फ़िल्म – स्टोलेन
निर्माता – किरण राव, विक्रमादित्य मोटवाने, अनुराग कश्यप और निखिल आडवाणी
निर्देशक- करण तेजपाल
कलाकार -अभिषेक बनर्जी ,शुभम वरदान,मिया मैलजर और अन्य
प्लेटफार्म – अमेजॉन प्राइम वीडियो
रेटिंग – तीन
stolen movie review :फिल्म की शुरुआत में ही इसे सच्ची घटना पर आधारित बताया गया है और उसके बाद की स्लाइड में उन अवार्ड्स का जिक्र है, जो इस फिल्म ने अलग -अलग प्रतिष्ठित फिल्म फेस्टिवल्स में अपने नाम किये हैं. जिससे फिल्म को लेकर उत्सुकता के साथ -साथ उम्मीदें भी बढ़ जाती हैं और यह फिल्म उम्मीदों पर खरी उतरती है. यह क्राइम थ्रिलर फिल्म आपको इमोशनल करने के साथ -साथ बिना किसी भाषणबाजी के सन्देश भी दे जाती है कि इंटरनेट मीडिया पर जंगल में आग की तरह फैलने वाली ख़बरों के दुष्परिणाम क्या हो सकते हैं.जिस वजह से यह फिल्म ज़रूर देखी जानी चाहिए
सर्वाइवल ड्रामा वाली है कहानी
फिल्म की कहानी की बात करें तो यह मात्र डेढ़ घंटे की फिल्म है इसलिए फिल्म शुरू होने के साथ ही मुद्दे पर आ जाती है. गौतम (अभिषेक बनर्जी )अपनी मां की शादी की तैयारियों के बीच अपने छोटे भाई रमन (शुभम वरदान को लेने के लिए स्टेशन आया हुआ है क्योंकि उसके भाई की फ्लाइट मिस हो गयी है. इससे पहले उसका भाई प्लेटफार्म से बाहर निकलकर अपने भाई से मिल पाता था.अचानक प्लेटफार्म पर सो रही महिला झुंपा (मिया )की तीन महीने की बेटी गायब हो जाती है और वह इल्जाम रमन पर लगाती है, लेकिन रमन उसे बताता है कि उसने एक दूसरी महिला को एक बच्चे के साथ भागते देखा है. पुलिस भी आ पहुंची हैं.रमन पुलिस पर बच्ची को ढूंढने का दबाव डालता है तो पुलिस उसे भी मामले में घसीट लेती है कि वह मुख्य गवाह है तो वह फिलहाल अपने घर नहीं जा सकता है बल्कि उसे पुलिस के साथ जाना होगा.रमन भी झुम्पा की मदद के लिए पुलिस के साथ जाने को राजी हो जाता है, क्योंकि उसे सिस्टम का पता है कि गरीब की मदद कोई नहीं करता है. शुरूआती पूछताछ में मालूम पड़ता है कि शहर की एक शापित हवेली के खंडहर , जहां जाना तो दूर लोग उसका नाम लेने से भी कतराते हैं.उसमें झुम्पा की बच्ची को चुराने वाली महिला छिपी है.रमन सोचता है कि वह पुलिस के साथ जाकर उस महिला की शिनाख्त कर बच्ची को वापस ले आएगा.इन सब में ना चाहते गौतम को भी हिस्सा बनना पड़ता है. रमन उसे समझाता है कि बस कुछ घंटे की बात है लेकिन यह बात जितनी बोलने में सिंपल थी. उतनी होती नहीं है. कहानी का ट्विस्ट एक वायरल वीडियो है.जिसमें इन तीनों को बच्चा चोरी करने वाला गैंग बताया जा रहा है.जिससे ये तीनों तो अंजान है लेकिन पूरे शहर को यह मालूम पड़ चुका है. झुंपा की मदद के लिए निकले ये दोनों भाइयों की जान आफत में आ जाती है और झुंपा की बच्ची का क्या हुआ. ये सब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी
फिल्म की खूबियां और खामियां
डेढ़ घंटे की कहानी वाली यह फिल्म सिंपल है लेकिन जिस तरह से कहानी का ट्रीटमेंट है. यह आपको शुरुआत से आखिर तक बांधे रखता है.हर गुजरते वक़्त के साथ सस्पेंस बढ़ता जाता है.आप जानना चाहते कि आगे क्या होगा. झुंपा पर भी शक की सुई जाती है.इंटरनेट मीडिया पर जंगल में आग की तरह फैलने वाली ख़बरों के दुष्परिणाम को बखूबी दिखाया गया है.किस तरह से ऐसी ख़बरों से प्रभावित भीड़ कई बार रक्षकों को भक्षक समझ लेती है. फिल्म का ट्रीटमेंट एकदम रॉ है. भीड़ जिस तरह से कार का पीछा करती है. वह कुछ सेकेंड्स के लिए रोंगटे खड़े कर देता है. फिल्म समाज में अमीर गरीब के भेद को भी सामने लेकर कई सीन के ज़रिये आती है.फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है तो कैमरा वर्क कमाल का है.संवाद कहानी और किरदारों के अनुरूप हैं. खामियों की बात करें तो फ़िल्म की लंबाई को थोड़ा बढ़ाया जा सकता था . दोनों भाई घर नहीं पहुंचे थे . ऐसे में उनकी फैमिली ने उनकी कोई खोज खबर क्यों नहीं ली . मां की शादी हो रही है.इस खास पहलू को दोनों भाइयों के बातचीत के ज़रिये ही सही लेकिन उसपर और बात होनी थी. इसके साथ ही रमन का फैमिली से नाराजगी को थोड़ा डिटेल में दिखाने की जरूरत लगती है . फिल्म की अधिकतर शूटिंग नाईट में हुई है. यह विषय की ज़रूरत थी ,लेकिन इस दौरान आपको स्क्रीन पर बहुत फोकस करना पड़ता है.
मंझे हुए कलाकारों का मिला है साथ
इस फिल्म में कलाकारों के अभिनय को देखते हुए यह बात कही जा सकती है कि मंझे हुए कलाकारों का साथ इस फिल्म को मिला है. अभिषेक बनर्जी ने अपने किरदार में अपनी छाप छोड़ी है. उन्होंने अपने किरदार के अलग अलग शेड्स को बखूबी जिया है. शुभम वरदान भी अपनी भूमिका में जंचे हैं. झुंपा की भूमिका में मिया ने बहुत दमदार तरीके से निभाया है.वह पूरी तरह से अपने किरदार में रची बसी हैं. बाकी के कलाकारों ने भी अपने -अपने किरदार के साथ न्याय किया है.