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Chhath Puja 2025 :मां शारदा सिन्हा को याद कर बेटी वंदना ने कहा हम तो हर दिन रोते हैं..


chhath puja 2025:यह वही समय है जब पिछले वर्ष पद्म विभूषण से सम्मानित बिहार कोकिला शारदा सिन्हा छठ पर्व पर हमारा साथ छोड़ गयी थीं. वे छठ गीतों की पर्याय यूं ही नहीं मानी जातीं. उनके गीत बजते ही मानो उनकी आवाज गली-मुहल्ले को बुलाने लगती हैं. उनकी विरासत को आगे ले जाने के लिए उत्साहित उनकी बेटी और लोक गायिका वंदना सिन्हा भारद्वाज ने कुछ पुरानी यादों को साझा किया है. उर्मिला कोरी से हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अंश.

हम तो हर दिन रोते हैं

पिछले साल छठ के एक दिन पहले मां चली गयी थीं. एक साल होने को है. उनके बगैर यह पहला छठ है. हम तो हर दिन रोते हैं. उन्हें मिस करते हैं. उनके हर वीडियो में हम उनको गौर से देखते हैं. वे कैसी दिखती थीं. इतना सुंदर कैसे गाती थीं. ये जो छठ पूजा का समय आ रहा है, उससे बीता साल और ज्यादा याद आ रहा है. मन बहुत बैठा जा रहा है. इसे शब्दों में बता पाना मुश्किल है

मां के गीत हमारे साथ-साथ चलते थे

छठ पूजा की सारी स्मृतियां मेरी मां और मेरी दादी से जुड़ी हैं. बचपन से ही छठ से जुड़ी हर परंपरा में हमें शामिल किया गया है. हमें ये बताया गया कि इसमें आपकी भागीदारी होनी ही चाहिए. मां के छठ गीत हम अपने घर के आंगन में सुनने के साथ-साथ घाट तक पहुंचने के रास्ते में भी सुनते थे. बेगूसराय हमारी दादी का घर है. छठ पर मां की आवाज एक झोंके की तरह बजती हुई हमारे साथ-साथ चलती थी. हमें उस वक्त ये बहुत आम बात लगती थी. विशेष कुछ महसूस ही नहीं हुआ. बड़े होने पर समझ आया कि लोग इसे सालों साल से सुन रहे हैं. इतना प्यार देते हैं. ये समझने में वक्त लगा कि छठ गीत मतलब मां (शारदा सिन्हा) के गीत.

छठ सबको एकजुट कर देता है

परिवार से लेकर समाज तक में छठ पूजा में जो एकजुटता की भावना दिखती है, वह खास लगती है. मुझे लगता है कि छठ एक ऐसा पर्व है जहां घर के सारे लोग इकट्ठा हो जाते हैं. घर से दूर कोई कितना भी रहे, छठ पर सब पहुंचते हैं और एकजुट होकर अपना सहयोग देते हैं. समाज वाले भी. हमारे पड़ोसी भी हमारे घर के आसपास की साफ-सफाई कर देंगे. ऐसा कुछ इस पर्व के प्रति आस्था लोगों में है. अगर कोई व्रती दिख जाता है, भले हम उन्हें नहीं जानते, तो भी उनके पैर छू लेते हैं.

छठ व्रतियों के लिए सौगात है यह गीत

‘शारदा सिन्हा ऑफिशियल’ यूट्यूब चैनल पर मां के द्वारा गाया गया गीत ‘छठी मईया के दरबार’ इस बार रिलीज किया गया है. यह गाना उन्होंने बीमार होने से पहले रिकॉर्ड किया था, जो सभी छठ व्रतियों के लिए सौगात की तरह है. अपनी बात करूं, तो इस छठ पर मैं कोई गीत तो नहीं ला रही हूं, लेकिन मां के गीतों पर स्टेज पर परफॉर्म कर रही हूं. कई चैनलों पर भी मेरी प्रस्तुति होगी. अगली बार छठ पर कोई गीत लाने की कोशिश होगी.

