फिल्म -ठग लाइफ
निर्माता – कमल हासन और मणिरत्नम
निर्देशक -मणिरत्नम
कलाकार -कमल हासन,एसटीआर, तृषा, नासर,जोजू जॉर्ज, अभिरामि, संजय मांजरेकर,अली फज़ल,राजश्री देशपांडे, सान्या मल्होत्रा और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग -दो
thug life movie review :ठग लाइफ की घोषणा के साथ ही यह फिल्म सुर्ख़ियों में आ गयी थी क्योंकि इस फिल्म में सिनेमा के दो लेजेंड्स 38 साल बाद साथ में काम करने जा रहे थे. ठग लाइफ से निर्देशक मणिरत्नम और अभिनेता कमल हासन कल्ट क्लासिक फिल्म नायकन के बाद साथ आ रहे थे इसलिए उम्मीदें बहुत ज्यादा थी, लेकिन कमजोर लेखन ने ना सिर्फ उम्मीदों पर पानी फेर दिया है बल्कि यह जानकारी निराशा को बढाती है कि फिल्म के लेखन से मणिरत्नम और कमल हासन दोनों ही जुड़े हुए हैं. इस तरह की कमजोर और प्रेडिक्टेबल कहानी को वह इतने सालों बाद अपनी साथ की फिल्म का आधार कैसे बना सकते हैं.जिसने सिनेमा के इन जादूगरों के जादू को परदे पर पूरी तरह से बेअसर कर दिया है
बदले की है कहानी
फिल्म की कहानी 1994 से 2016 तक के पीरियड में चलती है. शुरुआत में दिखाया जाता है कि रंगराया शक्तिवेल (कमल हासन )और उसके बड़े भाई मणिक्कम (नासिर )गैंगस्टर्स हैं.उनसे सुलह के लिए एक दूसरा गैंगस्टर सदानंद (महेश मांजरेकर )उनसे मिलने उनके घर परआया है. शक्तिवेल को उस पर यकीन नहीं है और होता भी वही है.वह इन दोनों भाइयों की मुखबरी पुलिस से कर चुका है. पुलिस और शक्तिवेल के बीच मुठभेड़ में वहां मौजूद एक अखबार बांटने वाला मारा जाता है. सिर्फ यही नहीं उसके दो बच्चे भी वहां मची अफरातफरी में अलग हो जाते हैं. एक बच्चे (सिम्बू ) को शक्तिवेल अपने साथ पुलिस से बचने के लिए अपनी ढाल बनाकर ले आता है ,लेकिन उससे वादा करता है कि एक दिन वह उसकी बिछड़ी हुई बहन चंद्रा से मिलवाएगा। सिर्फ यही नहीं वह उस बच्चे को पालन पोषण करते हुए अपने अपराध के सिंडिकेट का मुखिया भी बना देता है ,लेकिन पावर का नशा और कुछ गलतफहमियां इस खास रिश्ते पर हावी हो जाती हैं और शक्तिवेल और अमर एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं. इस बदले की कहानी में रिश्ता जीत पाता है या नफरत. चंद्रा से अमर मिल पायेगा.यही आगे की कहानी है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
पैन इंडिया वाली इस फिल्म को शुरुआत से ही नायकन से जोड़ा जा रहा था. कमल हासन ही नहीं बल्कि किरदार का नाम भी शक्तिवेल है. सिर्फ यही नहीं यहां भी वह गैंगस्टर है और परिवार भी है लेकिन कहानी धारदार नहीं है बल्कि बहुत कमजोर रह गयी है. जिसने फिल्म को कमजोर बना दिया है.फिल्म शुरुआत से आखिर तक पूरी तरह से प्रेडिक्टेबल है. रिश्तों की कहानी होते हुए किरदारों में गहराई नहीं आ पायी है. फर्स्ट हाफ तक फिल्म फिर भी ठीक थी, लेकिन सेकेंड हाफ में शक्तिवेल के किरदार का मौत के मुँह से बाहर आकर बदला लेना दर्शक के तौर पर आपको उससे जोड़ नहीं पाता है.कमल हासन के किरदार को लार्जर देन लाइफ दिखाने में गोली लगने के बाद भी किरदार का अकेले मौत से लड़ते दिखाना अखरता है.बौद्ध भिक्षु पहले ही उसकी मदद कर सकते थे.इसके साथ ही सेकेंड हाफ में कमल हासन का लुक और बॉडी लैंग्वेज इंडियन 2 से मेल खाता है. अमर का किरदार भी अधपका रह गया है. उसका मोहरे की तरह इस्तेमाल हुआ है या वह गद्दार था या फिर शक्तिवेल के शक ने उसे बदला.कहानी कुछ भी ठोस वजह सामने नहीं रख पाती है,जोजू जॉर्ज का किरदार शुरुआत में शक्तिवेल के खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुनता था.अचानक से उसमें बदलाव आ गया. अगर अमर के मुखिया बनने से उसे दिक्कत थी तो वह अमर को क्यों सपोर्ट कर रहा था. कहानी ही नहीं बल्कि लॉजिक में भी खामियां रह गयी है, दिल्ली के लाल किला और इंडिया गेट पर जमकर गोलियां बरसाई जा रही हैं लेकिन पुलिस कहीं नहीं दिखती है. उसके बाद भी पुलिस आती भी है ,तो शक्तिवेल से ही मदद मांगती है. गोवा और दिल्ली की दूरी को मुंबई की कांदिवली से बोरीवली जाने जैसा दर्शाया गया है.महेश मांजरेकर का किरदार पॉलिटिक्स में होते हुए इन गैंगस्टर्स के आगे कमजोर पड़ता जाता है. इन गैंगस्टर्स भाइयों की ताकत क्या थी. उनका क्या कारोबार था. इस पर फिल्म में एक लाइन भी चर्चा नहीं हुई है.दूसरे पहलुओं की बात करें तो फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और प्रोडक्शन इसका मजबूत पक्ष है. फिल्म का एक्शन भी अच्छा बन पड़ा है. संवाद औसत रह गए हैं. संवाद में दादी और नानी वाला हेर फेर अखरता है.
कलाकार हैं दमदार
कमल हासन उन चुनिंदा अभिनेताओं में से हैं. जो कमजोर कहानी और स्क्रीनप्ले में भी अपने सशक्त अभिनय की छाप छोड़ सकते हैं. यह एक बार फिर उन्होंने इस फिल्म में दर्शाया गया है.फर्स्ट हाफ तक उन्होंने अपने अभिनय से अपने किरदार की उम्र के तीन अलग -अलग पड़ाव को बखूबी जिया है. सेकेंड हाफ में मामला थोड़ा उन्नीस जरूर रह गया है.उनका लुक और एक्शन इंडियन २ की याद दिलाता है. एसटीआर के अभिनय की भी तारीफ बनती है. तृषा और अभिरामि का अभिनय प्रभावित करता है. अली फजल और महेश मांजरेकर ने अपने सीमित स्पेस में अच्छा काम किया है. राजश्री देशपांडे को फिल्म में करने को कुछ खास नहीं था. सान्या मल्होत्रा सिर्फ जिंगुचा गीत में नज़र आयी हैं. बाकी के किरदारों ने भी अपनी -अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.