World Largest Spider web Found In Europe: आप किसी गुफा में जाएं और सामने पूरा कमरा नहीं, बल्कि पूरा इलाका मकड़ी के जाल से भरा मिले. ऐसा जाल जिसकी चौड़ाई इतनी हो कि आप उसमें छोटी कार पार्क कर दें. ग्रीस और अल्बानिया की सीमा पर ऐसी ही एक खोज हुई है. सल्फर केव, जहां वैज्ञानिकों को मिला दुनिया का सबसे बड़ा मकड़ी का जाल. और इसमें रहने वाली मकड़ियों की संख्या? एक-दो नहीं, बल्कि 1,11,000 से ज्यादा.
कैसे मिला दुनिया का सबसे बड़ा मकड़ी का जाल
इस जाल को 2022 में चेक स्पेलोलॉजिकल सोसाइटी के कुछ कावेर्स ने पहली बार देखा था, जब वे गुफा की खोजबीन कर रहे थे. यह जाल कोई एक बड़ा कपड़ा जैसा जाल नहीं है, बल्कि हजारों छोटे-छोटे कीपनुमा (funnel) जालों से मिलकर बना है, जो दीवारों से चिपके हैं और पूरे 106 वर्ग मीटर (1,140 वर्ग फुट) इलाके में फैले हुए हैं. 2024 में रोमानिया की सैपिएंटिया हंगेरियन यूनिवर्सिटी ऑफ ट्रांसिल्वेनिया के शोधकर्ताओं की टीम, जिसका नेतृत्व इस्तवान उराक कर रहे थे, इस गुफा पर रिसर्च करने पहुंची.
दो-अलग प्रजातियां लेकिन साथ रहने का अनोखा मामला
रिसर्च से पता चला कि इस गुफा में मकड़ियों की दो प्रजातियां पाई गईं. एक प्रजाति, टेगेनेरिया डोमेस्टिका, एक घरेलू फनल मकड़ी है जिसकी आबादी लगभग 69,000 है. दूसरी प्रजाति, प्रिनेरिगोन वेगन्स, एक शीट-वीवर मकड़ी है जिसकी आबादी लगभग 42,000 है. आम तौर पर मकड़ियां अकेले रहती हैं और एक-दूसरे का शिकार भी कर लेती हैं, लेकिन यहां परिस्थितियां इतनी अलग हैं कि वे कॉलोनी बनाकर साथ रह रही हैं. यह पहला केस है जहां ये दो प्रजातियां सहयोगी व्यवहार दिखा रही हैं.
World Largest Spider web Found In Europe: इस गुफा में मकड़ियां क्यों नहीं लड़तीं?
यह गुफा पूरी तरह अंधेरी है. न सूरज, न रोशनी बस सल्फर की गंध और उससे निकलती गैस. गुफा में बहता है सल्फर वाला पानी, जो हाइड्रोजन सल्फाइड गैस बनाता है. इस गैस की वजह से दीवारों पर सल्फर माइक्रोबियल परत (biofilm) बनती है, जिसे छोटे उड़ने वाले कीड़े non-biting midges (न काटने वाले मच्छर) खाते हैं और यही कीड़े इन मकड़ियों का खाना हैं.
यानी एक पूरी फूड चेन ऐसे चलती है सल्फर → माइक्रोबियल परत → मिज कीड़े → मकड़ियां. चूंकि गुफा में रोशनी नहीं है, इसलिए वैज्ञानिकों का मानना है कि मकड़ियों की सामान्य शिकार वाली प्रवृत्ति दब गई होगी, और इसलिए वे भीड़ में भी साथ रह पा रही हैं.
यह मकड़ियां बाकी मकड़ियों से अलग कैसे हैं?
विश्लेषण में पता चला है कि ये मकड़ियां अपने सतह पर रहने वाले रिश्तेदारों से जेनिटिक रूप से अलग होने लगी हैं. इनके पेट में पाए जाने वाले माइक्रोब्स की वैरायटी भी कम है. सल्फर आधारित भोजन की वजह से इनके अंदर बदलाव आ रहे हैं. यानि ये मकड़ियां इवोल्यूशन (विकास) के बीच में हैं लाइव.
क्या इसलिए संख्या इतनी ज्यादा है?
मादा मकड़ियां हर 20-25 दिनों में 6 से 8 अंडे देती हैं. पहले अंडे के थैले में 100 तक अंडे हो सकते हैं. गुफा की दीवारें अंडे के थैलों से भरी हैं, इतनी ज्यादा कि उन्हें गिनना नामुमकिन है. वैज्ञानिकों की प्रतिक्रिया है कि “वह पल जीवन भर याद रहेगा.” इस शोध का नेतृत्व करने वाले इस्तवान उराच कहते हैं कि उस पल ने उन्हें अचरज, सम्मान और कृतज्ञता से भर दिया. टीम का ध्यान अब इस जगह को संरक्षित करने पर है क्योंकि यह बेहद नाज़ुक और अनोखी है.
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