Metro In Dino movie Review :रिश्तों की कम्प्लेक्सिटी को सिम्प्लिसिटी से समझाती इस फिल्म में दिल जीतते हैं पंकज त्रिपाठी
फिल्म- मेट्रो इन दिनों
निर्माता – टी सीरीज
निर्देशक -अनुराग बसु
कलाकार -पंकज त्रिपाठी,कोंकणा सेन शर्मा,आदित्य रॉय कपूर, सारा अली खान,अली फजल,फातिमा सना शेख,अनुपम खेर ,नीना गुप्ता,शाश्वत और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग – तीन
metro in dino movie review :इनदिनों स्पिरिचुअल सीक्वल सिनेमा में चर्चित शब्द है.तारे जमीन पर का स्पिरिचुअल सीक्वल सितारे जमीन पर था.जिसकी चर्चा अभी थमी भी नहीं थी कि 2007 में रिलीज हुई फिल्म लाइफ इन मेट्रो के स्पिरिचुअल सीक्वल फिल्म मेट्रो इन दिनों ने सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है.स्पिरिचुअल सीक्वल की परिभाषा की बात करें तो जो फिल्म पिछली फिल्म के साथ थीम, आईडिया या फिल्म की मेकिंग स्टाइल तो साझा करती हो, लेकिन पिछली फिल्म की कहानी और किरदारों को आगे नहीं बढ़ाती है. मेट्रो इन दिनों की बात करें इसमें कहानी और किरदार अलग है लेकिन मूल कांसेप्ट स्त्री और पुरुष के रिश्तों से जुड़े उलझनों की ही है. इसके साथ ही कलाकारों का अभिनय, निर्देशन, म्यूजिक, संवाद सब मिलकर एक बार फिर से दिल को छू जाते हैं . जिससे यह फिल्म अपने लव्ड वन के साथ देखनी बनती है.
ये है कहानी
कहानी की बात करें तो मुख्य रूप से चार जोड़ों की कहानी है.मोंटी (पंकज त्रिपाठी)और काजोल (कोंकणा सेनशर्मा )की लव मैरिज को 15 साल से ऊपर हो गए हैं. मैरिज तो बची हुई है लेकिन उसमें से लव गायब हो गया है. लव की तलाश मोंटी को डेटिंग ऐप तक पहुंचा देती है,लेकिन काजोल को मालूम पड़ जाता है और शादी मुश्किल में पड़ जाती है. काजोल की मां (नीना गुप्ता )भी अपनी शादी में खुश नहीं है क्योंकि शादी के लिए एडजस्टमेंट के नाम पर उसने अपने अस्तित्व को ही खत्म कर दिया है.उसकी अपनी कोई पहचान नहीं है.उसके सारे फैसले पति (शाश्वत चटर्जी )लेता है. काजोल की छोटी बहन चुमकी (सारा अली खान )अपनी जिंदगी में फैसले तो खुद से लेती है लेकिन कन्फ्यूज है.करियर को लेकर कन्फ्यूज रहने वाली चुमकी की लव लाइफ में भी उस वक़्त कन्फ्यूजन आ जाता है,जब बॉयफ्रेंड के होते हुए एक मस्तमौला इंसान पार्थ (आदित्य रॉय कपूर )उससे जुड़ता है. पार्थ से जुड़े उसके दोस्त श्रुति शुक्ला (फातिमा सना शेख ) और आकाश (अली फज़ल )की शादी में भी उलझनें हैं.आकाश शादी की जिम्मेदारियों के बोझ तले अपने सिंगर बनने के अपने सपने को मारना नहीं चाहता है इसलिए वह अपनी पत्नी श्रुति को बच्चा अबो्र्ट करने को कहता है.इन कपल्स की कहानी के साथ -साथ काजोल की मां के कॉलेज फ्रेंड परिमल (अनुपम खेर ) , उसकी बहू और काजोल की बेटी की कहानी भी है. क्या रिश्तों की उलझनें रिश्ते को तोड़ देगी या आखिर में प्यार तमाम उलझनों का हल ढूंढ ही लेगा. इसके लिए आपको थिएटर की ओर रुख करना पड़ेगा.
