America का खूनी इतिहास, जब झूठे मामले में हुआ 300 लोगों का नरसंहार, नागरिकों पर हुए हवाई हमले, Black Wall Street बर्बाद
America Tulsa Massacre: अमेरिका आज जितना समृद्ध, अधिकारों की बात करने वाला और आदर्श समाज का चैंपियन बनने का दावा करता है. हालांकि उसका इतिहास उतना ही भयावह है. दास प्रथा से लेकर मूल अमेरिकी लोगों का नरसंहार तक, यूएस इतिहास काले अध्यायों से भरा है. तमाम अपराधों में अमेरिका की एक घटना और है, जिसमें टुल्सा नरसंहार भी है. इसमें नस्लीय हिंसा, आर्थिक ईर्ष्या और संस्थागत असमानता का चरम दिखता है. यह दिखाता है कि कैसे अफवाहें, नस्लीय नफरत और सत्ता का दुरुपयोग समाज को विनाश की ओर ले जा सकते हैं. इस घटना की अंतिम सर्वाइवर (जीवित बचे) की मृत्यु हो गई, जिसके बाद यह घटना अब इतिहास में दर्ज हो गई, जिसका साक्ष्य केवल कहानियां हैं. लेकिन यह न्याय, समानता और इतिहास को ईमानदारी से स्वीकारने की आवश्यकता का गहरा स्मरण कराती रहेगी.
Black Wall Street और नस्लीय तनाव
टुल्सा नरसंहार को टुल्सा रेस मैसेकर या ग्रीनवुड नरसंहार भी कहा जाता है. यह 31 मई से 1 जून 1921 को ओक्लाहोमा के टुल्सा शहर में हुआ था. यह अमेरिका के इतिहास की सबसे भीषण नस्लीय हिंसा में से एक माना जाता है. इस घटना में सैकड़ों अफ्रीकी-अमेरिकियों की हत्या की गई, हजारों घर और व्यवसाय नष्ट हुए, और पूरी की पूरी ब्लैक कम्युनिटी- ग्रीनवुड, जिसे Black Wall Street भी कहा जाता था, पूरी तरह खाक में बदल गई.
20वीं सदी के शुरुआती वर्षों में ग्रीनवुड जिला आर्थिक रूप से समृद्ध अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय का केंद्र था. यहाँ काले उद्यमियों के बैंक, होटल, थिएटर, अस्पताल, अखबार और सैकड़ों दुकाने थीं. उस समय अमेरिका के दक्षिणी और मिडवेस्ट हिस्सों में नस्लीय तनाव बहुत गहरा था. कू क्लक्स क्लान जैसी श्वेत वर्चस्ववादी शक्तियाँ काफी सक्रिय थीं. इस माहौल में एक संपन्न ब्लैक समुदाय का उभार कई व्हाइट समूहों को खटकता था.
टुल्सा नरसंहार में घटना की शुरुआत
31 मई 1921 की सुबह एक आम सुबह थी. लेकिन अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों की जिंदगी में चिंगारी लगाने वाली साबित हुई. हुआ यह कि एक ब्लैक किशोर डिक रोलैंड पर एक श्वेत लिफ्ट ऑपरेटर सारा पेज से कथित रूप से छेड़छाड़ का आरोप लग गया. बाद में इसे दुर्घटनावश हुई घटना और बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया आरोप बताया गया. लेकिन अधिकांश श्वेत स्वामित्व वाले स्थानीय अखबारों ने इस मामले को भड़काया और सार्वजनिक रूप से अश्वेतों को फाँसी देने जैसी अपीलें तक प्रकाशित कीं. बाद में यह दावा झूठा साबित हुआ, लेकिन उस समय अफवाहों ने वातावरण को भड़का दिया.
रोलैंड को गिरफ्तार किया गया, मामले की सुनवाई होने लगी और बाहर तनाव बढ़ने लगा. श्वेत भीड़ अदालत के बाहर इकट्ठा हो गई, उसे फांसी देने की कोशिश की. वहीं हथियारबंद अश्वेत निवासी डिक रोलैंड की रक्षा के लिए पुलिस स्टेशन पहुंचा. वहीं टकराव शुरु हुआ और हिंसा फैल गई और गोलियाँ चलीं.
