Kailash Gufa : यदि आप झारखंड से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करेंगे (गुमला के रास्ते होते हुए), तो आपको सबसे पहला जिला जशपुर मिलेगा. बस यहीं कैलाश गुफा है. इसके लिए आपको फूलों की घाटी लोरो से गुजरना होगा. हालांकि यहां हाईवे बन जाने की वजह से फूल ज्यादा नहीं बचे लेकिन यहां घाटी की सुंदरता आपका मन जरूर मोह लेगी. इस घाटी में आपको विशाल शिवलिंग वाला एक मंदिर नजर आएगा. जब आप आगे बढ़ेंगे तो चिरईटांड़ से आपको दाहिने कटना है. इसी रास्ते में आपको आगे एक जगह मिलेगा जिसका नाम बगीचा है. यहां से आपको कैलाश गुफा का रास्ता मिलता जाएगा. जैसे–जैसे आप आगे बढ़ेंगे हरियाली आपके मन को मोहती चली जाएगी. यहां का घना वन क्षेत्र अनेक औषधीय गुणों वाले पेड़-पौधों से भरा पड़ा है.

घने जंगल के बीच स्थित कैलाशनाथ गुफा की यात्रा के दौरान प्रकृति की अनुपम छटा देखने को मिलती है. जंगलों और पहाड़ों को पार करते हुए यहां पहुंचना होता है. रास्ते में कई स्थानों पर बहती प्राकृतिक जलधाराएं अत्यंत सुंदर और मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करती हैं. पहाड़ पर चढ़ने के दौरान आपको कैलाश गुफा का साइन बोर्ड नजर आएगा. सावन के महीने में यहां भीड़ की वजह से प्रशासन की ओर से व्यवस्था की जाती है. सावन के महीने में यहां 3 से 4 किमी तक की कतार नजर आती है. लोग घंटों इंतजार करके मंदिर के अंदर पहुंचते हैं. जैसे ही श्रद्धालु मंदिर की गुफा के रास्ते में पहुंचते हैं उनकी थकावट कम हो जाती है. इसका कारण है गुफा के ऊपर पहाड़ से जलधारा बहती रहती है जिसकी वजह से वातावरण ठंडा रहता है.
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आप कतार में खड़े रहेंगे तो कितनी भी गर्मी बाहर क्यों न हो, पहाड़ से गिर रहे पानी और जंगल की वजह से आपको गर्मी का एहसास ही नहीं होगा. पहाड़ से गिर रहे जल को कुछ श्रद्धालु लोटे में जमका करते हैं और भगवान शिव को अर्पित करते हैं. मंदिर की बात करें तो यह पहाड़ को काटकर बनाया गया है.

यहां पाई जाने वाली अनेक जड़ी-बूटियां हिमालय जैसी
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि कैलाश नाथेश्वर गुफा, संत गहिरा गुरु महाराज की तपोभूमि और भगवान महादेव की पावन स्थली है. उन्होंने वर्ष 1956 में महाशिवरात्रि के दिन यहां शिवलिंग की स्थापना की थी. स्थापना से पहले उन्होंने दो वर्षों तक कठोर साधना की थी. यहां सावन और महाशिवरात्रि के अवसर पर भव्य मेला आयोजित होता है. इस गुफा की देखरेख मुख्य रूप से आस-पास के यदुवंशी समाज के लोगों के द्वारा की जाती है. पुजारी बताते हैं कि इस स्थान को पहले “राट पर्वत” के नाम से जाना जाता था, लेकिन भगवान शिव की स्थापना के बाद इसका नाम “कैलाश नाथेश्वर धाम” पड़ गया. यहां पाई जाने वाली अनेक जड़ी-बूटियां हिमालय जैसी हैं, इसलिए इसे हिमालय का ही एक अंग माना जाता है.

सावन माह के प्रदोष में अभिषेक का विशेष महत्व
सावन माह के प्रदोष में कैलाशनाथ गुफा में अभिषेक का विशेष महत्व होता है. इस अवसर पर तीन दिनों तक जंगल और मैदानों से घिरे इस क्षेत्र में भारी भीड़ उमड़ती है, जिससे दर्शन के लिए भक्तों को लंबा इंतजार करना पड़ता है. भक्त प्रदोष से दो दिन पहले जल उठाते हैं और प्रदोष के दिन शिवलिंग पर अर्पित करते हैं. सावन में समाजसेवियों द्वारा कांवरियों के लिए विभिन्न स्थानों पर निःशुल्क भोजन और ठहरने की व्यवस्था की जाती है.
