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समाजवाद-धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्दों से BJP ने किया किनारा, RSS से अलग रुख के क्या मायने है?


RSS Demand Debate on These Words: संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्दों पर आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले की बहस की मांग से बीजेपी किनारा करती नजर आ रही है। वहीं आरएसएस इस मुद्दे पर दत्तात्रेय होसबोले के राष्ट्रीय बहस की मांग पर अब भी कायम है। बीजेपी के इस मुद्दे पर कन्नी काटने का कारण एक तरफ जहां चुनावी नुकसान की आशंका है, तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के अपने ही संविधान के प्रस्तावना में समाजवाद और पंथ निरपेक्ष जैसे शब्दों का उल्लेख होना भी है।

संघ ने एक बार फिर अपने सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले द्वारा उठाए गए मुद्दों पर बहस की मांग की है। आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने दत्तात्रेय होसबोले के बयान के समर्थन में कहा कि दत्तात्रेय होसबोले ने जो टिप्पणी की है, वह स्पष्ट है और उस पर चर्चा होनी चाहिए।

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संघ प्रचार प्रमुख ने ये बयान बीजेपी द्वारा सोशलिस्ट और सेकुलर मुद्दे पर आनाकानी के सवाल पर दिया। 25 जून को आपातकाल के मुद्दे पर आयोजित कार्यक्रम में आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान संविधान के मूल प्रस्तावना में छेड़छाड़ कर इंदिरा गांधी ने सेकुलर और सोशलिस्ट शब्द जोड़े थे, जिनको रखने पर अब फिर से बहस होनी चाहिए।

क्या है दत्तात्रेय होसबोले की मांग?

दूसरी तरफ आपातकाल के दौरान संविधान में जोड़े गए शब्द सोशलिस्ट और सेकुलर को प्रस्तावना में बनाए रखने पर पुनर्विचार को लेकर संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के बयान को लेकर बीजेपी फूंक फूंककर कदम रख रही है।बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी के बड़े नेताओं और राष्ट्रीय मंचो से इस बयान को डाउनप्ले किया जा रहा है। बीजेपी इस बहस से दूरी बनाकर एक तरफ विपक्षी दलों द्वारा संविधान से छेड़छाड़ के नरेटिव की काट करना चाहती है तो वहीं दूसरी तरफ एक मूल वजह ये भी है बीजेपी के अपने ही संविधान के धारा 2 में पार्टी के उद्देश्य विषय पर पंथ निरपेक्ष और समाजवाद शब्द का वर्णन है। इस मुद्दे पर पार्टी ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि वो संविधान को पवित्रता पर विश्वास रखती है लेकिन कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसने रातोंरात संविधान में बदलाव कर किए थे।

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क्या बोले सुधांशु त्रिवेदी?

दरअसल 1980 में बीजेपी की स्थापना के समय जब पार्टी ने अपना संविधान बनाया, उस वक्त ही इन दोनों शब्दों को लेकर लंबी वैचारिक चिंतन किया गया। तत्कालीन बीजेपी के दिग्गज नेताओं और पार्टी के नीति नियंताओं ने संघ के अधिकारियों के साथ एक लंबी बहस के बाद जो अपना संविधान बनाया, उसमें स्पष्ट लिखा है कि पार्टी विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान तथा समाजवाद, पंथ निरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखेगी तथा भारत की प्रभुसत्ता, एकता और अखण्डता को कायम रखेगी।

बीजेपी ने अपने संविधान की धारा 4 में पार्टी की निष्ठाएं गिनाई हैं जिसमें गांधीवादी समाजवाद और सकारात्मक पंथ निरपेक्षता और सर्वधर्मसम्भाव की बात लिखकर सोशलिस्ट और सेकुलर की अपनी परिभाषा देने की कोशिश की है।

बीजेपी ने अपने संविधान की धारा 4 में पार्टी की निष्ठाओं की व्याख्या करते हुए लिखा कि राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय एकात्मता, लोकतंत्र, ‘सामाजिक-आर्थिक विषयों पर गांधीवादी दृष्टिकोण, जिससे शोषणमुक्त एवं समतायुक्त समाज की स्थापना हो सके, ‘सकारात्मक पंथ निरपेक्षता अर्थात् सर्वधर्मसमभाव, मूल्यों पर आधारित राजनीति और आर्थिक और राजनीतिक विकेंद्रीकरण में पार्टी विश्वास करती है।

कांग्रेस की इमरजेंसी पर फोकस

संघ के बयान के फौरन बाद से ही बीजेपी बचाव की मुद्रा में आ गई है। शीर्ष नेताओं ने चुप्पी साध ली, बाकी नेताओं ने फोकस कांग्रेस की इमरजेंसी पर शिफ्ट कर दिया। अब बीजेपी ने सभी नेताओं और प्रवक्ताओं को सोशलिस्ट और सेकुलर वाली बहस में बयान देने से बचने को कहा है क्योंकि एक तरफ जहां बिहार विधानसभा चुनाव सर पर है जहां विपक्ष बाबा साहब आंबेडकर के संविधान से छेड़छाड़ को मुद्दा बनाकर दलित वोटरों को लुभाने की कोशिश कर सकता है, तो दूसरी तरफ बीजेपी ने अपने ही संविधान में गांधीवादी समाजवाद और पंथ निरपेक्षता के प्रति निष्ठा व्यक्त की है जिसको लेकर उसे जवाब देना भारी पड़ सकता है।