नरसंहार और विनाश
31 मई की रात से 1 जून तक, श्वेत भीड़ ने ग्रीनवुड जिला घेर लिया. सैकड़ों ब्लैक निवासियों को गोली मार दी गई. घरों और दुकानों में आग लगा दी गई. हवाई जहाजों से आग लगाने वाले पदार्थ गिराए गए. यह अमेरिकी धरती पर नागरिकों के खिलाफ पहला हवाई हमला माना जाता है. लगभग 35-40 ब्लॉक पूरी तरह नष्ट हो गए. आधिकारिक संख्या के अनुसार मृतकों की संख्या 36 बताई गई, लेकिन आधुनिक रिसर्च और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार संख्या 300 से अधिक हो सकती है. इनमें अधिकतर ग्रीनवुड इलाके के अश्वेत निवासी थे. करीब 1,200 घर और अश्वेतों के स्वामित्व वाले व्यवसाय जला दिए गए और लगभग 10,000 अश्वेत लोग बेघर हो गए. कई अश्वेतों को गिरफ्तार कर अस्थायी शिविरों में बंद कर दिया गया.
सरकार और पुलिस की भूमिका
कई ऐतिहासिक विश्लेषणों में कहा गया है कि पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने हिंसा रोकने के बजाय श्वेत भीड़ को मौन समर्थन दिया. कई ब्लैक लोगों को उल्टा गिरफ्तार किया गया, जबकि अपराधी भीड़ को खुली छूट मिली. अपनी संपत्ति और घर खो चुके काले परिवारों को सरकारी मदद भी लगभग नहीं मिली. इस घटना ने ग्रीनवुड की सफलता की कहानी और राज्य की अश्वेत समुदाय की आत्मविश्वास को चकनाचूर कर दिया. एक फलता फूलता समाज पूरी तरह से तबाह हो गया. हां! यहां यह बता देना जरूरी है कि डिक रोलैंड की मृत्यु इस घटना में नहीं हुई. वह पूरे समय जेल में ही था और नरसंहार के बाद वह आजाद हो गया और ग्रीनवुड छोड़कर चला गया और उस जगह कभी नहीं लौटा.
टुल्सा नरसंहार के कारण क्या थे?
टुल्सा नरसंहार कई वर्षों से जमा हो रहे श्वेत समुदाय के गुस्से, ग्रीनवुड की आर्थिक सफलता के प्रति जलन, और ओक्लाहोमा में गहरी नस्लीय दुश्मनी का परिणाम था. 1907 में जब ओक्लाहोमा अमेरिका का 46वाँ राज्य बना, तब वहाँ नस्लीय भेदभाव के कानून लागू थे. इससे वर्षों तक नस्लीय तनाव और श्वेत सतर्कता समूहों की हिंसा बढ़ी, जिसका मुख्य कारण अश्वेत समुदाय की बढ़ती आर्थिक प्रगति थी. इसी विषाक्त माहौल ने अंततः टुल्सा नरसंहार को जन्म दिया.
यह नरसंहार इस बात का प्रतीक है कि अमेरिका में श्वेत सत्ता संरचनाएँ और भीड़ अश्वेतों की उन्नति को रोकने के लिए किस हद तक जा सकती थीं. कई वर्षों तक राज्य की ओर से इस घटना के वास्तविक विवरण, नुकसान और मौतों को छिपाया गया. यह ऐतिहासिक उपेक्षा का भी उदाहरण है, क्योंकि कई सरकारों ने नरसंहार की पूरी और ईमानदार रिपोर्ट बनने नहीं दी.
दबाया गया इतिहास और आज की स्वीकृति
दशकों तक इस घटना को आधिकारिक इतिहास में छिपाया गया. जीवित बचे लोगों ने गवाही दी कि उन्हें चुप रहने के लिए धमकाया गया. 1990s के बाद इस घटना की फिर से जांच हुई, और 2021 में घटना के 100 वर्ष पूरे होने पर अमेरिकी सरकार और टुल्सा प्रशासन ने इसे आधिकारिक तौर पर नस्लीय नरसंहार माना. इस घटना के ज्यादातर चश्मदीद गवाहों की मृत्यु हो गई थी. लेकिन एक 111 साल की महिला सोमवार 24 नवंबर तक जीवित थीं. आखिरकार इस नश्वर शरीर पर से उनका नियंत्रण छूट गया और उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. वायोला फ्लेचर की मृत्यु ने 1921 के नरसंहार से जुड़ी एक जीवित कड़ी को समाप्त कर दिया है. आज के अमेरिका में जारी नस्लीय तनावों को देखते हुए यह समय है कि देश हिंसा और न्याय के मुद्दों पर नए सिरे से विचार करे.
