Chanakya Niti: यह लेख चाणक्य नीति के दृष्टिकोण से करियर बनाने की उन पांच आम गलतियों पर रोशनी डालता है, जो लोग अक्सर अनजाने में करते हैं. जानिए किन-किन लोगों का सहारा लेना आपके करियर के लिए नुकसानदायक हो सकता है.
Chanakya Niti: करियर बनाने के लिए इंसान को किसी न किसी की जरूरत तो पड़ती ही है. क्योंकि बिना किसी के सपोर्ट के कोई आगे नहीं बढ़ सकता है. ज्यादातर मामलों में इंसान के परिवार वाले ही इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं. लेकिन कई परिस्थितियां ऐसी होती है कि हमें बाहर के लोगों का भी सहारा लेना पड़ जाता है. बहुत बार यह भी काम कर जाता है, लेकिन चाणक्य की मानें तो जीवन में आगे बढ़ने के लिए अगर किसी चीज की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है वह है आत्मबल के साथ बुद्धि. उन्होंने साफ तौर पर चेताया था कि शिखर तक पहुंचने के लिए पल-पल आपको बुद्धि का इस्तेमाल करना जरूरी है, क्योंकि अगर सूझ बूझ से काम नहीं लिया गया तो सही समय पर सही निर्णय नहीं ले पाएंगे. इस लेख में हम जानेंगे कि जिंदगी के मुकाम में पहुंचने के लिए किन लोगों का सहारा नहीं लेना चाहिए.
किसी और की दौलत पर निर्भरता
चाणक्य कहते हैं, “परधनं नाशं याति.” यानी कि जो व्यक्ति हमेशा दूसरों के धन पर निर्भर रहता है, वह कभी आत्मनिर्भर नहीं बन सकता. हो सकता है शुरु करने से पहले घर में आर्थिक तंगी छा जाए. लेकिन इसका हल दूसरों का धन कतई नहीं हो सकता है. इसलिए पैसे की कमी हो जाए तो ज्यादा मेहनत सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है.
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परिचितों की सिफारिशों पर करियर बनाना
बहुत से लोग सोचते हैं कि जान-पहचान से नौकरी मिल जाए, तो मेहनत की क्या ज़रूरत. लेकिन चाणक्य के अनुसार ऐसा सहारा क्षणिक होता है. इससे आप सच्ची काबिलियत और संघर्ष से दूर हो जाते हैं, जो आगे चलकर असफलता का कारण बनता है.
किस्मत या भाग्य पर अत्यधिक विश्वास
चाणक्य कहते हैं कि भाग्य भरोसे बैठा व्यक्ति कभी महान नहीं बनता. करियर में आगे बढ़ने के लिए कर्म और रणनीति जरूरी है. भाग्य को अपना अवसर मानना चाहिए न कि अपना पड़ाव. इसलिए आगे बढ़ने के लिए बेहतर तैयारी जरूरी है.
भीड़ की नकल करना
चाणक्य मानते थे कि हर व्यक्ति विशेष है. अगर आप यह सोचकर किसी करियर का चयन करते हैं कि बाकी लोग भी यही कर रहे हैं, तो आप अपनी पहचान खो बैठेंगे. चाणक्य नीति यही कहती है कि करियर अपनी प्रवृत्ति, रुचि और योग्यता के अनुसार चुनना चाहिए.
भावनात्मक सहारा लेना
करियर निर्णय में भावनात्मकता जगह नहीं रखती. चाणक्य कहते हैं कि निर्णय तर्क और दूरदृष्टि से लिए जाने चाहिए. परिवार या किसी प्रियजन की भावनाओं के दबाव में आकर लिया गया फैसला लंबे समय में आपको नुकसान पहुंचा सकता है.
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