तुर्की का बड़ा दांव! इस पड़ोसी देश में तैनात होंगे किलर ड्रोन और हाई-टेक एयर डिफेंस सिस्टम, भारत की टेंशन बढ़ी
Turkey Deploys Killer Drones High Tech Air Defense Bangladesh: पड़ोसी देशों के बीच कुछ ऐसे कदम उठाए जाते हैं, जो सीधे हमारे लिए रणनीतिक चुनौती बन जाते हैं. तुर्की और बांग्लादेश के बीच हाल ही में एक बड़ा रक्षा समझौता लगभग अंतिम रूप ले चुका है. इस समझौते के तहत ढाका को तुर्की की SIPER लंबी दूरी की हाई-टेक एयर डिफेंस सिस्टममिलेगी और बांग्लादेश को लड़ाकू ड्रोन और ड्रोन के सह-उत्पादन का अवसर भी मिलेगा. विशेषज्ञ इसे दक्षिण एशिया में सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक बदलावों में से एक बता रहे हैं.
बांग्लादेश क्षेत्रीय ताकत को मजबूत करना चाह रहा है
ढाका स्थित डैफोडिल इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के विजिटिंग स्कॉलर एमडी ओबैदुल्लाह के अनुसार, यह समझौता सिर्फ हथियार सौदा नहीं है. यह बांग्लादेश के लिए एक संप्रभुता पहल है. इसका मतलब है कि वह क्षेत्रीय ताकतों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. वहीं तुर्की के लिए यह वैश्विक प्रभाव बढ़ाने का एक तरीका है. भारत के लिए यह घटनाक्रम एक नया और अवांछित रणनीतिक सिरदर्द साबित हो सकता है.
बांग्लादेश क्यों बढ़ा रहा है अपनी सैन्य ताकत?
म्यांमार में गृहयुद्ध और उसकी सीमाओं पर म्यांमार के लड़ाकू विमानों द्वारा बार-बार हवाई क्षेत्र का उल्लंघन ढाका के लिए चिंता का कारण है. ऐसी स्थिति में बांग्लादेश को अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए मजबूत हथियार और आधुनिक हाई-टेक एयर डिफेंस सिस्टम की जरूरत है. इस सैन्य आधुनिकीकरण के दो उद्देश्य हैं. पहला यह है कि तात्कालिक खतरे से सुरक्षा यानि कि म्यांमार की अराजक परिस्थितियों के खिलाफ सुरक्षा कवच तैयार करना और दूसरा कि दीर्घकालिक रणनीतिक संतुलन यानि, भारत के साथ क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बनाए रखना.
Turkey Deploys Killer Drones High Tech Air Defense Bangladesh: समझौते में क्या है खास?
तुर्की से आने वाले हथियार बांग्लादेश की कई जरूरतों को पूरा करते हैं. पहला है कि SIPER वायु रक्षा प्रणाली का उद्देश्य यह कि मध्यम और लंबी दूरी की वायु रक्षा कवच प्रदान करेगी, जिससे राजधानी ढाका संभावित हमलों से सुरक्षित रहेगी. वहीं लड़ाकू ड्रोन और सह-उत्पादन का ढाका को अपनी निगरानी, टोही और हमला करने की क्षमता बनाने का मौका मिलेगा. इससे बांग्लादेश की सैन्य ताकत के साथ आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी.
तुर्की के लिए क्या है मतलब?
तुर्की के लिए यह समझौता सिर्फ व्यावसायिक नहीं, बल्कि रणनीतिक सफलता भी है. राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन के लिए यह उनके देश के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश का हिस्सा है. इस रणनीतिक उपस्थिति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि बंगाल की खाड़ी में पैर जमाने से तुर्की की पहुंच काला सागर से हिंद महासागर तक हो जाती है. भारत के लिए चुनौती से कम नहीं है. रणनीतिक गणनाओं में यह नया सिरदर्द है. बांग्लादेश का आपूर्तिकर्ता चीन नहीं, तुर्की है. भारत के पास तुर्की के खिलाफ पूर्व रणनीति नहीं है, जिससे दिल्ली की रणनीतिक स्थिति थोड़ी अस्थिर हो सकती है.
ये भी पढें:
अमेरिका, चीन या इजराइल नहीं, इस देश ने बनाया सेल्फ‑फ्लाइंग AI फाइटर जेट; दुश्मनों का बनेगा ‘भस्मासुर’
पाकिस्तान के लिए नया खौफ! भारतीय वायुसेना को मिलेंगी 200+ किमी मारक क्षमता वाली 700 ‘अस्त्र मार्क‑2’ मिसाइलें