अडाणी पावर ने टोरेंट और JSW से कम टैरिफ देकर पाया 2400 मेगावाट की भागलपुर परियोजना का टेंडर, बदलेगी बिहार की किस्मत
दशकों में पहली बार, राज्य में गंभीर निजी निवेश की लहर देखी जा रही है. आधी सदी से भी ज्यादा समय से बिहार भारत की औद्योगिक कहानी के हाशिये पर रहा है अपनी जनसांख्यिकीय मजबूती और रणनीतिक स्थिति के बावजूद, राज्य निजी निवेश आकर्षित करने या एक स्थायी औद्योगिक आधार बनाने के लिए संघर्ष करता रहा है.
आंकड़े एक गंभीर सच्चाई बयां करते हैं. बिहार का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) मुश्किल से 776 डॉलर है, जबकि इसकी प्रति व्यक्ति बिजली खपत 317 किलोवाट घंटे (kWh) है,जो प्रमुख भारतीय राज्यों में सबसे कम है.
बिहार सरकार ने राज्य की बिजली की मांग को पूरा करने के लिए भागलपुर परियोजना के लिए एक खुली निविदा जारी की थी, जिसके 2034-35 तक दोगुना होकर 17,000 मेगावाट से अधिक होने का अनुमान है.
बोली प्रक्रिया की प्रत्यक्ष जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि चार योग्य बोलीदाताओं ने निविदा में भाग लिया, जिसमें अडाणी पावर ने सबसे कम बिजली दर 6.075 रुपये प्रति किलोवाट घंटा (या प्रति यूनिट) बताई.
अडाणी पावर 6.075 रुपये प्रति किलोवाट घंटा की दर के साथ सबसे कम बोली लगाने वाली (L1) कंपनी के रूप में उभरी, जिसमें 4.165 रुपये का स्थिर शुल्क और 1.91 रुपये प्रति यूनिट का ईंधन शुल्क शामिल था.
राज्य सरकार ने इस दर को “अत्यधिक प्रतिस्पर्धी” बताया और कहा कि मध्य प्रदेश में हाल ही में इसी तरह की बोलियों में उच्च स्थिर शुल्क लगाए गए थे.
टोरेंट पावर 6.145 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली की पेशकश करने वाली दूसरी सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी थी, जबकि ललितपुर पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड ने 6.165 रुपये और जेएसडब्ल्यू एनर्जी ने 6.205 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली की पेशकश की.
सूत्रों ने बताया कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए ई-बोली प्रक्रिया मानक सरकारी प्रक्रियाओं के तहत आयोजित की गई थी. उन्होंने कहा कि सभी बोलियों का मूल्यांकन ई-बोली प्रक्रिया का उपयोग करके किया गया, जिससे पूर्ण पारदर्शिता और समान अवसर सुनिश्चित हुआ.
बिजली परियोजना में अडाणी द्वारा लगभग 30,000 करोड़ रुपये के निवेश की योजना से औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है.
इस परियोजना के आवंटन ने बिहार में राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है, जहां नई सरकार के चुनाव के लिए चुनावी सरगर्मियां च ल रही हैं. कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के बिजली खरीद में “घोटाले” के दावे को सत्तारूढ़ भाजपा पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किया है.
कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने शुक्रवार को एक्स पर एक पोस्ट में आरोप लगाया कि अडाणी समूह को बिहार में “लाल कालीन” मिल रहा है.
उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार में 6 रुपये प्रति यूनिट की बढ़ी हुई कीमत पर बिजली खरीदने का प्रस्ताव गरीब और मध्यम वर्ग के धन को मोदी के चहेतों की तिजोरियों में पूरी तरह से बहा ले जाने का एक और उदाहरण है.
हालांकि, सूत्रों ने कहा कि बोली के जरिए प्राप्त 6.075 रुपये प्रति किलोवाट घंटा का शुल्क अत्यधिक प्रतिस्पर्धी था, खासकर बिजली उत्पादन इनपुट की लागत में हालिया वृद्धि को देखते हुए. इसमें 4.165 रुपये का स्थिर शुल्क और 1.91 रुपये प्रति किलोवाट घंटा का ईंधन शुल्क शामिल है.
