फिल्म – बारामूला
निर्देशक -आदित्य जाम्भाले
निर्माता – आदित्य धर और लोकेश धर
कलाकार -मानव कौल,भाषा सुमब्ली,अश्विनी कौल,अरिस्ता मेहता,शाहिद मलिक,शाहिद लतीफ़,मदन नाज़नीन और अन्य
प्लेटफार्म – नेटफ्लिक्स
रेटिंग -तीन
baramulla movie review :आर्टिकल 370,कश्मीर से जुड़े ऐतिहासिक फैसले पर फिल्म बनाने वाले निर्माता आदित्य धर और निर्देशक आदित्य जाम्भाले की जोड़ी बारामूला फिल्म से एक बार फिर कश्मीर की कहानी कह रहे हैं. घाटी में आतंकवाद में बच्चों को ब्रेनवाश करके जोड़ने की यह कहानी अतीत में हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की भयावहता को भी खुद में समेटे हुए है. सुपरनैचुरल जॉनर वाली इस फिल्म में जिस तरह से कश्मीर के सोशियो और पॉलिटिकल पहलू को जोड़ा गया है. वह इसे अलहदा बना गया है.कुलमिलाकर यह हॉरर थ्रिलर फिल्म रोमांच को बढ़ाने के साथ -साथ इमोशनल भी कर जाती है.
गुमशुदा बच्चों के तलाश की कहानी
फिल्म का शीर्षक कश्मीर का बारामूला है. कहानी वही साल 2016 में स्थापित की गयी है. फिल्म की शुरुआत एक मैजिक शो के दौरान दस साल के बच्चे शोएब के गायब हो जाने से शुरू होती है. शोएब राजनीति में रसूख वाले परिवार से आता है इसलिए पुलिस महकमे में भारी फेरबदल हो जाती है. काबिल ऑफिसर डीएसपी रिद्वान सय्यद( मानव कौल ) की पोस्टिंग बारमूला में होती है.रिद्वान और उनका परिवार अतीत में हुए एक हादसे से जूझ रहा होता है.रिद्वान शोएब के गायब होने की गुत्थी को सुलझाता रहता है कि एक और बच्चा गायब हो जाता है.रिद्वान को मालूम पड़ता है कि गायब हो रहे बच्चों का कनेक्शन आतंकवादियों से है.कहानी में ट्विस्ट तब आ जाता है जब रिद्वान की बेटी गायब हो जाती है.सिर्फ यही नहीं रिद्वान की बेगम (भाषा सुम्बुली )उसे बताती है कि उसे नए घर में अजीबोगरीब साये दिखते हैं.जिनका कनेक्शन गायब हुए बच्चों से है. रिद्वान उसकी बात को अनसुना करता है, लेकिन जब उसकी बेगम अगले गायब होने वाले बच्चे का नाम बताती है और उसी बच्चे के गायब होने के बाद उसे यकीन हो जाता है.गायब बच्चों और उसके घर में दिखने वाले साए के बीच में कनेक्शन है.वो साए किनके हैं.क्या है वह कनेक्शन इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
फिल्म की खूबियां और खामियां
हिंदी सिनेमा में हॉरर जॉनर को सीमित दायरे में ही रखा गया है. बीते कुछ सालों में इसमें विविधता देखी गयी है ,लेकिन जिस तरह से इस फिल्म की लेखन टीम ने इसमें कश्मीर के सामाजिक और राजनीतिक पह्लु को जोड़ा है. वह शायद ही कभी किसी हिंदी हॉरर फिल्म का हिस्सा बना हो.जिसके लिए पूरी टीम बधाई की हकदार है. फिल्म के सब प्लॉट्स में भी बहुत कुछ चलता रहता है. आतंकवाद में बच्चों के इस्तेमाल की यह मूल कहानी कश्मीर के पुलिस वालों के दर्द को भी बयां किया गया है कि किस तरह से उन्हें काफिर समझा जाता है.फिल्म का क्लाइमेक्स इसकी यूएसपी है. फिल्म की अवधि लगभग दो घंटे की है. इस दौरान फिल्म आपका पूरा अटेंशन मांगती है. वरना आपको फिल्म रिवाइंड करके देखनी होगी. आपको हर डिटेल और संवाद पर ध्यान रखना होगा तभी आपके सारे सवालों के जवाब मिलेंगे हालाँकि फिल्म की स्क्रीनप्ले कुछ सवाल अधूरे से रह गए है.आखिर क्यों उस घर के साए 2016 में ही दिखने लगते हैं. उन्होंने बदला लेने के लिए इतने लम्बे वक़्त का क्यों इन्तजार किया.वह घर दशकों से बंद था.रिद्वान और उसके परिवार के जाने के बाद खुलता है. ऐसा कुछ कहानी में जोड़ने की जरूरत महसूस होती है.तकनीकी पहलू इस फिल्म को खास बनाते हैं. एडिटिंग चुस्त है तो इस हॉरर थ्रिलर फिल्म में एक किरदार की तरह इसकी सिनेमेटोग्राफी है. इसके लिए सिनेमेटोग्राफर अर्नाल्ड की तारीफ़ बनती है. जिस तरह से कश्मीर की बर्फ की वादियों, अंधेरे को उन्होंने कहानी से जोड़ा है.वह फिल्म से जुड़े थ्रिलर को और बढ़ाता है. सिर्फ आउटडोर दृश्य ही नहीं बल्कि घर के इंटीरियर भी एक अलग ही सिरहन पैदा करते हैं. संगीत विषय के साथ न्याय करता है. बाकी के पहलू भी फिल्म के अनुभव को बेहतर बनाते हैं.
एक्टर्स ने भी किया है कमाल
मानव कौल एक बार फिर अपने किरदार में रचे बसे हैं. फिल्म में उनके ज्यादा संवाद नहीं है,लेकिन अपने किरदार को उन्होंने अपने बॉडी लैंग्वेज के साथ -साथ ख़ामोशी के साथ जिया है. भाषा सुम्बुली की भी तारीफ़ बनती है.बाकी के कलाकारों ने भी पूरी विश्वसनीयता के साथ अपनी -अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.