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सुन लीजिए… हम स्कॉर्पियो से ही जायेंगे, बस में नहीं बैठेंगे, छोटी गाड़ियों में दिख रही बड़ी इज्जत


Bihar chaupal-4: मनोज कुमार, पटना. सीवान में नेताजी की रैली थी. दूर दराज गांव से लेकर शहर तक कार्यकर्ताओं को बुलावा भेजा गया था. भीड़ जुटाने का लोड बढ़ा दिया गया था. पार्टी दफ्तर से भी फोन चले गये थे. भीड़ जुटाने में टिकटार्थी ज्यादा जोर लगाये थे. लेकिन, समस्या यह थी कि भीड़ पहुंचे कैसे ? बसें खड़ी थीं, लेकिन उसमें कोई चढ़ने को तैयार नहीं. बसें जैसे राजनीति में सिद्धांत की तरह कागज पर तो मौजूद थीं, मगर जमीन पर कोई भरोसा नहीं कर रहा था. हर कोई स्कॉर्पियो, बोलेरो, सूमो में ही जाना चाहता था. क्योंकि सबको छोटी गाड़ियों में ही इज्ज्त बड़ी दिख रही थी.

हम बस में चढ़ेंगे तो लोग का कहेंगे

खुद को पार्टी का पुरानी सिपाही मानने वाले रामजी सिंह बोले- देख भैया… हम बस में चढ़ेंगे तो लोग कहेंगे कि हमार इज्जत खत्म. हम त नेताजी के पोस्टर में तीसरा नंबर वाला चेहरा हैं. हम स्कॉर्पियो से ही जायेंगे. जगदीश प्रसाद भी तपाक से बोल उठे- हम भी बोलेरो से ही जायेंगे. बस त मजदूर-गरीब खातिर होता है. आगे-आगे स्कॉर्पियो का काफिला निकला, पीछे बोलेरो और सूमो की कतार. गाड़ियों को रवाना कर रहे अवधेश सिंह बोनट पर बैठकर लोकल राजनीति पर भाषण झाड़ रहे थे. देखिये…. गद्दारों को सटने नहीं देना है. पिछलका चुनाव में धोखा हमलोग खाये हैं. मुखिये जी के देख लीजिए. ओघरी चुनाव में हमलोग के विरोधी थे. इस बार पलटी मार दिये हैं.

मेन मुद्दा है कि ई बस कैसे भरेगा

गुलाब चौधरी बोले- अरे ! अब ई सब चलते रहता है. मेन मुद्दा है कि ई बस कैसे भरेगा. सब छोटके गाड़ी पर बैठना चाह रहा है. वो भी पीछे वाली सीट पर चार और एक आगे ड्राइवर के बगल में. एक गाड़ी में खाली पांचे आदमी पहुंचेगा तो मामला फंस जायेगा. रैली का समय नजदीका रहा है. भीड़ जुटाने का संकट जस का तस बना रहा. पार्टी कार्यालय से फोन फिर आया- नेताजी पूछ रहे हैं, बसें भर गयी कि नहीं ? टिकटार्थियों की सांस अटक गयी. किसी ने झूठ बोला- हां-हां, निकल गयी है. लेकिन, बसें राजनीति के घोषणापत्र के अधूरे वादे की तरह जस की तस खड़ी थीं. नेताजी के पटना से निकलने की सूचना हो गयी थी. अब तो सबकी हालत पतली. गुलाब चौधरी बोले- नेताजी खाली बस देख लिए, तो समझिये टिकट सपना हो जायेगा. अभी तुरंत महिला, बूढ़-जवान, लड़का-लड़की, मजदूर, जो भी हाथ लगे, बस में बैठाइये.

ये मामूली बस नहीं है, राजनीति की बस है

यह सुनकर सब भाग-दौड़ करने लगे. कोई खेत से मजदूरों को पकड़कर लाने लगा, कोई पास की ढाबा से चाय पीने वालों को ललचाने लगा. एक टिकटार्थी बोला- हाइस्कूल जाओ, कॉलेज जाओ. वहां से लड़का सब को उठाओ. पूरा व्यवस्था करो. अवधेश सिंह बोले- जल्दी करो भाई! नेताजी का काफिला जिले की सीमा में घुस गया है. अब तो जैसे भगदड़ सी मच गयी. स्कॉर्पियो और बोलेरो में बैठे लोग भी मजबूरी में कुछ अपने-अपने समर्थकों को उतारकर बस की सीटों पर बिठाने लगे. बस धीरे-धीरे भरने लगी, पर आधी सीटें अब भी खाली थीं. एक वयोवृद्ध कार्यकर्ता बस पर चढ़ते हुए बोला- ये मामूली बस नहीं है. राजनीति की बस है. जब तक नेताजी मंच पर न पहुंच जाते हैं, तब तक यह न पूरी भरती है, न पूरी खाली रहती है. खैर… आधी भरी सीटों के साथ बसें खुलीं. बस की हालत पार्टी के बूढ़े नेताओं की तरह दिख रही थी. उनका नाम तो है, पर कोई पूछ नहीं रहा था. बोलेरो ही राजनीति का असली रथ साबित हुईं. बसें पार्टी दफ्तर में रखे संविधान की तरह दिख रही थीं, जैसे सब सम्मान करते हैं, लेकिन कोई खोलकर शायद ही पढ़ता है.

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