मध्य प्रदेश में हाल ही में 3,200 मेगावाट की बोली में 4.222 रुपये से 4.298 रुपये प्रति किलोवाट घंटा (भागलपुर परियोजना के लिए 4.165 रुपये के स्थिर शुल्क के मुकाबले) के उच्च स्थिर शुल्क पाए गए.
सूत्रों के अनुसार, बिहार का शुल्क तुलनीय परियोजनाओं के लिए सबसे कम है.
मूल रूप से बिहार राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड (बीएसपीजीसीएल) द्वारा 2012 में परिकल्पित इस परियोजना को डेवलपर्स को आकर्षित करने के कई असफल प्रयासों के बाद 2024 में फिर से शुरू किया गया था.
अधिकारियों ने बताया कि परियोजना के लिए एक दशक से भी पहले अधिग्रहित की गई जमीन पूरी तरह से राज्य के स्वामित्व में है और इसे बिहार औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन नीति 2025 के तहत मामूली किराए पर डेवलपर को पट्टे पर दिया गया है, जो सभी निवेशकों के लिए एक मानक प्रोत्साहन है. परियोजना की अवधि समाप्त होने के बाद जमीन सरकार को वापस कर दी जाएगी.
उन्होंने कहा कि अडानी पावर को कोई विशेष रियायत नहीं मिली है और वह बिहार को विश्वसनीय बिजली आपूर्ति के लिए संयंत्र के विकास और संचालन के लिए जिम्मेदार होगी.
इस परियोजना से क्षेत्र में औद्योगिक विकास और रोज़गार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.
पिछले 50 वर्षों में बिहार में निजी निवेश बहुत कम हुआ है और पिछले पांच साल में लगभग कोई नई बड़ी औद्योगिक परियोजनाएं नहीं लगी हैं, जबकि अन्य राज्यों में तेजी से औद्योगिक विकास हुआ है.
अपर्याप्त विद्युतीकरण और अविकसित बुनियादी ढांचे को अक्सर निजी कंपनियों द्वारा राज्य में उद्योग स्थापित करने में बाधा के रूप में उद्धृत किया जाता रहा है, जिससे रोजगार सृजन सीमित होता है और स्थानीय लोगों को रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
हाउसिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर विशेषज्ञ वी. सुरेश के अनुसार, इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश किए गए हर 1 करोड़ रुपये से अकुशल, अर्ध-कुशल और कुशल श्रमिकों सहित कम से कम 70 व्यवसायों में अनुमानित 200-250 मानव-वर्ष का रोजगार सृजित होता है.
इस गणना के आधार पर, बजट 2023 में पूंजीगत व्यय के लिए 10 लाख करोड़ रुपये के आवंटन से पर्याप्त रोजगार सृजित होने की उम्मीद है. विशेषज्ञों का कहना है कि अवसंरचना और भवन निर्माण अर्थव्यवस्था के अधिकांश अन्य क्षेत्रों के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं.
13.5 करोड़ की आबादी, भारत की कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत, उसके साथ, बिहार में कम वेतन वाली नौकरियों के लिए बड़े पैमाने पर श्रमिकों का दूसरे राज्यों में पलायन जारी है. इसके केवल 5.7 प्रतिशत कार्यबल विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं, जबकि लगभग आधे, यानी 49.6 प्रतिशत, आजीविका के लिए खेती, वानिकी और मछली पकड़ने पर निर्भर हैं.
उत्तर प्रदेश के साथ, बिहार देश के सबसे बड़े श्रम आपूर्तिकर्ताओं में से एक है, जो राष्ट्रीय कार्यबल में अनुमानित 3.4 करोड़ श्रमिकों का योगदान देता है.
विश्लेषकों का कहना है कि इस प्रवृत्ति को उलटने के लिए बुनियादी ढाँचे में नया निवेश महत्वपूर्ण है.
अडाणी समूह द्वारा 2,400 मेगावाट की भागलपुर (पीरपैंती) बिजली परियोजना में लगभग 30,000 करोड़ रुपये के निवेश की योजना से औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि बिजली पारेषण, सीमेंट (1,600 करोड़ रुपये के निवेश के साथ), रसद और हवाई अड्डा संचालन में समूह की मौजूदा उपस्थिति इसे राज्य में बड़े पैमाने पर विकास में योगदान देने की स्थिति में लाएगी.