ट्रैफिकिंग की शिकार लड़की की सच्ची कहानी को पर्दे पर उतारती है. अपने फिल्मी करियर प्रभात खबर के साथ विशेष बातचीत की. पेश है प्रमुख अंश.

प्रश्न: आपने नीट क्वालिफाइ करने के बाद फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में आने का निर्णय क्यों लिया?
– बचपन से ही फिल्मों से लगाव रहा है. मां भी सिनेमा की शौकीन थीं, तो वह साथ में सिनेमा देखने ले जाती थीं. घर में भी कैसेट लगाकर फिल्में देखता था. लेकिन हमारा परिवेश ऐसा है कि सिविल सर्विस, इंजीनियरिंग, मेडिकल आदि क्षेत्रों में करियर बनाने पर जोर दिया जाता है. मैं बीडीएस के लिए कॉलेज में एडमिशन लेने जा रहा था, लेकिन जंक्शन पर पैसे चोरी हो गए. उसके बाद तय किया कि अब वही करूंगा जो पसंद है.
प्रश्न: आपके शुरुआती दिनों और इस मुकाम तक पहुंचने के सफर के बारे में कुछ बताएं.
– बिहार में सिर्फ भोजपुरी इंडस्ट्री थी, हिंदी सिनेमा का नाम भी नहीं था. घर का माहौल सामान्य था, परिवार का कोई भी सदस्य इस क्षेत्र से जुड़ा नहीं था. इस वजह से थोड़ी मुश्किलें आईं, लेकिन जब अपने सपनों के रास्ते पर चलते हैं, तो रास्ता खुद बनता चला जाता है. दिल्ली जाकर निर्देशन सीखा और दूरदर्शन व टीवी शो से करियर की शुरुआत की.
प्रश्न: आपकी फिल्मों में अक्सर ग्रामीण जीवन और स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता मिलती है. इन विषयों को कहानियों का आधार क्यों बनाते हैं?
– बचपन से ही इन्हें देखते आए हैं, इसलिए जेहन में वही रहता है. अभी मेरी लव स्टोरी पर आधारित फिल्म सुस्वागतम खुशामदीद रिलीज होने वाली है, जिसमें पुलकित सम्राट और इसाबेल कैफ मुख्य भूमिका में हैं. हालांकि उसमें भी स्थानीय मुद्दा ही है. मुझे लगता है कि सिनेमा समाज का आइना है, जो कहीं खो गया है. उसी को उजागर करने की कोशिश रहती है.
प्रश्न: अपने शहर में शूटिंग करने का अनुभव कैसा रहा? बिहार में फिल्म निर्माण की क्या संभावनाएं हैं?
– लगातार 38 से 40 दिन तक शूटिंग की. अपने शहर में फिल्म शूट करना बेहद आनंददायक अनुभव रहा. हम सोचते थे कि कभी बिहार में शूट करेंगे. वह सपना पूरा हुआ. सरकार ने भी इसमें सहयोग किया. बाहर से आए कलाकारों का नजरिया भी यहां आकर काफी बदला. आगे भी यहां आकर काम करना चाहेंगे. बिहार में न तो लोकेशन की कमी है, न ही संसाधनों की. केवल लोगों को प्रोफेशनल बनाना होगा. समय की रफ्तार को समझने में थोड़ा वक्त लगेगा. बहुत जल्द यहां फिल्म निर्माण का अनुकूल वातावरण बन जाएगा.
प्रश्न: कहानियों में वास्तविकता और संवेदनशीलता को कैसे संतुलित करते हैं?
– हर एक कहानी कहीं न कहीं से जन्म लेती है. अगर कहानी सच्ची है, तो उसमें थोड़ा इमोशन और अन्य तत्व अपने आप आ जाते हैं. जब दोनों का संतुलन बन जाता है, तो बाकी सबकुछ स्वतः हो जाता है.
प्रश्न: भविष्य की योजनाओं के बारे में कुछ बताएं. बिहार को लेकर क्या प्लान है?
– अभी सुस्वागतम खुशामदीद रिलीज होने वाली है. इसका गाना बन पिया रिलीज हो चुका है. बिहान को दुर्गा पूजा के समय रिलीज करने की तैयारी है. इसके अलावा दो-तीन बड़ी बजट की फिल्मों पर भी काम चल रहा है. कोशिश रहेगी कि उन्हें भी बिहार में शूट किया जाए. कुछ ए-प्लस कैटेगरी के एक्टर्स से बातचीत चल रही है, जिन्हें बिहार लाने की तैयारी की जा रही है.