India Wonders In Rare Earth With Quad Countries: दुनिया इस समय रेयर अर्थ मिनिरल्स की रेस में लगी है. इलेक्ट्रिक कारों से लेकर मिसाइल, स्मार्टफोन, सैटेलाइट तक हर हाई-टेक तकनीक रेयर अर्थ पर निर्भर है. अब तक इस पूरे खेल में चीन सबसे बड़ा खिलाड़ी रहा है, लेकिन द डिप्लोमैट की एक नई विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार हालात बदलते दिख रहे हैं. हाल ही में साउथ कोरिया में डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग की बैठक के बाद चीन ने रेयर अर्थ पर लगाए गए कुछ एक्सपोर्ट कंट्रोल्स को एक साल के लिए टाल दिया है. रिपोर्ट कहती है, यह ब्रीदिंग स्पेस भारत के लिए एक बड़ा मौका है खुद को रेयर अर्थ सप्लाई चेन में एक अहम ताकत बनाने का.
India Wonders In Rare Earth With Quad Countries: कच्चा माल खूब है, दिक्कत प्रोसेसिंग में थी
भारत के पास रेयर अर्थ का कच्चा माल पहले से मौजूद है. देश के कई तटीय इलाकों की समुद्र तट की रेत में मोनाजाइट, बास्टनेसाइट और अन्य रेयर अर्थ मिनिरल्स पाए जाते हैं. द डिप्लोमैट में जियानली यांग बताते हैं कि चुनौती कच्चे माल की नहीं थी, बल्कि प्रोसेसिंग क्षमता की थी. भारत के पास रिफाइनिंग फैसिलिटी, चुंबक निर्माण और डाउनस्ट्रीम क्षमता उतनी विकसित नहीं थी, साथ ही पर्यावरण से जुड़े नियम इस काम को और धीमा कर देते थे. लेकिन यह स्थिति अब बदल रही है. भारत रिफाइनिंग और प्रोसेसिंग की क्षमता बढ़ा रहा है.
भारत मैग्नेट बनाने की दिशा में बढ़ रहा है
हाल ही में भारत सरकार ने घोषणा की कि वह रेयर अर्थ मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग के लिए फिस्कल इंसेंटिव स्कीम ला रही है. इसका उद्देश्य है. चीन पर निर्भरता घटाना और भारत में मैग्नेट बनाने की क्षमता बढ़ाना. द डिप्लोमैट की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय कंपनियां जैसे सोना कॉमस्टार अब मैग्नेट उत्पादन लाइन स्थापित कर रही हैं. इसी तरह सरकारी कंपनी Indian Rare Earths Ltd. को रिफाइनिंग क्षमता बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है. इतना ही नहीं, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भी इसमें जुड़ चुका है, जो सैटेलाइट कंपोनेंट्स में इस्तेमाल होने वाली हाई प्यूरिटी सीपेरेशन तकनीक को मैग्नेट उद्योग में उपयोग के लिए अनुकूल बनाने में मदद कर रहा है.
रेयर अर्थ सिर्फ बिजनेस नहीं रणनीतिक साझेदारी का हिस्सा
भारत रेयर अर्थ पर अपनी घरेलू क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रणनीतिक साझेदारी भी मजबूत कर रहा है. द डिप्लोमैट में जियानली यांग लिखते हैं कि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ Quad फ्रेमवर्क के अंतर्गत भारत रेयर अर्थ एक्सप्लोरेशन का फाइनेंसिंग और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर काम कर रहा है. यानी भारत अकेले नहीं, बल्कि मजबूत साझेदारों के साथ रेयर अर्थ सप्लाई चेन को लोकतांत्रिक और सुरक्षित बनाने की कोशिश कर रहा है.
भारत क्यों गेम चेंजर है?
द डिप्लोमैट का विश्लेषण कहता है कि रेयर अर्थ बाजार में अलग-अलग देशों की अपनी-अपनी भूमिका है कि ऑस्ट्रेलिया के पास माइनिंग की क्षमता है, ब्राजील से वेस्टर्न हेमिस फेहर को विविधता मिलता है, और अमेरिका NdPr मेटल (कैलिफोर्निया) और मैग्नेटस (टेक्सास) बनाने में प्रगति कर रहा है. लेकिन इन सबके बावजूद, जियानली यांग के अनुसार, ये देश अकेले चीन की मोनोपोली को चुनौती नहीं दे सकते. भारत इस समीकरण को बदल देता है, क्योंकि भारत जो बनाता है उसे खुद भी इस्तेमाल कर सकता है, और जो रिफाइन करता है उसे एक्सपोर्ट कर सकता है.
‘आत्मनिर्भर भारत’ इस रणनीति को स्थिर बनाता है
द डिप्लोमैट की रिपोर्ट के मुताबिक, रेयर अर्थ (दुर्लभ खनिजों) को लेकर भारत की रणनीति सिर्फ कमाई या उद्योग बढ़ाने के लिए नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक स्थिरता से भी जुड़ी है. प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भर भारत नीति को देश के भीतर बड़ा राजनीतिक समर्थन मिला हुआ है. इसका मतलब यह है कि रेयर अर्थ सेक्टर पर भारत की नीति सरकार बदलने से प्रभावित नहीं होगी.
अमेरिका को क्या करना चाहिए?
रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका को भारत को सिर्फ डिफेंस पार्टनर या सेमीकंडक्टर पार्टनर के रूप में नहीं देखना चाहिए. द डिप्लोमैट का सुझाव है कि अमेरिका, भारत के रेयर अर्थ प्लांट्स में निवेश कर सकता है. जैसे US International Development Finance Corporation (DFC) या EXIM Bank के जरिए co-finance (साझा फंडिंग) की जा सकती है. अमेरिका अपनी रिफाइनिंग और वेस्ट ट्रीटमेंट तकनीक भारत के साथ तेजी से साझा करे. इससे भारत को ट्रायल-एंड-एरर में लगने वाला समय बचेगा और प्लांट्स जल्दी तैयार होंगे. रिपोर्ट आगे कहती है कि Apple जैसे बड़े ब्रांड की असेंबली लाइन और चिप डिजाइन केंद्र को भारत में लाना इस बात का सबूत है. अगर रणनीतिक साझेदारी हो और सही वित्तीय प्रोत्साहन दिए जाएं, तो भारत काम करके दिखाता है.
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