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सुप्रीम कोर्ट में जीते ट्रंप, अब नहीं चलेगी मेडिकल जांच वाली मनमानी, पासपोर्ट में मान्य होंगे केवल दो लिंग; महिला या पुरुष


America US Supreme Court backs Donald Trump orders: अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने डोनाल्ड ट्रंप के निर्णय पर अपनी मुहर लगा दी है. ट्रंप सरकार द्वारा जनवरी में सत्ता संभालने के बाद से ही ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों पर कई सख्त कदम उठाए हैं. उन्होंने एक कार्यकारी आदेश जारी कर कहा कि अमेरिकी सरकार केवल दो लिंगों पुरुष और महिला को ही मान्यता देगी. ट्रंप ने ट्रांसजेंडर लोगों की जेंडर पहचान को झूठ करार दिया था. इसी के तहत उन्होंने अमेरिका पासपोर्ट में केवल दो लिंगों को मान्यता देने वाला कानून पेश किया था, जिसे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इस पर कोर्ट ने गुरुवार को ट्रंप प्रशासन को यह अनुमति दे दी कि अमेरिकी पासपोर्ट पर दर्ज लिंग यात्रियों के जैविक लिंग यानी पुरुष या महिला से मेल खाना चाहिए.

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन को यह अनुमति दे दी कि पासपोर्ट के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति अपनी जेंडर पहचान के अनुरूप लिंग नहीं चुन सकेंगे. अब उन्हें अपने जन्म के समय निर्धारित लिंग के अनुसार ही पासपोर्ट बनवाना होगा. यह फैसला ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी अमेरिकियों के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जिन्होंने इस नीति को असंवैधानिक बताया था. यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के आपातकालीन मामलों के दस्तावेज (Emergency docket) पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक और जीत मानी जा रही है. जबकि एलजीबीटीक्यू अधिकारों के लिए यह एक और झटका है. यह फैसला ऐसे समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट ट्रांस अमेरिकियों को निशाना बनाने वाले राज्य कानूनों से जुड़े कई मामलों पर विचार कर रही है.

ट्रंप ने कौन सा फैसला लिया था?

ट्रंप प्रशासन की यह नीति जनवरी 2025 में जारी एक कार्यकारी आदेश से आई है, जो यह निर्धारित करती है कि संघीय दस्तावेजों जैसे पासपोर्ट में केवल दो लिंग को जैविक वर्गीकरण (Biological classification) और जन्म प्रमाणपत्र के आधार पर मान्यता दी जाएगी.  निचली अदालत ने ट्रंप प्रशासन की इस नीति पर रोक लगाई थी. अमेरिका की सर्वोच्च अदालत ने जस्टिस डिपार्टमेंट के उस अनुरोध को मंजूरी दी, जिसमें उसने एक निचली अदालत के उस आदेश को रद्द करने की मांग की थी और उसने ट्रंप के पक्ष में फैसला दिया है. हालांकि, इस नीति के खिलाफ दायर क्लास-एक्शन मुकदमा अभी भी जारी है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने बिना हस्ताक्षर वाले आदेश में कहा, “पासपोर्ट धारकों के जन्म के समय का लिंग प्रदर्शित करना समान संरक्षण के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता, जैसे कि उनके जन्म देश को दिखाना उल्लंघन नहीं है, दोनों ही मामलों में सरकार केवल एक ऐतिहासिक तथ्य का प्रमाण दे रही है और किसी के साथ भेदभाव नहीं कर रही.”

कब बदले गए थे नियम?

ट्रंप प्रशासन की यह नीति 1992 से चली आ रही अमेरिकी विदेश विभाग की परंपरा को उलट देती है, जिसके तहत लोग मेडिकल प्रमाणपत्र के आधार पर अपने पासपोर्ट पर लिंग को जन्म से अलग दर्ज करवा सकते थे. डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति जो बाइडन के शासनकाल में 2021 में विदेश विभाग ने पासपोर्ट नीति में बदलाव किया था. इसके तहत आवेदकों को किसी चिकित्सीय दस्तावेज के बिना स्वयं यह चुनने की अनुमति दी गई थी कि वे पुरुष या महिला के रूप में पहचान चाहते हैं. इसके साथ ही नॉन-बाइनरी, इंटरसेक्स और जेंडर-नॉनकनफॉर्मिंग लोगों के लिए, तीसरा विकल्प ‘X’ भी जोड़ा गया था.

अब सुप्रीम कोर्ट के इस बदलाव के बाद, नए पासपोर्ट आवेदकों को अपने जन्म प्रमाणपत्र के अनुसार ही पुरुष या महिला विकल्प चुनना होगा. हालांकि, जिन लोगों के पास पहले से ‘X’ मार्कर वाले पासपोर्ट हैं, वे अपनी अवधि समाप्त होने तक मान्य रहेंगे.

ट्रंप को सुप्रीम कोर्ट से हर बार मिल रही राहत

ट्रंप के पासपोर्ट वाले फैसले के अलावा मई में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर लोगों के सेना में शामिल होने पर ट्रंप के प्रतिबंध को लागू करने की भी अनुमति दी थी. इसके बाद पेंटागन प्रमुख पीट हेगसेथ ने ट्रांसजेंडर लोगों को अपमानजनक रूप से ड्यूड्स इन ड्रेसेज (यानि कपड़ों में पुरुष) कहा था. ट्रंप प्रशासन को सुप्रीम कोर्ट से हर बार राहत मिल रही है. उनके पहले कार्यकाल के उलट दूसरे टर्म में सुप्रीम कोर्ट उनके हर निर्णय पर अपनी मुहर लगा रहा है. इस साल निचली अदालतों द्वारा रोकी गई नीतियों को 6-3 के रूढ़िवादी बहुमत वाले इस सुप्रीम कोर्ट ने लगभग हर मामले में ट्रंप प्रशासन का पक्ष लिया है.

एनबीसी की सितंबर की एक रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप सरकार के खिलाफ तब तक 300 से अधिक मामले दर्ज कराए गए थे. इनमें से ज्यादातर सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंच पाते. हालांकि जितने भी पहुंचे, उनमें से ज्यादातर में उनकी जीत हुई है. उनकी आखिरी हार मई 2025 में हुई थी. जबकि 19 मामलों में उनकी जीत हुई है, जबकि 16 में वे जीतने के करीब थे. इसी कोर्ट में ट्रंप सरकार के ग्लोबल टैरिफ वाले मामले की भी सुनवाई चल रही है. हालांकि उनसे इस मामले में सवाल काफी तीखे पूछे जा रहे हैं.

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