Nepal Supreme Court Shifted To Tent: सोचिए, जिस जगह पर कभी देश का सबसे बड़ा न्याय मंदिर खड़ा हो, वहां अब सफेद टेंट लगे हों. लोग फाइलें लेकर उसी टेंट में कतार में खड़े हों और जज वहीं से कामकाज देख रहे हों. यह किसी फिल्म का सीन नहीं, बल्कि असली घटना है नेपाल की. पिछले हफ्ते काठमांडू में जो हिंसा हुई, उसने देश की न्याय व्यवस्था को हिला कर रख दिया. सरकारी दफ्तर जले, गाड़ियां राख हो गईं और सुप्रीम कोर्ट की इमारत भी आग में समा गई. अब हालत यह है कि अदालत ‘तंबू एडिशन’ में चल रही है.
Gen Z आंदोलन और काठमांडू में आग
9 सितंबर को नेपाल की राजधानी काठमांडू के प्रशासनिक इलाके सिंह दरबार कॉम्प्लेक्स पर Gen Z कहलाने वाले युवाओं ने कब्जा कर लिया. उन्होंने नारे लगाए, तोड़फोड़ की और आखिरकार आगजनी भी. यहां प्रधानमंत्री का दफ्तर और मंत्रालय स्थित हैं. बवाल इतना बड़ा था कि सिर्फ दफ्तर ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट जैसी अहम इमारत भी जल गई.
इस हिंसा और उथल-पुथल का सबसे बड़ा असर राजनीतिक मोर्चे पर पड़ा. तत्कालीन प्रधानमंत्री KP शर्मा ओली की सरकार ध्वस्त हो गई. उनकी जगह सुशीला कार्की को प्रधानमंत्री बनाया गया. कार्की ने साफ कहा कि अब न्याय व्यवस्था को “शुरुआत से खड़ा करना होगा.” यह बयान बताता है कि नुकसान कितना गहरा है.
Nepal Supreme Court Shifted To Tent: फाइलें जल कर राख हो गईं
आगजनी का सबसे बड़ा झटका सुप्रीम कोर्ट को लगा. नेटवर्क एट्टिन में छपे एक रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ अधिवक्ता पूरन मान शाक्य के मुताबिक करीब 26,000 एक्टिव केस फाइलें और 36,000 से ज्यादा आर्काइव रिकॉर्ड्स जलकर राख हो गए. यानी न सिर्फ वर्तमान केस, बल्कि दशकों का इतिहास हमेशा के लिए मिट गया. शाक्य ने चेतावनी दी कि नेपाल की न्यायिक धरोहर अब कभी पूरी नहीं हो पाएगी.
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सुप्रीम कोर्ट का तंबू एडिशन
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा कामकाज शुरू किया, लेकिन चारदीवारी के भीतर नहीं. कोर्ट अब अपने आंगन में लगे सफेद टेंटों से चल रहा है. इन टेंटों पर बड़े अक्षरों में लिखा है कि ‘सुप्रीम कोर्ट नेपाल’. वहीं पर स्टाफ याचिकाकर्ताओं से मिल रहा है और नई तारीखें दे रहा है. चीफ जस्टिस प्रकाशमान सिंह राउत ने बयान दिया है कि हम हर हाल में न्याय के रास्ते पर डटे रहेंगे. उनका कहना है कि हालात चाहे जैसे हों, अदालत का कामकाज नहीं रुकेगा.
मलबे में दफ्तर और खौफनाक हालात
इस वक्त सुप्रीम कोर्ट की इमारत खंडहर जैसी है. जजों के चेंबर, रजिस्ट्रार ऑफिस और कोर्टरूम सब ध्वस्त हो चुके हैं. दीवारें गिरी पड़ी हैं और अंदर जाना खतरे से खाली नहीं. इसलिए स्टाफ और वकीलों को फिलहाल मलबे से दूर रहने की सलाह दी गई है. नेपाल बार एसोसिएशन के महासचिव केदार प्रसाद कोइराला ने बताया कि जरूरी केस जैसे हैबियस कॉर्पस को अस्थायी तौर पर एक बची हुई एनेक्स बिल्डिंग में सुना जाएगा. वहीं बाकी काम टेंटों में चलेगा. वकील भी मदद को आगे आए हैं. वे अपने पास बची हुई फाइलों और फोटोस्टेट कॉपियों से केस रिकॉर्ड फिर से बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
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जनता का भरोसा और नए केस
रविवार तक ही 148 याचिकाकर्ता कोर्ट स्टाफ से मिल चुके थे. उन्हें नई तारीखें और आगे की प्रक्रिया के निर्देश दिए गए. आगजनी और गिरफ्तारी से जुड़े कई नए मामले दर्ज हो रहे हैं. स्टाफ ने इन्हें प्राथमिकता से दर्ज करना शुरू कर दिया है. अधिवक्ता शाक्य का कहना है कि “न्याय टेंट में भी रुकेगा नहीं.”
नेपाल के लिए यह दौर किसी इम्तहान से कम नहीं. एक तरफ युवा आंदोलन है, दूसरी तरफ खाक में तब्दील हुई न्याय व्यवस्था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के टेंट बता रहे हैं कि मुश्किल हालात में भी सिस्टम कैसे चलता रहता है. अब सवाल यही है कि क्या नेपाल की Gen Z क्रांति के बाद न्याय व्यवस्था वाकई नई शुरुआत कर पाएगी, या फिर यह राख लंबे समय तक देश के माथे पर धब्बा बनी रहेगी?