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lakheesaraay vidhaanasabha: लखीसराय,रामायण से बौद्ध महाविहार तक,पहाड़ियों में छिपा हज़ारों साल का इतिहास



lakheesaraay vidhaanasabha: बिहार की गंगा घाटी सदियों से बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रही है, लेकिन हाल के वर्षों में लखीसराय जिले की दो पहाड़ियों—लाली और उरैन—ने पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का ध्यान पूरी दुनिया की ओर खींच लिया है. लाली पहाड़ी पर मिली लकड़ी की मन्नत पट्टिका भारत में पहली बार मिली है, जबकि उरैन पहाड़ी से बौद्ध भिक्षुओं, मन्नत स्तूप और भगवान बुद्ध के पदचिह्नों के प्रमाण सामने आए हैं. ये खोजें न सिर्फ इतिहास में नई जान डालती हैं, बल्कि पर्यटन और सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण के लिए भी नए अवसर खोलती हैं.

लखीसराय का इतिहास रामायण से भी जुड़ा हुआ है

बिहार के लखीसराय का भगवान राम से गहरा संबंध है. राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का मुंडन यहीं से 14 किमी दूर ऋषि श्रृंगी के आश्रम में हुआ था. श्रृंगी ऋषि, वाल्मीकि रामायण में वर्णित यज्ञकुशल मुनि, राजा दशरथ के दामाद थे. उनकी पत्नी शांता, दशरथ की बेटी थीं जिन्हें अंगदेश के राजा रोमपद ने गोद लिया था. सूखा पड़ने पर रोमपद ने श्रृंगी ऋषि से यज्ञ करवाया, जिससे वर्षा हुई और उनकी शादी शांता से हुई. बाद में दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए श्रृंगी ऋषि से पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया, जिससे राम और उनके तीनों भाई जन्मे. श्रृंगी ऋषि का आश्रम आज लखीसराय के जलप्पा स्थान में स्थित है, जो गर्म जलकुंड और सुंदर पहाड़ियों के लिए प्रसिद्ध है.

लखीसराय में मिला 11वीं सदी का बौद्ध महाविहार, पहली लकड़ी की मन्नत पट्टिका

लखीसराय जिले की लाल/लाली पहाड़ी पर 2017 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुदाई कार्य का शुभारंभ किया था. 2020 तक चली इस खुदाई में एक भव्य बौद्ध महाविहार के अवशेष सामने आए. कार्बन डेटिंग से पता चला कि यह महाविहार 11वीं-12वीं सदी का है. खास बात यह रही कि यहां भारत में पहली बार लकड़ी की मन्नत पट्टिका मिली—जो अब तक केवल म्यांमार और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाई जाती थी. साथ ही यहां भिक्षुणियों के निवास के प्रमाण और 12 वॉच टावर के अवशेष भी मिले.

यह खोज इसलिए भी खास है क्योंकि गंगा घाटी में पहली बार किसी बौद्ध महाविहार का निर्माण पहाड़ी पर मिला है. इससे पहले यहां मिले सभी महाविहार समतल जमीन पर बने थे. खुदाई में महाविहार के अंदर सुरक्षा व्यवस्था, ड्रेनेज सिस्टम और धार्मिक जीवन के कई पहलुओं के प्रमाण मिले. इस खोज को सुरक्षित रखने के लिए मुख्यमंत्री ने लखीसराय में संग्रहालय निर्माण की घोषणा की, जो अब आकार ले चुका है.

लखीसराय में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. खुदाई के नेतृत्वकर्ता डॉ. अनिल कुमार मानते हैं कि जिले के अन्य स्थलों—जैसे घोसी कुंडी, बिछवे, नोनगढ़, लय, और उरैन—में भी उत्खनन से स्वर्णिम इतिहास सामने आएगा.

उरैन पहाड़ी पर पाषाण युग से भी पहले की सभ्यता के प्रमाण

सूर्यगढ़ा प्रखंड का उरैन क्षेत्र भी खास महत्व रखता है. यहां के पहाड़ी इलाके में वर्षों से बौद्ध धर्म के प्रमाण मिलते रहे हैं. ग्रामीण बताते हैं कि पहाड़ी पर एक गुफा है, जो खरपतवार से ढकी है और संभवतः बहुमूल्य मूर्तियां व अन्य अवशेष समेटे हुए है.

पुरातत्वविदों के शोध के अनुसार, उरैन पहाड़ी पर पाषाण युग से भी पहले की सभ्यता के प्रमाण मिले हैं. लॉरेंस ऑस्टिन वाडेल ने 1892 में अपनी रिपोर्ट में यहां बौद्ध स्तूप और मूर्तियों का उल्लेख किया था. बाद में कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रो. रूपेंद्र कुमार चटोपाध्याय और लंदन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रो. दिलीप कुमार चक्रवर्ती ने भी यहां शोध किया. 2016-17 और 2017-18 में एएसआई ने खुदाई का लाइसेंस जारी किया, जिसके दौरान बौद्ध भिक्षुओं के सेल और मिट्टी के बर्तन मिले.

उरैन पहाड़ी का सबसे बड़ा आकर्षण है—मन्नत स्तूप, भगवान बुद्ध के पदचिह्न और बैठने की मुद्रा वाले चित्र. यह प्रमाण बताते हैं कि यह स्थान बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ रहा होगा. लेकिन अतीत में रेलवे लाइन बिछाने के दौरान यहां से पत्थरों और मूर्तियों की चोरी भी हुई, जिससे धरोहर को नुकसान पहुंचा.

आज, लखीसराय की लाली और उरैन पहाड़ियां इतिहास के दो जीवंत अध्याय बन चुकी हैं. यदि इन स्थलों का संरक्षण और पर्यटन विकास सही ढंग से किया जाए तो यह न केवल बिहार के गौरव को दुनिया के सामने लाएगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी नई दिशा देगा.

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