दहेज के बढ़ते चलन के कारण सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि दहेज पीड़िता द्वारा पति के रिश्तेदारों पर आरोप लगातार बढ़ रहा है और उसने एक महिला के सास-ससुर के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला खारिज कर दिया। हालांकि कोर्ट ने इस मामले में पाया है कि अपीलकर्ताओं द्वारा किसी भी प्रकार की फिजिकल यातना दिए जाने का आरोप गायब है।
आरोप सिर्फ उच्च पद और ताना मारने का लगाया
स्टेटमेंट में कहा गया है कि आरोप सिर्फ ताना मारने और वे उच्च पद पर हैं। इसमें उनका राजनीतिक प्रभाव है और मंत्रियों से संबंध भी है। इसलिए उन्होंने आरोपी पति से लेकर आरोपी पति के माता-पिता को वास्तविक शिकायतकर्ता पर अतिरिक्त दहेज लाने के लिए दबाव बनाने के लिए उकसाया गया।
दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत
आदेश में कहा गया है कि दहेज पीड़िता द्वारा पति के रिश्तेदारों को दोषी ठहराने की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए, कोर्ट ने IPC की धारा 498A और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत अपराध के लिए पति के रिश्तेदारों को शामिल करने की प्रथा की निंदा जताई है। इस निर्णयों का हवाला देते हुए बेंच के जस्टिस ने कहा कि उसने दहेज संबंधी मामलों में पति के रिश्तेदारों को शामिल करने की प्रथा को दोहराया है।
2014 में हुई थी शादी
बता दें कि इस पूरे मामले में शिकायतकर्ता और उसके पति का विवाह 2014 में गुंटूर, आंध्र प्रदेश में हुआ था। शादी के 5 महीने बाद ही महिला अपने पति को छोड़कर अपने माता-पिता के साथ रहने लगी थी। वह दोबारा से अपने ससुराल चली गई लेकिन फिर अपने माता-पिता के पास वापल आ गई।
पति ने पत्नी के घर पर नोटिस भेजा
पत्नी के वापस चले जाने के बाद पति ने उसे कानूनी तौर पर नोटिस भेजा और उसके बाद 2015 में वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की।
इस कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, उन्होंने 2016 में पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। हालांकि इस मामले का समझौता हो गया और पति ने मामला वापस ले लिया है। इसके बाद वह अपने पति या ससुराल के सदस्यों को सूचित किए बिना ही अमेरिका चली गई। इसकी वजह से विवाद जारी रहा। पति ने 21 जून, 2016 को विवाह के लिए याचिका दायर की और जवाबी कार्रवाई में उसने वर्तमान अपीलकर्ताओं सहित 6 आरोपियों के खिलाफ फिर से पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
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Apr 24, 2025 09:15
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News24 हिंदी