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खैरात और कर्ज! सेना के साए में पिसता पाकिस्तान, आधा देश भूखा; विश्व बैंक की रिपोर्ट ने खोली पोल


Pakistan Poverty World Bank Report 2025: पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बदहाली के दौर से गुजर रही है और आम लोग इसका सबसे बड़ा खामियाजा भुगत रहे हैं. विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट बताती है कि देश की करीब आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जी रही है. लगातार सरकारों की नाकाम नीतियों और संस्थागत सुधारों की कमी ने हालात को और बिगाड़ दिया है.

विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान की 44.7 फीसदी आबादी प्रतिदिन 4.20 डॉलर (करीब 350 रुपये) से कम आय पर जीवन बसर कर रही है. यह स्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि गरीबी मिटाने के लिए बनाई गई नीतियां अब तक कारगर साबित नहीं हो पाई हैं.

Pakistan Poverty World Bank Report 2025 in Hindi: अतिगरीबी तेजी से बढ़ी

ANI और जियो न्यूज के हवाले से WION ने बताया कि पाकिस्तान में अतिगरीबी (जहां आय 3 डॉलर से भी कम हो) का स्तर तेजी से बढ़ा है. पहले जहां यह 4.9 फीसदी था, अब यह बढ़कर 16.5 फीसदी हो गया है. बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के अनुसार, पाकिस्तान की 30 फीसदी से अधिक आबादी स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर जैसे बुनियादी मानकों से वंचित है. इसके विपरीत, पड़ोसी देश गरीबी उन्मूलन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. चीन में अतिगरीबी दर 1 फीसदी से भी कम है. नेपाल में यह आंकड़ा महज 2.2 फीसदी है. बांग्लादेश भी इस मामले में पाकिस्तान से काफी बेहतर स्थिति में है.

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कल्याणकारी योजनाएं बनी बोझ

रिपोर्ट में कहा गया कि पाकिस्तान की बदहाल वित्तीय स्थिति की बड़ी वजह उसकी भारी-भरकम सोशल वेलफेयर स्कीम्स हैं. अरबों रुपये खर्च होने के बावजूद ये योजनाएं लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में नाकाम रही हैं. केवल मदद बांटने से लोग निर्भरता के चक्र में फंसे रह गए हैं, जबकि गरीबी से उबारने के ठोस उपाय नहीं किए गए.

डेटा और नीतियों की कमी (Half Population Below Poverty Line in Hindi)

पाकिस्तान के पास एक अपडेटेड गरीबी डाटाबेस तक नहीं है. नतीजा यह है कि सरकारी योजनाएं अक्सर सही जरूरतमंदों तक पहुंच ही नहीं पातीं. साथ ही, बिखरे हुए डेटा सिस्टम, नौकरशाही की जटिलताएं और एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी गरीबी मिटाने के प्रयासों को और कमजोर बना रही हैं.

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सेना के साए में फंसा मुल्क

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पाकिस्तान, जहां असली ताकत सेना के हाथ में है, अपनी अर्थव्यवस्था चलाने के लिए विदेशी कर्ज और मदद पर निर्भर है. जब तक संस्थागत सुधार और ठोस रणनीति नहीं बनाई जाती, पाकिस्तान अपने पड़ोसियों की तुलना में गरीबी उन्मूलन की दौड़ में पीछे ही रहेगा.