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उम्रकैद की सजा काट रहे 51 कैदी किस आधार पर होंगे रिहा, यहां देखें नियम-शर्तें


Premature Release of Prisoners: झारखंड सरकार ने एक साथ 51 कैदियों को रिहा करने का फैसला किया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई ‘झारखंड राज्य सजा पुनरीक्षण पर्षद’ की 35वीं बैठक में कैदियों को रिहा करने पर सहमति बनी. ये सभी वे कैदी हैं, जो राज्य के अलग-अलग जेलों में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं.

Premature Release of Prisoners: 103 कैदियों में शामिल थे 37 नये नाम

‘झारखंड राज्य सजा पुनरीक्षण पर्षद’ में कुल 103 कैदियों के मामलों की समीक्षा की गयी. इसमें से कुछ ऐसे भी कैदी हैं, जिनके नाम पर पिछली बैठकों में विचार हुआ था, लेकिन उनकी रिहाई को मंजूरी नहीं दी गयी. सीएम हेमंत सोरेन के कांके रोड स्थित आवासीय कार्यालय में हुई बैठक में 37 नये मामलों पर भी विचार किया गया.

रिहाई से पहले राज्य सजा पुनरीक्षण पर्षद कई बातों पर करता है गौर

कोर्ट की ओर से सजाप्राप्त लोगों को आखिर किस आधार पर समय से पहले रिहा (Premature Release of Prisoners) किया जाता है. ‘झारखंड राज्य सजा पुनरीक्षण पर्षद’ किन-किन बातों को ध्यान में रखने के बाद कैदियों को रिहा करने का फैसला करती है. रिहाई के बाद उन लोगों को क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं.

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मानवाधिकार आयोग ने सजा पुनरीक्षण पर्षद को दिये हैं अधिकार

आईए, सबसे पहले आपको बताते हैं कि किस गाइडलाइन के आधार पर सजा पुनरीक्षण पर्षद को यह अधिकार मिला है कि वह किसी सजायाफ्ता कैदी को रिहा करे या नहीं. दरअसल, उम्रकैद की सजा भुगत रहे कैदियों की रिहाई के लिए मानवाधिकार संगठन ने गाइडलांस जारी किये हैं. उसी के आधार पर सजा पुनरीक्षण पर्षद किसी कैदी को रिहा करने का फैसला करता है.

सीआरपीसी की धारा 433ए के तहत सजा पाने वाले कैदी समय पूर्व रिहाई के योग्य

मानवाधिकार आयोग कहता है कि कोई भी पुरुष या महिला सजायाफ्ता, जिसे सीआरपीसी के सेक्शन 433ए की सजा हुई हो, वह सजा पूरी होने से पहले रिहाई के योग्य माना जायेगा. मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि उम्रकैद के मामले में 14 साल की सजा पूरी करने के बाद उसे रिहा किया जा सकता है. हालांकि, ऐसा नहीं है कि 14 साल की सजा पूरी होते ही उसे रहा कर दिया जायेगा. सजा पुनरीक्षण बोर्ड की समीक्षा के बाद ही कैदियों को रिहा किया जाता है.

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कैसे कैदियों को और किस आधार पर किया जाता है रिहा

  • आजीवन कैद की सजा काट रहा कैदी बीमार हो.
  • कैदी की मानसिक स्थिति ठीक नहीं हो.
  • कैदियों की अपराध की प्रवृत्ति कैसी थी.
  • न्यायालयों, संबंधित जिलों के पुलिस अधीक्षकों, जेल अधीक्षक एवं प्रोबेशन अधिकारियों से मिली विस्तृत जानकारी.
  • 14 वर्ष या उससे अधिक समय से सजा काट रहे कैदी जिनकी उम्र ज्यादा हो गयी है.
  • जेल में कैदी का आचरण अच्छा है और ऐसा लगता है कि वह अब अपराध नहीं करेगा.
  • कैदी की उम्र के अलावा पारिवारिक, सामाजिक तथा शैक्षणिक स्थिति पर भी विचार किया जाता है.

रिहा कैदियों को झारखंड में इन योजनाओं का मिलता है लाभ

  • वृद्धावस्था पेंशन
  • विधवा पेंशन
  • राशन कार्ड
  • आयुष्मान कार्ड
  • प्रधानमंत्री आवास योजना
  • मनरेगा ई-श्रम कार्ड

इन लोगों को रिहा करने पर नहीं हो सकता कोई फैसला

  • हत्या और जघन्य अपराध करने वाले जैसे बलात्कार के बाद हत्या, डकैती के दौरान हत्या, दहेद हत्या के आरोपी, 14 साल से कम उम्र के बच्चे का मर्डर, कई हत्या का आरोपी, सजा पाने के बाद जेल में हत्या, पेरोल के दौरान मर्डर, आतंकवादी घटना में मर्डर, स्मगलिंग के दौरान हत्या, ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या करने वालों को इनकी सजा पूरी होने से पहले जेल से रिहा करने का प्रावधान नहीं है.
  • गैंग्स्टर, कांट्रैक्ट किलर, स्मगलर, ड्रग ट्रैफिकिंग में लिप्त लोग, हत्या करने वाले रैकेटियर्स.
  • ऐसे सजायाफ्ता जिनके मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया हो.

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