फिल्म – निशानची
निर्देशक – अनुराग कश्यप
निर्माता – जार पिक्चर्स और फ्लिप फिल्म्स
कलाकार – ऐश्वर्य ठाकरे,वेदिका पिंटो , मोनिका पंवार ,कुमुद मिश्रा,विनीत कुमार सिंह,जीशान अयूब और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग – तीन
nishaanchi movie review :अनुराग कश्यप हिंदी सिनेमा के उन निर्देशकों में से माने जाने जाते हैं,जिन्होंने हिंदी सिनेमा को वास्तविकता के करीब लाया है. रिश्ते,इंसानी व्यवहार ,रिश्तों की उथल पुथल ,परिवेश सभी मिलकर पर्दे पर रील नहीं बल्कि रियल दुनिया का एहसास करवाते हैं . आज रिलीज हुई निशानची भी ठीक वही निशाना लगाती है. फ़िल्म देखते हुए यह आपको गैंग्स ऑफ़ वासेपुर की याद दिलाती है.कहानी रूटीन टाइप लग सकती है लेकिन जबरदस्त अभिनय और निर्देशन ने फिल्म को देखने योग्य बना दिया है.इससे इंकार नहीं किया जा सकता है
ये है पार्ट वन की कहानी
फिल्म की शुरुआत बैंक में चोरी से होती है. तीन लोग मिलकर इस चोरी को अंजाम देने वाले थे लेकिन चोरी नाकामयाब हो जाती है. तीन लोगों में से एक पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है.दो लोग भाग जाते हैं.मालूम पड़ता है कि ये बबलू (ऐश्वर्य ठाकरे )है. पुलिस (जीशान अयूब )बाकी दो लोगों के बारे में बबलू से पूछताछ करती है ,लेकिन बबलू पुलिस की मार या प्रलोभन से टूटने वाली चीज नहीं है. बबलू के साथ उसका जुड़वां भाई डब्ल्यू (ऐश्वर्य )और प्रेमिका रिंकू (वेदिका पिंटो )इस चोरी में शामिल थे . यह बात कहानी में आने के साथ यह भी मालूम होता है कि पुलिस, कानून के लिए नहीं बल्कि दबंग अम्बिका प्रसाद (कुमुद मिश्रा )के लिए काम कर रही है.एक वक़्त था जब बबलू अम्बिका प्रसाद को अपना परिवार मानता था, लेकिन रिंकू की वजह से वह एक दूसरे के आमने -सामने खड़े हो गए हैं. कहानी फ्लैशबैक में जाती है और इसकी वजह बताती है. सिर्फ यही नहीं कहानी फ्लैशबैक में जाकर यह भी बताती है कि बचपन में किस तरह से बबलू अपराध से जुड़ गया था. अम्बिका प्रसाद और बबलू का रिश्ता बबलू के पिता की वजह से जुड़ा है. पिता जबरदस्त पहलवान (विनीत सिंह )थे, जिनकी हत्या हुई थी. उसका बदला लेने के लिए ही बबलू अपराध से जुड़ा.क्या वाकई बबलू ने अपने पिता की मौत का बदला ले लिया है या दोषी कोई और है. बबलू की मां (मोनिका पंवार ) भी है, जो अम्बिका प्रसाद के खिलाफ सालों से अकेली खड़ी है.लगभग तीन घंटे की फिल्म में यह सब दिखाया गया है ,लेकिन कहानी पूरी दूसरे पार्ट में होगी.
फिल्म की खूबी और खामियां
निर्देशक अनुराग कश्यप ने अपनी इस कहानी को कानपुर में सेट किया और उन्होंने फिल्म को पूरी तरह से कनपुरिया स्टाइल में ही बनायी है.फिल्म की प्रस्तुतीकरण लाजवाब है.निर्देशक के तौर पर अनुराग ने छोटी छोटी डिटेल पर ध्यान दिया है.किरदारों से लेकर परिवेश तक में वह आपको स्क्रीन पर दिखेगा. फिल्म को साल 1984 से 2006 के बीच दिखाया गया है. खामियों की बात करें तो कहानी थोड़ी स्लो हो गई है . प्रेडिक्टेबल होने की भी सेकंड हाफ से शिकायत हो सकती है लेकिन फ़िल्म का जिस तरह से प्रस्तुतीकरण किया गया है .वह आपको शुरुआत से लेकर आखिर तक बांधे रखती है .सिल्वेस्टर फोंसेका की सिनेमेटोग्राफी की तारीफ बनती है.फिल्म को एक अलग ही आयाम वह दे गया है. ऐसा ही कुछ इस फिल्म के म्यूजिक के बारे में कहा जाना चाहिए. इस फ़िल्म में वह एक अहम किरदार की तरह है. गीत संगीत में जमकर प्रयोग हुआ है.जो कई बार आपको गुदगुदाता भी है. संवाद भी कई मौकों पर इस फिल्म के इंटेस माहौल में राहत का काम करते हैं तो कई बार “मर्द अपने फायदे के लिए औरतों को देवी बनाता है”जैसे संवाद सोशल मैसेज भी दे गए हैं. फिल्म अपने क्रेडिट्स के साथ ही फिल्म का पूरा माहौल तैयार कर देती है. खामियों में फिल्म की लम्बाई थोड़ी कम की जा सकती थी.
कलाकारों ने किया है कमाल
फिल्म से अभिनेता ऐश्वर्या ठाकरे ने इंडस्ट्री में अपनी शुरुआत की है. पहली ही फिल्म में दोहरी भूमिका, जो निर्देशक का उनपर भरोसे को दर्शाता है और वह इस भरोसे पर पूरी तरह से खरे उतरे हैं. बबलू और डब्लू के किरदार को उन्होंने बॉडी लैंग्वेज से लेकर संवाद तक हर पहलू में विविधता लाते हुए बखूबी जिया है. एहसास ही नहीं होता है कि एक ही एक्टर ने दोनों किरदारों को जिया है. जो अभिनेता के तौर पर उनकी बहुत बड़ी जीत है. मोनिका पंवार और वेदिका पिंटो दोनों ही अभिनेत्रियों ने अपनी असरदार मौजूदगी का एहसास पूरी फिल्म में करवाया है तो कुमुद मिश्रा ने एक बार फिर अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया है. विनीत कुमार गेस्ट अपीयरेंस में भी इस फिल्म की ख़ास पहचान बन गए हैं. वह अपने अभिनय से आपको सीटियां और तालियां बजाने को मजबूर कर देंगे खासकर जेल के आखिरी सीन में. गिरीश शर्मा,राजेश कुमार सहित बाकी के किरदारों ने भी अपनी- अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.