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समुद्री जलवायु के पैटर्न से जुड़ा है डायरिया का प्रकोप, ऐसे बचाई जा सकती है हजारों बच्‍चों की जान

न्यूयॉर्क, पीटीआइ। दुनिया भर में छोटे बच्चों में जानलेवा डायरिया के मामलों में बढ़ोतरी महासागरों की जलवायु के पैटर्न से जुड़ी हो सकती है। एक अध्ययन के अनुसार, इस पैटर्न में बदलाव की यदि शुरुआत में ही चेतावनी दे दी जाए तो इस महामारी से बचने के लिए लोगों को तैयार किया जा सकता है। जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि कम और मध्यम आयु वाले देशों में पांच साल से छोटे बच्चों की मौत के लिए डायरिया दूसरा सबसे बड़ा कारक है। इन देशों में दो साल की उम्र से पहले ही लगभग 72 फीसद बच्चों की मौत हो जाती है।

पूरी दुनिया पर असर डालता है अल नीनो 

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा, ‘अल नीनो-सदर्न आस्किलेशन (ईएनएसओ) एक युग्मित महासागरीय वायुमंडली प्रणाली है जो विषुवतीय प्रशांत महासागर में फैली हुई है। उन्होंने कहा कि ईएनएसओ अल नीनो (गर्म सागर के तापमान) और ला नीना (ठंडे समुद्र के तापमान) के बीच तीन से सात साल के चक्र में फैलता है और दुनिया भर के स्थानीय मौसम के पैटर्न को प्रभावित करता है, जिसमें तापमान और वर्षा भी शामिल है।

बोत्सवाना में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में डायरिया के मामलों और ईएनएसओ के बीच संबंधों का विश्लेषण करते हुए वैज्ञानिकों ने पाया कि ला नीना बारिश के मौसम में ठंडे तापमान, तेज वर्षा और बाढ़ से जुड़ा हुआ है। उनके मूल्यांकन से पता चला है कि ला नीना की स्थिति चार से सात महीने पिछड़ गई है, जिसके कारण दिसंबर से फरवरी के बीच शुरुआती बारिश में डायरिया की घटनाओं में लगभग 30 फीसद की वृद्धि हुई है।