वायोला फ्लेचर ने जिंदा रखी टुल्सा नरसंहार की यादें
1921 में टुल्सा नस्लीय नरसंहार के दौरान वायोला फ्लेचर सात साल की एक छोटी अश्वेत बच्ची थीं. नरसंहार की सबसे उम्रदराज जीवित बची गवाह फ्लेचर का सोमवार (24 नवंबर) को 111 वर्ष की आयु में निधन हो गया. अपनी यादों को साझा करते हुए फ्लेचर अक्सर बताती थीं कि 31 मई 1921 की सुबह वे कैसे अफरा-तफरी में जागीं थीं. चारों ओर हथियारबंद श्वेत पुरुष आगे बढ़ रहे थे, इमारतें जल रही थीं और ऊपर से हवाई जहाज बम गिरा रहे थे. जब गोलीबारी बढ़ी, तो उनका परिवार अपना घर और पूरी बस्ती जलते हुए छोड़कर भाग गया. परिवार बच तो गया, लेकिन जो खोया, वह कभी वापस नहीं मिला. दशकों तक वे शांत जीवन जीती रहीं. उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वेल्डर के रूप में काम किया और बाद में घरों में काम करने लगीं.
अचानक उठीं फ्लेचर और जला दी मशाल
उन्होंने काफी लंबे समय तक टुल्सा के बारे में बहुत अधिक बात नहीं की. लेकिन सन 2000 के आसपास फ्लेचर टुल्सा के बचे हुए लोगों की अग्रणी आवाज बन गईं. 107 वर्ष की उम्र में, उन्होंने 2021 में अमेरिकी कांग्रेस के सामने गवाही दी, जिसमें उन्होंने नरसंहार के लिए न्याय और मुआवजे की मांग की. उन्होंने भय, विनाश और जीवनभर चले नुकसान का वर्णन किया. उन्होंने नागरिक अधिकार समूहों से मुलाकात की, मेमोरियल्स में हिस्सा लिया और नेताओं को नस्लीय हिंसा की विरासत का सामना करने की चुनौती दी.
आज फिर उसी मुहाने पर खड़ा है अमेरिका
उन्होंने अपनी कहानी और टुल्सा की स्मृति को संरक्षित करने के लिए “डोंट लेट देम बरी माय स्टोरी” नाम से एक संस्मरण लिखा और मुआवजे की मांग वाली एक मुकदमे में भी शामिल हुईं. यह मामला अदालत में खारिज हो गया, लेकिन फ्लेचर की सक्रियता ने अमेरिका के इतिहास के इस दबे हुए अध्याय को राष्ट्रीय स्तर पर फिर से उजागर कर दिया. उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में नस्लीय न्याय और नागरिक अधिकारों की वकालत में बिताए और टुल्सा में हुए नस्लवाद के अपने प्रत्यक्ष अनुभव को लगातार साझा किया. फ्लेचर की मृत्यु के बाद अब इस स्मृति को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी पूरी तरह वर्तमान और आने वाली सरकारों पर है. खासकर वर्तमान दौर में, जब अश्वेत अमेरिकियों से लेकर लैटिन अमेरिका और एशिया से आए प्रवासियों तक कई समुदाय नस्लीय तनावों का सामना कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें:-
इमैनुएल मैक्रों मेरी हत्या करवाना चाहते हैं, इसमें इजरायली व्यक्ति शामिल है; अमेरिकी महिला लेखक का गंभीर आरोप
9 सोते हुए बच्चों को रॉकेट से मारा, पाकिस्तान ने अंधेर में अफगानिस्तान पर किया हमला, गुस्से से लाल हुआ तालिबान
ऑस्ट्रेलियाई संसद में बुर्का पहनकर पहुंचीं सांसद तो मचा बवाल, आखिर क्यों उठाया ऐसा कदम? देखें Video