फिल्म -गुस्ताख़ इश्क़
निर्देशक -विभु पुरी
निर्माता -मनीष मल्होत्रा
कलाकार -नसीरुद्दीन शाह,विजय वर्मा,फातिमा सना शेख,शारिब हाश्मी और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग -तीन
gustaakh ishq movie review :विजय वर्मा और फातिमा सना शेख की फिल्म गुस्ताख़ इश्क़ ने आज सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है.इस फिल्म से पॉपुलर फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा ने फिल्म निर्माता के तौर पर अपनी नयी शुरुआत की है. उन्होंने अपने प्रोडक्शन की पहली फिल्म रोमांटिक जॉनर की चुनी है,लेकिन सैयारा या एक दीवाने की दीवानीयत जैसी नहीं बल्कि यह ओल्ड स्कूल वाला रोमांस है. फिल्म के शीर्षक में भी कुछ पहले जैसा शामिल है और यही बात इस फिल्म को खास बना गयी है.कुछ कमियां भी रह गयी लेकिन यह आउट ऑफ़ द बॉक्स लव स्टोरी फिल्म एक बार सभी को देखनी चाहिए.
रूहानी मोहब्बत वाली है
कहानी नवाबुद्दीन सैफुद्दीन रहमान (विजय वर्मा ) की की है. जिसकी दिल्ली में एक प्रिंटिंग प्रेस है. जो बंद होने के कगार पर है. उसका मानना है कि मशहूर शायर अजीज की शायरी की किताब अगर उसकी प्रिंटिंग प्रेस में छप गयी तो वह चल पड़ेगी और उसके मुफलिसी के दिन खत्म हो जाएंगे. इसी लालच में वह शायरी सीखने के बहाने अजीज (नसीरुद्दीन शाह )के पास पंजाब पहुंचता है.वैसे शायरी के जज्बात सीखते सीखते नवाबुद्दीन,अजीज की बेटी मन्नत (फातिमा सना शेख )पर दिल हार बैठता है. मन्नत को भी उससे इश्क़ हो जाता है. अब बस वह अजीज की शायरी प्रिंट करवाकर सबकुछ सही कर लेना चाहता है. लेकिन अजीज की जिद्द है कि शायरी शोहरत के लिए नहीं लिखी जानी चाहिए.वह चाहता है कि उसकी सारी शायरियां उसके साथ कब्र में ही दफन हो जाए. ऐसा वह क्यों सोचता है इसके पीछे एक बैक स्टोरी है.वैसे उस बैक स्टोरी में अजीज और नवाबुद्दीन के बीच भी एक गहरे कनेक्शन का जिक्र है. क्या है बैक स्टोरी. मन्नत और नवाबुद्दीन के इश्क़ क्या मुकम्मल होगा. शोहरत और पैसों के लिए क्या अजीज अपनी शायरी छपवाने को राजी होगा. फिल्म आगे इन्ही सवालों के जवाब देती है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
टाइमलेस रोमांस का जश्न मनाती यह फिल्म इश्क़ की कहानी तो कहती है लेकिन साथ ही एक इमोशनल कहानी भी है.जो परत दर परत खुलती रहती है.जिसमें दर्द ,अपराधबोध ,टूटे हुए दिल और रिश्ते की भी कहानी है. जो पूरी तरह से आपको बांधे रखती है.यह फिल्म फास्ट पेस दर्शकों के लिए नहीं है. यह फिल्म इत्मीनान से देखे जाने वाली है,तभी आप इससे जुड़ पाएंगे.इसके नॉस्टेलिजिया में खो जाएंगे. 90 के दशक की कहानी है. करण जौहर की फिल्म कुछ कुछ होता है के रेफ़्रेन्स से इसे स्थापित किया है.मोबाइल फ़ोन का नहीं टेलीफोन का ज़माना है,लेकिन मोहब्बत की बातें आँखों, इशारों,फूलों से और चाय की चुस्कियों से कही गयी हैं. जो इस फिल्म को असरदार बना गया है.खामियों की बात करें तो फिल्म शुरुआत में किरदारों को स्थापित करने में ज्यादा ही समय लेती है. कुछ सवालों के जवाब भी नहीं देती है कि 90 के दशक पर होने के बावजूद विजय वर्मा का किरदार अस्पताल क्यों नहीं भेजा जाता है. फिल्म के अहम किरदारों में इसकी सिनेमेटोग्राफी है. तंग गलियां, पुरानी हवेली, चाय की दुकान सबकुछ कहानी में किरदार सा दिखता है.कॉस्ट्यूम की भी तारीफ बनती है.कमरे के साथ लाइट्स संयोजन इस फिल्म को और गहराई देता है.फिल्म के गीतों से गुलज़ार का नाम जुड़ा है और संगीत से विशाल भारद्वाज का तो गीत संगीत में मैजिक का जुड़ना लाजमी है. यह गुस्ताख़ इश्क़ में भी नज़र आया. गाने दिल को सुकून देने के साथ साथ दिल को छू गए हैं.इस फिल्म के गीत संगीत में ही इसकी असल रूह बसती है.यह कहना गलत ना होगा.यह बात संवाद के लिए भी कही जायेगी. फिल्म संवाद में ऐसी शेरो शायरी शायद ही हाल फिलहाल की किसी फिल्म में सुनाई दी गयी हो.
कलाकारों ने भी किया है कमाल
फिल्म में उम्दा कलाकारों की टोली है.विजय वर्मा अपनी लोकप्रिय इमेज से बिलकुल अलग अंदाज में नज़र आये हैं. उन्होंने इस किरदार को पूरी तरह से खुद में रचा बसा लिया है.किरदार से जुड़ा इमोशन हो या इंटेंसिटी उन्होंने अपनी आंखों से लेकर अपने संवाद सभी में बखूबी जिया है. लीजेंडरी एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने अपनी मौजूदगी से फिल्म को गहराई दी है तो फातिमा सना शेख की सादगी आपका मन मोह लेती है. भूरे अटैची के किरदार में शारिब हाशमी फिल्म में अलग ही रंग भरते हैं.बाकी के किरदारों ने भी अपनी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है