प्यार के साथ डांट भी मिलती थी

मैंने मां के साथ कई स्टेज शो किये हैं. मैंने हमेशा मां के गानों पर लोगों को झूमते देखा है. वह दृश्य अद्भुत होता था. स्टेज पर मां से सीखने का एक अलग ही अनुभव होता था. उनकी गायिकी और पॉज को समझना बहुत खास होता था. उनको सुन-सुनकर सीखती थी. वो मेरी मां भी थीं और गुरु भी, तो प्यार के साथ-साथ सख्ती भी होती थी. किसी गाने को कॉपी करके गा लिया, तो वह मान नहीं जाती थीं. जब तक वह गाने में मेरी परिपक्वता नहीं देखतीं, वह अच्छा बोलती ही नहीं थीं. वे बोलती थीं कि और प्रयास करो. किसी शब्द को कैसे पॉज लेकर बोलना है, वो मुझे रोक-रोक कर सिखाती थीं. शुरुआत में मुझे बुरा लगता था, लेकिन जैसे-जैसे समझ बढ़ी, ये समझा कि ये तो मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनसे सीखने को मिल रहा है. हाल के वर्षों में तो मैं मोबाइल पर उनको कम्पोजीशन सुनाती थी, तो उसको भी सुनकर वे बताती थीं- ‘ये अभी सुंदर नहीं बना है और मेहनत करो.’ बहुत मेहनत करवाने के बाद वह बोलतीं- ‘हां अब अच्छा बना है.’ कई बार ज्यादा डांट देती थीं, तो फिर सोते हुए मेरे बालों को सहलाते-सहलाते प्यार से सिखाती थीं.

मां का गाया सबसे पसंदीदा छठ गीत

मां को छठ मईया की बेटी माना जाता है. उनके छठ गीत पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग सुनते आ रहे हैं. मेरे सबसे पसंदीदा छठ गीत की बात करूं, तो ‘अंगना में पोखरी खनाईब हे छठी मईया…. अईहs ना आज… छठी मईया अईहs ना आज…’ मुझे बहुत पसंद है. ये छठ गीत मैं बहुत गाती हूं. सुरों में मां के आसपास भी पहुंच पाना बहुत मुश्किल हैं. हम सिर्फ कोशिश कर सकते हैं, तो वही करती हूं.

उनकी साड़ियों को प्रणाम कर पहनती हूं

ये मेरा सौभाग्य है कि मेरी गुरु और मां एक ही हैं. उनकी आवाज ही नहीं, उनके सजने-संवरने के अंदाज को भी मैं एडमायर करती हूं. उनको तैयार होते देखना भी मुझे अच्छा लगता था, तो वो सब जाने-अनजाने मुझमें भी आ गया है. उनका बिंदी लगाना, साड़ी की पसंद, पहनने का सलीका आदि सब मेरा पसंद बन गया. शादी के बाद मैं भी उसी तरह से तैयार होने लगी. मैं उनके जैसा दिखने का प्रयास नहीं करती, वो दिव्य थीं. मैं आम हूं. उनकी साड़ियों को पहनती हूं, तो मुझे एक आत्मिक सुख मिलता है. लगता है जैसे वे मेरे पास हैं. मेरे साथ हैं. मैं सबसे पहले उनकी साड़ी को प्रणाम करती हूं और कहती हूं कि ‘आपकी साड़ी पहन रही हूं और पहनती रहूंगी. अपना आशीर्वाद बनाये रखना मां.’

पहले भगवती की पूजा फिर परफॉरमेंस

मां हमेशा मां भगवती की पूजा करती थीं. होटल में भी रहतीं, तो परफॉरमेंस के लिए निकलने से ठीक पहले भगवती की पूजा करती थीं और अपने गुरुओं को प्रणाम करती थीं. मैं भी यही करती हूं, लेकिन इसके साथ मैं अपने मां और पिता को भी प्रणाम करती हूं. उसके बाद परफॉरमेंस देती हूं.

बिहार सरकार से अपील

मां अपने गीतों से हमेशा लोगों के दिलों में अमर रहेंगी, लेकिन हर समाज और सरकार को अपनी धरोहर को संरक्षित करना चाहिए और मां एक धरोहर की तरह थीं. उनको गये एक साल होने को हैं. सरकार ने एक मूर्ति तक उनके नाम की कहीं स्थापित नहीं की है. पांच नवंबर उनकी पुण्यतिथि है. बिहार में चुनाव है. आशा है कि सरकार उनके सम्मान के लिए कुछ समय निकालेगी.