ट्रंप के प्रतिबंधों का असर, भारत में रूस से तेल की सप्लाई तेजी से घटी, लेकिन कितने दिन रहेगा यह असर?
Russian Oil Export to India drops: रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए अमेरिका ने सैंक्शन और टैरिफ का सहारा लिया. पहले रूस पर सैंक्शंस लगाए, उसके बाद भी रूस की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी रही. ऐसे में अमेरिका ने भारत पर यूक्रेन युद्ध को फंड करने का आरोप लगाया और रूसी तेल का आयात रोकने की मांग की. लेकिन भारत ने अपने नागरिकों के हित को ध्यान में रखते हुए, ऐसा करने से इनकार कर दिया. पूरी दुनिया में भारत और चीन ही रूसी तेल के सबसे बड़ा खरीददार हैं और इन पर अमेरिका का धमकाने वाला जोर नहीं चल रहा है. इसलिए अमेरिका ने एक और सैंक्शन का सहारा लिया. पिछले महीने अमेरिका द्वारा पिछले महीने रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों रॉसनेफ्ट और लुकोइल (Lukoil) पर प्रतिबंध लगा दिया. इन प्रतिबंधों के बाद माना जा रहा है कि भारत को रूस से होने वाला निर्यात तेजी से घटा है. एक अस्थायी टैंकर डाटा के रिसर्च में यह जानकारी सामने आ रही है.
क्या भारत के तेल आयात पर असर पड़ा है?
27 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में भारत को रूस से भेजा गया कच्चे तेल का औसत निर्यात 11.9 लाख बैरल प्रति दिन (bpd) रहा, जबकि इससे पहले के दो हफ्तों में यह औसत 19.5 लाख बैरल प्रति दिन था. यह आंकड़े वैश्विक कमोडिटी विश्लेषण फर्म Kpler के अस्थायी टैंकर ट्रैकिंग डेटा से मिले हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, यह गिरावट मुख्य रूप से रॉसनेफ्ट और लुकोइल की कम शिपमेंट्स की वजह से आई है. ये दोनों कंपनियां रूस के कुल तेल उत्पादन और निर्यात का 50% से अधिक हिस्सा संभालती हैं और भारत के रूसी तेल आयात के दो-तिहाई से अधिक हिस्से की आपूर्तिकर्ता रही हैं. वहीं रॉसनेफ्ट रूस के कुल तेल उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा अकेले निकालती है, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 6% है.
27 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में रॉसनेफ्ट का निर्यात घटकर 8.1 लाख बैरल प्रति दिन रह गया, जो पिछले सप्ताह 14.1 लाख बैरल प्रति दिन था. वहीं लुकोइल ने उसी अवधि में भारत को कोई शिपमेंट नहीं भेजा, जबकि पिछले सप्ताह उसने 2.4 लाख बैरल प्रति दिन की आपूर्ति की थी. Kpler के लीड रिसर्च एनालिस्ट सुमित रितोलिया ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि प्रतिबंधों की घोषणा के बाद हमने देखा कि कंपनियां अंतिम समय सीमा से पहले रूसी कच्चे तेल की डिलीवरी तेजी से करा रही थीं. 21 नवंबर के बाद किसी भी भारतीय रिफाइनरी (नायारा को छोड़कर, जिसके प्रमोटर समूह में रॉसनेफ्ट शामिल है) से यह उम्मीद नहीं है कि वे प्रतिबंधित आपूर्तिकर्ताओं से खरीद जारी रखेंगी. अमेरिका ने रूसी कंपनियों को 21 नवंबर तक का समय दिया है, उनके इस तारीख तक जितने भी करार हैं, वे इस समय तक पूरे होंगे.
क्या भारत पर असर पड़ेगा?
रॉसनेफ्ट और लुकोइल पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों से भारत के रूसी तेल आयात पर असर पड़ना तय माना जा रहा है. भारत की कई रिफाइनरियां जैसे HPCL-मित्तल एनर्जी लिमिटेड (HMEL) ने पहले ही रूसी तेल आयात को निलंबित करने की घोषणा की है. हालांकि यह सभी निजी क्षेत्र की तेल कंपनियां है. वहीं देश की सबसे बड़ी सरकारी रिफाइनरी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) ने भी कहा है कि वह अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन करेगी. हालांकि इसके बावजूद भले ही लॉजिस्टिक्स, वित्तीय लेनदेन और व्यापार व्यवस्था पहले से कहीं अधिक जटिल हो जाए, लेकिन रूसी तेल भारत आता रहेगा. जब तक भारतीय रिफाइनरियों पर सीधे प्रतिबंध नहीं लगाए जाते या भारत सरकार खुद औपचारिक रोक नहीं लगाती, तब तक अमेरिकी प्रतिबंध काम नहीं करेंगे.
भारत को रूसी तेल निर्यात में भारी गिरावट
हालांकि उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि अभी प्रभाव का पूरा आकलन करना जल्दबाजी होगी और स्थिति अगले एक-दो महीनों में ज्यादा स्पष्ट होगी. लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों से भारतीय रिफाइनरियां सतर्क हो गई हैं, क्योंकि ये प्रतिबंध 21 नवंबर से प्रभावी होने वाले हैं. यह प्रतिबंध डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा व्हाइट हाउस लौटने के बाद रूस पर लगाए गए पहले अमेरिकी प्रतिबंध हैं. इनका उद्देश्य रूस की तेल बिक्री से होने वाली प्रमुख आमदनी को सीमित करना है. प्रतिबंधों की घोषणा करते हुए स्कॉट बेसेंट ने कहा था, “अब समय आ गया है कि हिंसा रोकी जाए और तुरंत युद्धविराम लागू किया जाए.”
विशेषज्ञ राय इस डाइनफॉल पर क्या कहती है?
सुमित रितोलिया ने कहा, “रूसी कच्चे तेल की आपूर्ति 21 नवंबर तक लगभग 16 से 18 लाख बैरल प्रतिदिन बनी रह सकती है, लेकिन इसके बाद गिरावट आ सकती है क्योंकि रिफाइनरियां अमेरिकी विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय (OFAC- Office of Foreign Assets Control) प्रतिबंधों के दायरे में आने से बचना चाहेंगी. भारतीय रिफाइनरियां आगे भी गैर-प्रतिबंधित बिचौलियों के माध्यम से रूसी तेल खरीदती रहेंगी, लेकिन अब वे यह काम काफी सतर्कता के साथ करेंगी.” भारत आने वाले रूसी तेल स्वेज नहर का रास्ता तय करते हैं, ऐसे में उन्हें यह रास्ता तय करने में एक महीने का समय लगता है और दोनों रूसी कंपनियों के पास 21 नवंबर तक का समय है, लेकिन उसके बाद उन्हें मुश्किल हो सकती है.
रितोलिया ने यह भी कहा कि भले ही दिसंबर–जनवरी में रूसी कच्चे तेल के आयात में उल्लेखनीय गिरावट देखी जा सकती है, लेकिन थोड़े समय की अस्थिरता के बावजूद रूसी तेल आयात का पूरी तरह रुकना संभव नहीं है, क्योंकि भारत के लिए यह व्यापारिक रूप से लाभदायक है और भारत की भू-राजनीतिक स्थिति भी इसके पक्ष में है. भारतीय रिफाइनरियां आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनर्गठन करेंगी और प्रभाव का आकलन करेंगी और रूसी तेल की आपूर्ति भारत के फायदे के लिए आयात करती रहेंगी.
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