फिल्म की खूबियां और खामियां
अनुराग बसु की 2007 की फिल्म लाइफ इन ए मेट्रो मुंबई में प्यार और अस्तित्व को बनाये रखने के संघर्ष और जद्दोजहद की कहानी थी.18 साल बाद इस स्पिरिचुअल सीक्वल में प्यार ,इश्क़ और मोहब्बत के रिश्तों की उलझने फिर कहानी का आधार हैं. अलग -अलग एज ग्रुप के रिश्तों में कहीं बेवफाई ,कहीं गलतफहमियां, कहीं अकेलापन हैं तो कहीं खुद की पहचान की तलाश है. मौजूदा डिजिटल युग में बदलते रिश्तों और प्यार की परिभाषा काफी बदल गयी हैं.आज रिश्ते बहुत जटिल हो गए हैं और लोग भी,लेकिन यह फिल्म उन जटिलताओं में नहीं जाती है. जिससे कइयों को शिकायत भी हो सकती है, लेकिन यह फिल्म अपनी सादगी के कारण आपके दिल को छू जाएगी।इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है. फिल्म रिश्तों की उलझनों को सामने लाने के साथ -साथ रिलेशनशिप एडवाइज देना भी नहीं भूलती है कि एक ही इंसान से आपको बार -बार प्यार में पड़ना पड़ेगा, इसके लिए आपको बार -बार एफर्ट्स भी लेने पड़ेंगे. फिल्म में सबकुछ परफेक्ट है. ऐसा भी नहीं है. सेकेंड हाफ में कहानी कमजोर पड़ती है लेकिन क्लाइमेक्स से पहले और क्लाइमेक्स में फिल्म संभलती है. फिल्म में अली और फातिमा वाली कहानी पर थोड़ा और काम करने की ज़रूरत थी.फिल्म में रिश्तों को बचाने के लिए चीटिंग को नजरअंदाज करते हुए रिश्ते को मौका देना.प्यार सबकुछ है.कैरियर ,सपने, सेल्फ रिस्पेक्ट ये सब बाद में,यह सीख कई मौकों पर सही नहीं लगती है.पिछली बार कहानी मुंबई पर पूरी तरह से आधारित थी. इस बार मुंबई के साथ -साथ दिल्ली, पुणे ,बंगलौर और कोलकाता को भी कहानी में जोड़ा गया है लेकिन परदे पर सिर्फ कोलकाता और मुंबई का ही रंग दिखता है.फिल्म का म्यूजिकल ट्रीटमेंट जग्गा जासूस की याद दिलाता है. हालाँकि म्यूजिक इस बार भी सीधे दिल में उतर गया है.इस फिल्म का असली हीरो इसका म्यूजिक है. यह कहना गलत ना होगा. पिछली मेट्रो की तरह इस मेट्रो में भी प्रीतम अपने बैंड के साथ दिखते हैं. इसके लिए इस्तेमाल किये गए वीएफएक्स को थोड़ा और अच्छा होना था. फिल्म का गीत संगीत ही नहीं इसके संवाद भी दिल में उतर जाते हैं.बाकी के पहलू फिल्म के साथ न्याय कर करते हैं.
पंकज त्रिपाठी और कोंकणा बाजी मार ले जाते हैं
यह मल्टीस्टारर फिल्म है.कई सितारे इस फिल्म का हिस्सा हैं. मेट्रो इन दिनों में पंकज त्रिपाठी का नाम जुड़ने के साथ ही यह चर्चा शुरू हो गयी थी कि क्या वह दिवंगत अभिनेता इरफान खान की जगह ले पाएंगे. इस फिल्म में उनके अभिनय को देखकर यह बात कही जा सकती है. मेट्रो के इस स्पिरिचुअल सीक्वल में वह अपनी खास जगह बना गए हैं. पर्दे पर उनकी लाइफ पार्टनर बनी कोंकणा उन्हें अपने अभिनय से कॉम्पलिमेंट करती हैं. दोनों का अभिनय कहानी में कॉमेडी के साथ -साथ दर्द को भी बखूबी जोड़ता है. नीना गुप्ता और अनुपम खेर फिल्म में अलग रंग भरते हैं. फातिमा सना शेख की भी तारीफ बनती है. अली फजल ,सारा और आदित्य भी अपनी मौजूदगी से फिल्म को मजबूती देते हैं. बाकी के कलाकारों का भी काम अच्छा बन पड़ा है.