Bihar Assembly Elections 2025: प्रशांत किशोर का दावा—अगला दही चूड़ा नीतीश का एक अणे मार्ग पर नहीं, लेकिन लालू के डर से नीतीश को वोट मिलेंगे
 
Bihar Assembly Elections 2025: प्रशांत किशोर ने हाल ही में बिहार में दो चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी राय साझा की. उन्होंने कहा कि दो चरणों में चुनाव होना स्वागत योग्य कदम है और इससे चुनाव प्रक्रिया अधिक सुव्यवस्थित होगी साथ ही, उन्होंने त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना जताते हुए चुनावी स्थिति की जटिलताओं पर भी प्रकाश डाला.
दो चरणों का चुनाव: स्वागत योग्य
प्रशांत किशोर ने दो चरणों में चुनाव होने की बात का स्वागत किया. उनका कहना है कि इससे न केवल प्रशासनिक कार्य में आसानी होगी, बल्कि मतदान की प्रक्रिया भी सुचारू और नियंत्रित रहेगी. किशोर का यह बयान राजनीतिक विश्लेषकों के लिए कई मायनों में संकेत देता है. एक तरफ यह चुनाव आयोग की योजना को सकारात्मक नजरिए से देखने का तर्क है, वहीं दूसरी तरफ इससे मतदाताओं और पार्टियों की रणनीति पर भी असर पड़ेगा.
दो चरणों का चुनाव मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने और किसी भी तरह की भगदड़ या अफरातफरी से बचने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जा सकता है. किशोर ने इसे स्वागत योग्य करार देते हुए यह संदेश भी दिया कि राजनीतिक दलों को इस बदलाव के अनुसार अपनी रणनीतियों को फिर से परखना होगा.
नीतीश कुमार और अगला ‘दही-चूड़ा’
किशोर ने अपने बयान में एक मजाकिया लेकिन राजनीतिक रूप से संकेतपूर्ण टिप्पणी भी की—“अगला दही चूड़ा नीतीश कुमार पर नहीं खाएंगे.” यह कथन सियासी व्यंग्य के रूप में तो देखा जा सकता है, लेकिन इसका गहरा संदेश भी है. यह संकेत है कि पिछले चुनावों में कुछ परंपरागत वोट या समर्थन अब स्वतः नहीं आएगा.
किशोर यह बता रहे हैं कि मतदाता अब पुराने आदतों या प्रतीकों पर भरोसा नहीं करेंगे. यानी यह चुनाव केवल गठबंधन और जातीय समीकरण तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि नेतृत्व और प्रदर्शन पर भी मतदाता की निगाहें रहेंगी.
लालू यादव का डर और वोट बैंक की राजनीति
दूसरी तरफ किशोर यह भी कहते हैं कि नीतीश कुमार को लालू यादव के डर से वोट मिलेगा. यह बयान राजनीतिक अस्थिरता और विरोधियों की मौजूदगी को लेकर वास्तविक राजनीतिक संवेदनाओं को उजागर करता है.
यह संकेत देता है कि जनता केवल विकास और प्रशासनिक रिकॉर्ड पर ही नहीं, बल्कि संभावित विपक्षी ताकतों और उनके कदमों को देखकर भी मतदान करेगी. किशोर का यह विश्लेषण बिहार के राजनीतिक समीकरणों की जटिलता को स्पष्ट करता है—जहां भय, उम्मीद और रणनीति तीनों ही भूमिका निभा रहे हैं.
राजनीति में विश्लेषक का नया अंदाज
प्रशांत किशोर के इन दोनों बयानों में विरोधाभास जैसा लग सकता है—एक तरफ दो चरणों के चुनाव का स्वागत और त्रिकोणीय मुकाबले में स्थिरता का दावा, दूसरी तरफ नेतृत्व पर मजाक और डर की राजनीति. लेकिन असल में यह विश्लेषक का काम है—राजनीति की सूक्ष्मताओं को समझाना और जनता के लिए परिदृश्य साफ करना.
किशोर ने यह भी संकेत दिया कि राजनीतिक समझौते, गठबंधन और नेतृत्व की छवि ही बिहार चुनाव की दिशा तय करेंगे. उनका अंदाज सीधे और व्यंग्यपूर्ण होने के बावजूद गंभीर विश्लेषण पेश करता है.
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