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Baaghi 4 Review :सफल फ्रेंचाइजी को भुनाने की एक और असफल कोशिश


फ़िल्म – बागी 4

निर्माता -साजिद नाडियाडवाला 

निर्देशक -ए हर्षा 

कलाकार – टाइगर श्रॉफ,संजय दत्त, हरनाज कौर संधू , श्रेयस तलपड़े,सोनम बाजवा ,उपेंद्र लिमये, सौरभ सचदेवा और अन्य 

प्लेटफॉर्म – सिनेमाघर 

रेटिंग -डेढ़ 

baaghi 4 review :साल 2016 में बागी की पहली क़िस्त ने रुपहले परदे पर दस्तक दी थी. टाइगर श्रॉफ के हैरतअंगेज एक्शन को देखकर सभी ने कहा कि हिंदी सिनेमा में नए एक्शन हीरो की एंट्री हो गयी है और बागी एक फ्रेंचाइजी में तब्दील हो गयी. बागी  फ्रेंचाइजी तो बन गयी लेकिन कोई भी क़िस्त पहला वाला जादू परदे पर ना दोहरा पाया. यही वजह है पांच सालों के लम्बे अंतराल के बाद बागी की चौथी क़िस्त ने दस्तक दी है. इस बार कहानी की जिम्मेदारी खुद निर्माता साजिद नाडियाडवाला ने ले ली. उन्होंने साउथ की किसी रीमेक फिल्म को नहीं चुना,हां निर्देशन से साउथ के निर्देशक ए हर्षा को जोड़ा लेकिन इन सब जोड़ तोड़ के बावजूद एक बेहद कमजोर फिल्म बनकर रह गयी है.

घिसी पिटी कहानी फिल्म की

कहानी की बात करें तो यह रॉनी (टाइगर श्रॉफ )की कहानी है.जो एक बुरे एक्सीडेंट के बाद कोमा से बाहर आया है और वह अपनी गर्लफ्रेंड अलीशा (हरनाज संधू )के बारे में पूछने लगता है,लेकिन हर कोई उससे यही कहता है कि ऐसी कोई लड़की है ही नहीं. उसके भाई जीतू (श्रेयस तलपड़े )से लेकर डॉक्टर्स तक सभी उसे उसका हैलुशिनेशन यानी वहम बताते हैं. रॉनी इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि अलीशा सिर्फ उसकी कल्पना में है. जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है यह बात सामने आती है कि अलीशा कल्पना नहीं बल्कि हकीकत है,लेकिन वह चाको (संजय दत्त )के कब्जे में है. चाको ने क्यों अलीशा को अपना कैदी बनाया है और रॉनी के आसपास के सभी लोग उससे क्यों झूठ बोल रहे है.इन सब सवालों का जवाब देने के साथ साथ क्या रॉनी, अलीशा को चाको की कैद से निकाल पायेगा.आगे कहानी इस सवाल के भी जवाब देती है.

फिल्म की खूबियां और खामियां 

हिंदी सिनेमा में पिछले कुछ समय से फ्रेंचाइजी का मतलब एक के बाद एक कमजोर फिल्मों की क़िस्त बनता जा रहा है. मेकर्स के लिए यह हाई टाइम है..बागी 4 का स्क्रीनप्ले बेहद कमजोर है. फिल्म शुरुआत में रॉनी की कल्पना अलीशा को बताने की कोशिश करती है. टाइगर श्रॉफ के दोस्त को अलीशा शिप में क्यों नहीं दिखती है. मेकर्स इसका जवाब नहीं देते हैं. शायद उन्हें बस दर्शकों को उस सीन से कंफ्यूज करना था. फिल्म में इस वहम के गेम को इंटरवल तक कुछ इस कदर खींचा गया है कि यह आपको कुछ समय के बाद से ही बोर करने लगता है.फिल्म मरने और मारने वाली लव स्टोरी है लेकिन रॉनी और अलीशा का प्यार हो या चाको और अवंतिका का दोनों में वह जूनून कहानी और स्क्रीनप्ले परदे पर नहीं ला पायी है. वैसे बागी फ्रेंचाइजी हमेशा से ही कहानी के बजाय एक्शन को ज्यादा तवज्जो देती आयी है,लेकिन इस बार एक्शन में भी डिब्बा गुल हो गया. बागी एक्शन फ्रेंचाइजी है और ट्रेलर लांच के बाद से ही इसकी तुलना रणबीर कपूर की एनिमल से किया जा रही थी और फिल्म के एक्शन में जमकर  एनिमल स्टाइल के कुल्हाड़ी, चमकीले मास्क का इस्तेमाल हुआ है. गीत संगीत की बात करें तो वह कहानी की लम्बाई को बढ़ने का काम करते हैं. 

कमजोर कहानी ने किरदारों को भी बनाया कमजोर

अभिनय की बात करे तो टाइगर श्रॉफ अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हैं. एक्शन सीन ही नहीं बल्कि इस बार वह इमोशनल सीन में अच्छे रहे हैं. कमजोर कहानी और पटकथा ने उनके किरदार को चमकने नहीं दिया है.संजय दत्त को जिस तरह से इंटरवल के ठीक पहले दिखाया गया था. लगा कि वह बेहद दमदार किरदार होगा,लेकिन उनका किरदार परदे पर आखिर ऐसा कर क्यों रहा है. कहानी और स्क्रीनप्ले ने यह सही ढंग से स्थापित ही नहीं कर पायी है  सौरभ सचदेवा अपने चित परिचित अंदाज में नज़र आये हैं.उपेंद्र लिमये जरूर अपनी छोटी से भूमिका में छाप  छोड़ गए हैं.मिस यूनिवर्स हरनाज सिंधु डेब्यू फिल्म के लिहाज से ठीक रही हैं हालांकि  फिल्म में जमकर उनसे अंग प्रदर्शन करवाया गया है.सोनम बाजवा और श्रेयस तलपड़े ठीक ठाक रहे हैं.