Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 30 वर्षीय महिला को 22 हफ्तों की प्रेग्नेंसी को खत्म करने का आदेश दिया है. हालांकि, ऐसा हर महिला के साथ संभव नहीं है. इसके अलावा, भारतीय कानून के मुताबित, 22 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को खत्म करने के लिए भी कोर्ट की मंजूरी चाहिए होती है. ऐसे में क्यों महिला को बिना किसी मौजूदा कारणों के बाद गर्भपात की मंजूरी दी गई? चलिए जानते हैं पूरी बात.
किस मामले में सुनाया यह फैसला?
दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट मे एक 30 वर्षीय महिला के केस की सुनवाई चल रही थी. महिला अपने बॉयफ्रेंड के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रही थी. उस दौरान वह दो बार प्रेग्नेंट हुई थी. पहली बार भी उसे अपने पार्टनर द्वारा बहलाये जाने के बाद गर्भनिरोधक गोलियों से अबॉर्शन किया. मगर दूसरी बार जब वह फिर गर्भवती हुई तो अब लंबे समय की प्रेग्नेंसी थी. हालांकि, महिला ने पहले ही बच्चे को गिराने से इंकार किया था लेकिन पार्टनर ने उसे जबरदस्ती मेडिकल अबॉर्शन करने के लिए कहा.
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस की टिपण्णी
पार्टनर की बात न मानने पर उसके साथ मारपीट की गई और प्रताड़ित किया गया. इसके बाद महिला ने FIR कर केस दर्ज करवाया था. इस पर दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस रविंद्र डुडेजा ने स्पष्ट कहा है कि गर्भावस्था को जारी रखना पीड़िता की तकलीफों को बढ़ाना होगा. दरअसल, महिला को शादी का झूठा वादा किया गया था. मगर अब ऐसा नहीं होगा तो गर्भावस्था को जारी रखना युवती के लिए कठिन हो सकता है.
किस संदर्भ में दिया गया फैसला?
जस्टिस ने यह फैसला महिला को और कष्ट न पहुंचाने और सामाजिक कलंक से बचाने के लिए सुनाया था. पीड़ित महिला को पहले से ही आरोपी मित्र से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था और कोर्ट भी उसकी मनोस्थिति को नहीं समझेगा तो उसके लिए मुश्किल आ सकती है. कोर्ट ने महिला को एम्स में गर्भपात करवाने की अनुमति दे दी है.