Difference Between Retired Hurt and Retired Out: क्रिकेट हमेशा से अपने नियमों और रणनीतियों को लेकर सुर्खियों में रहता है. खेल के बदलते स्वरूप के साथ-साथ मैदान पर फैसले भी नए रंग दिखाने लगे हैं. हाल के दिनों में एक ऐसा नियम लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है, जिसे पहले बहुत कम ही देखा गया था रिटायर्ड आउट. यह तरीका अब खासकर T20 क्रिकेट में रणनीति का अहम हिस्सा बनता जा रहा है. आईपीएल से लेकर वर्ल्ड कप तक इसके कई उदाहरण देखने को मिले हैं. तो आखिर क्या है यह नियम, कैसे काम करता है और क्यों कप्तान और टीम मैनेजमेंट इसे अपनाने लगे हैं.
क्या है रिटायर्ड आउट का नियम?
क्रिकेट के नियमों के मुताबिक, जब कोई बल्लेबाज बिना किसी चोट या मेडिकल कारण के खुद मैदान छोड़ देता है, तो उसे ‘रिटायर्ड आउट’ माना जाता है. यह पूरी तरह से बल्लेबाज की इच्छा या टीम मैनेजमेंट की रणनीति पर आधारित फैसला होता है. इस स्थिति में स्कोरबुक में बल्लेबाज को आउट दिखाया जाता है, लेकिन गेंदबाज को विकेट का श्रेय नहीं मिलता. खास बात यह है कि बल्लेबाज तभी दोबारा बल्लेबाजी कर सकता है, जब विपक्षी कप्तान इसकी अनुमति दे. यही वजह है कि इसे एक तरह से पक्का आउट माना जाता है.
रिटायर्ड हर्ट और रिटायर्ड आउट में फर्क
अक्सर क्रिकेट फैंस ‘रिटायर्ड हर्ट’ और ‘रिटायर्ड आउट’ को एक जैसा समझ लेते हैं, जबकि दोनों बिल्कुल अलग नियम हैं.
- रिटायर्ड हर्ट तब होता है जब बल्लेबाज चोटिल हो जाए या स्वास्थ्य कारणों से खेल जारी न रख पाए. ऐसे खिलाड़ी किसी भी समय वापस आकर अपनी पारी आगे बढ़ा सकते हैं.
- रिटायर्ड आउट में खिलाड़ी पूरी तरह से खेल से बाहर हो जाता है, जब तक विरोधी कप्तान वापसी की इजाज़त न दे. इसका उपयोग किसी चोट की वजह से नहीं, बल्कि रणनीतिक फैसले के तौर पर किया जाता है.

यानी चोटिल होना और रणनीति बनाना दोनों स्थितियों को अलग-अलग माना जाता है.
क्यों बढ़ा है इसका इस्तेमाल T20 क्रिकेट में?
T20 फॉर्मेट तेज रफ्तार वाला खेल है, जहां हर गेंद की अहमियत होती है. अगर कोई बल्लेबाज धीमी गति से रन बना रहा है, तो वह पूरी टीम पर दबाव बढ़ा सकता है. ऐसे में कप्तान या कोच यह रणनीतिक फैसला लेते हैं कि उस बल्लेबाज को रिटायर्ड आउट कर दिया जाए और उसकी जगह तेजी से रन बनाने वाला बल्लेबाज भेजा जाए. यह फैसला मैच का रुख बदल सकता है और रन रेट को नियंत्रण में रखने में मदद करता है. इसी कारण से पिछले कुछ सालों में इसका इस्तेमाल बढ़ा है और इसे आधुनिक क्रिकेट की नई चाल माना जा रहा है.
IPL में रिटायर्ड आउट के चर्चित मामले
IPL ने क्रिकेट की रणनीतियों को हमेशा नई दिशा दी है. इसी टूर्नामेंट में पहली बार 2022 में राजस्थान रॉयल्स के रविचंद्रन अश्विन ने खुद को रिटायर्ड आउट घोषित किया था. यह आईपीएल के इतिहास का पहला ऐसा मौका था और तब से इसकी चर्चा लगातार होती रही. इसके बाद भी कई खिलाड़ियों ने इस रणनीति को अपनाया, जैसे
- साई सुदर्शन
- अथर्व तायडे
- तिलक वर्मा
- डेवोन कॉनवे
इन सबने टीम की जरूरत के मुताबिक खुद को रिटायर्ड आउट किया ताकि नए बल्लेबाज आकर तेज़ी से रन बना सकें.
इंटरनेशनल क्रिकेट में भी दिखा असर
यह नियम सिर्फ आईपीएल तक सीमित नहीं रहा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खिलाड़ी इसका इस्तेमाल करने लगे हैं.
- 2019 में भूटान के सोनम तोबगे मालदीव के खिलाफ टी20 मैच में रिटायर्ड आउट हुए थे.
- 2024 T20 वर्ल्ड कप में नामीबिया के निकोलस डेविन इंग्लैंड के खिलाफ रिटायर्ड आउट होने वाले पहले खिलाड़ी बने.
टेस्ट क्रिकेट में भी हुआ इस्तेमाल
हालांकि यह नियम सबसे ज़्यादा T20 में देखने को मिलता है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट भी इससे अछूता नहीं रहा. 2001 की एशियन टेस्ट चैंपियनशिप में श्रीलंका के दो दिग्गज मार्वन अटापट्टू और महेला जयवर्धने ने क्रमशः 201 और 150 रन बनाने के बाद खुद को रिटायर्ड आउट किया था. उस वक्त टीम का स्कोर बहुत बड़ा हो चुका था और कप्तान ने रणनीति के तहत नए बल्लेबाजों को मौका देने का फैसला लिया.
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