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4000000 फोन सरकार की निगरानी में, एमनेस्टी रिपोर्ट ने खोला जासूसी का राज; चीनी टेक्नोलॉजी का आरोप


China Technology Help Mass Surveillance Phones: जरा सोचिए, आप फेसबुक पर स्टेटस डाल रहे हैं, यूट्यूब पर कोई वीडियो देख रहे हैं या व्हाट्सऐप पर मैसेज भेज रहे हैं. और उसी वक्त कहीं एक सरकारी स्क्रीन पर आपकी हर क्लिक, हर चैट, हर मूवमेंट रिकॉर्ड हो रहा हो. डरावना लगता है न? लेकिन यही हो रहा है पाकिस्तान में. और यह सब सिर्फ घरेलू इंतजाम से नहीं, बल्कि चीन की टेक्नोलॉजी के सहारे. अमनेस्टी इंटरनेशनल की नई रिपोर्ट ने पाकिस्तान के इस डिजिटल सर्विलांस नेटवर्क का परदा फाश किया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह एक ओर सोशल मीडिया पर सेंसरशिप बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर लाखों मोबाइल फोनों पर एजेंसियां नजर रख रही हैं.

China Technology Help Surveillance Phones: कैसे काम करता है पाकिस्तान का सर्विलांस सिस्टम?

रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान ने एक WMS 2.0 नाम का इंटरनेट फायरवॉल लगाया है. यह सिस्टम इंटरनेट ट्रैफिक को बारीकी से जांचता है और एक साथ 20 लाख से ज्यादा सेशन ब्लॉक करने की ताकत रखता है. इसके साथ ही Lawful Intercept Management System (LIMS) लगाया गया है. यह सिस्टम इंटेलिजेंस एजेंसियों को कम से कम 40 लाख मोबाइल फोन मॉनिटर करने की सुविधा देता है. यानी किसी का कॉल सुनना हो, मैसेज पढ़ना हो या डेटा खंगालना, सब मुमकिन है.

दोनों सिस्टम मिलकर काम करते हैं. एक तरफ कॉल और मैसेज इंटरसेप्ट होते हैं. दूसरी तरफ वेबसाइट्स और सोशल मीडिया को स्लो कर दिया जाता है या पूरा एक्सेस ही बंद कर दिया जाता है.

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China Technology Help Surveillance Phones: किसकी टेक्नोलॉजी से बना ये नेटवर्क?

अमनेस्टी के मुताबिक यह सिस्टम पूरी तरह “घरेलू” नहीं है. इसमें कई देशों की टेक्नोलॉजी का घालमेल है. हार्डवेयर आया है अमेरिका की Niagara Networks से. सॉफ्टवेयर है फ्रांस की Thales DIS का. सर्वर दिए हैं चीन की सरकारी IT कंपनी ने. पहले के वर्जन में कनाडा की Sandvine की टेक्नोलॉजी इस्तेमाल हुई थी. यानी पाकिस्तान ने अपने यहां डिजिटल जासूसी का पूरा सेटअप खड़ा करने के लिए दुनिया के कई देशों का माल उठाया है.

आज की तारीख में पाकिस्तान में इंटरनेट का हाल यह है कि सरकार ने 6.5 लाख वेब लिंक्स ब्लॉक कर रखे हैं. यूट्यूब, फेसबुक और एक्स (पहले ट्विटर) जैसे प्लेटफॉर्म्स पर लगातार पाबंदियां लगाई जाती हैं. कभी एक्सेस धीमा कर दिया जाता है, कभी सीधा बैन.

मामला कैसे उजागर हुआ?

यह सब चर्चा में तब आया जब बुशरा बीबी (पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पत्नी) ने 2024 में इस्लामाबाद हाईकोर्ट में केस दायर किया. उनकी निजी कॉल्स ऑनलाइन लीक हो गई थीं. कोर्ट में डिफेंस मिनिस्ट्री और एजेंसियों ने कहा कि हमारे पास फोन टैप करने की क्षमता ही नहीं है. लेकिन जब सवाल-जवाब तेज हुए, तो टेलिकॉम रेगुलेटर ने मान लिया कि उसने पहले ही कंपनियों को LIMS सिस्टम लगाने का आदेश दे दिया था.  

यह crackdown अचानक नहीं हुआ. 2022 में जब पाकिस्तान की सेना ने इमरान खान से दूरी बना ली, तब से हालात बदले. इमरान जेल गए, उनकी पार्टी के हजारों कार्यकर्ता पकड़े गए. और अब लोगों की ऑनलाइन आवाज भी दबाई जा रही है. अमनेस्टी इंटरनेशनल कहती है कि “Mass surveillance creates a chilling effect.” यानी जब लोगों को लगे कि उनकी हर हरकत देखी जा रही है, तो वे अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने से डरने लगते हैं. चाहे विरोध प्रदर्शन हो, या सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना.

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बड़ा सवाल

तो सवाल यही खड़ा है कि क्या सरकारें विदेशी टेक्नोलॉजी खरीदकर अपने ही नागरिकों की जासूसी करेंगी? अगर हां, तो यह सिर्फ आजादी पर हमला नहीं, बल्कि संप्रभुता पर भी समझौता है. पाकिस्तान का मामला बताता है कि निगरानी के नाम पर टेक्नोलॉजी किस हद तक जनता की आजादी को निगल सकती है. और यही वजह है कि इस रिपोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ दी है.