Pakistan Rebuilding Lashkar E Taibas Muridke: 7 मई 2025, रात 12 बजकर 35 मिनट. पाकिस्तान स्टैंडर्ड टाइम. भारतीय वायुसेना के मिराज विमान पंजाब प्रांत में घुसते हैं. निशाना था- मार्कज तैयबा, लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय. कुछ ही मिनटों में लाल रंग की बहुमंजिला इमारत और पीले रंग के दो ब्लॉक “उम्म-उल-कुरा” जमींदोज हो गए. इन्हीं में हथियारों का जखीरा, ट्रेनिंग सेंटर और टॉप कमांडरों के ठिकाने थे. एनालिस्ट्स बोले कि “2008 मुंबई हमले के बाद लश्कर को इतना बड़ा झटका कभी नहीं मिला.” लेकिन अब वही लश्कर इस खंडहर को फिर से खड़ा करने में जुटा है.
Pakistan Rebuilding Lashkar E Taibas Muridke: खंडहर से नए अड्डे तक का सफर
भारतीय हमले के बाद मलबा ही बचा था. पर अगस्त आते-आते लश्कर ने भारी मशीनरी लगा दी. 4 सितंबर को पीली बिल्डिंग ध्वस्त कर दी गई. 7 सितंबर को लाल बिल्डिंग भी साफ कर दी गई. अब मकसद है कि 5 फरवरी 2026, कश्मीर सॉलिडेरिटी डे पर नए मार्कज तैयबा का उद्घाटन. उसी दिन लश्कर का वार्षिक जलसा होता है. यानी भारत के प्रहार के बावजूद लश्कर “पुनर्जन्म” दिखाना चाहता है.
मास्टरमाइंड कौन?
इस “रीकंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट” की कमान संभाले हुए हैं, मौलाना अबू जर, लश्कर का हेड ट्रेनर, जिन्हें “उस्ताद-उल-मुजाहिद्दीन” भी कहा जाता है. यूनुस शाह बुखारी, ऑपरेशनल कमांडर. जब तक निर्माण पूरा नहीं होता, ट्रेनिंग कैंप शिफ्ट हो गए हैं- मार्कज अकसा (बहावलपुर), मार्कज यरमूक (पतोकी, कसूर) इनको चला रहा है अब्दुल राशिद मोहसिन, जो डिप्टी चीफ सैफुल्ला कसूरी का भरोसेमंद है.
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पाकिस्तान की मदद – “आतंक पर नाटक, असल में सहयोग”
भारत के डोजियर के मुताबिक, पाकिस्तान सरकार ने खुद मदद का वादा किया है. अगस्त 2025 में 4 करोड़ पाकिस्तानी रुपये (करीब 1.25 करोड़ भारतीय रुपये) दिए भी जा चुके हैं. पूरा काम करीब 15 करोड़ पाकिस्तानी रुपये (करीब 4.7 करोड़ भारतीय रुपये) में पूरा होगा. यानी एक तरफ पाकिस्तान दुनिया के सामने रोता है, “हम आतंकवाद के शिकार हैं.” और वहीं दूसरी तरफ आतंकी ठिकानों को सीधा फंडिंग करता है.
फंडरेजिग का पुराना पैंतरा- मानवता के नाम पर धंधा
लश्कर ने बाढ़ राहत और सामाजिक सेवा का चोला पहन रखा है. राहत कैंप लगते हैं, पाकिस्तानी रेंजर्स साथ खड़े होकर फोटो खिंचवाते हैं. जनता से पैसा वसूला जाता है और फिर सीधा भेजा जाता है, मार्कज तैयबा की नई ईंट-पत्थर में. 2005 के भूकंप के वक्त भी यही हुआ था. जमात-उद-दावा के नाम पर अरबों जुटाए गए. बाद में पता चला कि 80% पैसा आतंकी ढांचों में लगा. मार्कज अब्बास (कोटली) भी उसी में बना, जिसे भारत ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर में उड़ा दिया.
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ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत का जवाब
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हमला हुआ, 26 नागरिक मारे गए थे. इसके बाद 7 मई को भारत ने शुरू किया ऑपरेशन सिंदूर. लश्कर, जैश और हिजबुल के कई ठिकाने तबाह हुए, सौ से ज्यादा आतंकी मारे गए. पाकिस्तान ने मिसाइलें और ड्रोन छोड़े, पर भारत ने उन्हें नाकाम किया. जवाब में भारत ने पाकिस्तानी आर्मी ठिकाने भी निशाना बनाए. 10 मई को सीजफायर हुआ.
लश्कर की वापसी दिखाती है कि आतंकी ढांचे सिर्फ बम से नहीं मिटते. जब तक पाकिस्तान की सरकार इन्हें फंड और सहूलियत देती रहेगी, ये ढांचे बार-बार खड़े होंगे. नए नामों से (TRF, PAFF, कश्मीर टाइगर्स, MWK) आतंक जारी रहेगा. असल सवाल यही है कि क्या पाकिस्तान कभी सच में आतंक के खिलाफ लड़ेगा या हमेशा इसे भारत के खिलाफ ‘प्रॉक्सी वॉर’ की तरह इस्तेमाल करता रहेगा?