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Agriculture: कच्चे कृषि उत्पाद के लिए कोल्ड चेन की क्षमता विकसित करने पर किया गया मंथन



Agriculture: देश में हर साल करोड़ों रुपये के कच्चे उत्पाद सुविधा की कमी के कारण बर्बाद हो जाते हैं. सरकार की कोशिश फल और सब्जियों की बर्बादी रोकने के लिए देश में कोल्ड चेन का विस्तार करने की योजना पर काम कर रही है. इस कड़ी में स्वदेशी और विदेशी कंपनियों का सहयोग लिया जा रहा है. दक्षिण एशिया की प्रमुख रेफ्रिजरेशन और कोल्ड चेन प्रदर्शनी, रेफकोल्ड इंडिया 2025 का 8वां संस्करण भारत मंडपम में आयोजित किया गया. 

आईएसएचआरएई (इंडियन सोसायटी ऑफ हीटिंग, रेफ्रिजरेटिंग एंड एयर कंडीशनिंग इंजीनियर्स) और इन्फॉर्मा मार्केट्स इन इंडिया द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रदर्शनी में उद्योग, सरकार और वैश्विक कंपनियां शामिल हुई. इसमें देश में  कोल्ड-चेन उद्योग से होने वाले बदलाव और बदलती अर्थव्यवस्था में इसके योगदान पर चर्चा की गयी.  कार्यक्रम का उद्घाटन कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों, नेशनल सेंटर फॉर कोल्ड चेन डेवलपमेंट के प्रतिनिधियों और उद्योग की बड़ी कंपनियों के प्रमुखों ने किया. इस दौरान  ऊर्जा संक्रमण पर रिपोर्ट भी जारी किया गया. उद्घाटन समारोह में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी के साथ नेशनल सेंटर फॉर कोल्ड-चेन डेवलपमेंट के अधिकारी मौजूद रहे.

कोल्ड चेन सेक्टर कृषि के विकास के लिए जरूरी

देश की खाद्य सुरक्षा, स्थिरता और आर्थिक विकास में कोल्ड चेन सेक्टर का अहम योगदान है. भारत का कोल्ड चेन बाजार फिलहाल लगभग 10.5 अरब डॉलर से अधिक का है और आने वाले समय में यह 74.5 अरब डॉलर का हो जाएगा. इस प्रदर्शनी में दुनिया की प्रमुख कंपनियां जैसे कोपलैंड, डाइकिन, डनफोस, करियर ट्रांसिकोल्ड, रिनक और लुवे जैसी ब्रांड शामिल हुई. जिसने फार्मा, समुद्री उत्पाद, डेयरी, मांस, कृषि, हॉस्पिटैलिटी, लॉजिस्टिक्स, खाद्य प्रसंस्करण, स्वास्थ्य, रिटेल और बेकरी जैसे विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवरों को आकर्षित करने का काम किया.

नेपाल, श्रीलंका, मध्य-पूर्व, दक्षिण अफ्रीका और केन्या से आए प्रतिनिधियों सीमा-पार सहयोग को बढ़ावा देने और व्यापार को बढ़ाने के विभिन्न उपायों पर चर्चा की. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव बागवानी प्रियरंजन ने कहा कि भारत आज विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बागवानी उत्पादक है, जिसकी उत्पादन क्षमता लगभग 365 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुंच चुकी है. लेकिन फसल कटाई के बाद होने वाला 15 फीसदी नुकसान लगभग 15 मिलियन मीट्रिक टन बर्बाद हो जाता है. इससे किसानों के साथ ही उपभोक्ताओं को भी नुकसान उठाना पड़ता है. केंद्र सरकार इस हालात को बदलने पर काम कर रही है और वर्ष 2047 तक नुकसान को 5 फीसदी से कम करने का लक्ष्य है. 

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