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क्या नीलेश और विधि का प्यार जीत पाया जातिवाद की दीवारों से… या आखिर में हुई मौत? जानें क्लाइमेक्स में क्या हुआ


Dhadak 2 Ending Explained: 2018 में आई फिल्म धड़क ने प्यार और समाज के बीच की दीवारों को दिखाया था. अब धड़क 2 उसी रास्ते को आगे बढ़ाते हुए एक और गहरी कहानी लेकर आई है. इस बार लव स्टोरी नीलेश और विधि की है, जो दो अलग-अलग जातियों से हैं. नीलेश एक दलित लड़का है और विधि ऊंची जाति से.

शाजिया इकबाल के निर्देशन में बनी इस फिल्म में सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी ने लवर्स के रोल में दिल छू लेने वाला प्रदर्शन किया है. इस बार जो चीज सबसे ज्यादा चर्चा में है, वह है फिल्म का क्लाइमेक्स जो ना सिर्फ दर्शकों को झकझोरता है, बल्कि गहरा सामाजिक संदेश भी छोड़ जाता है. ऐसे में अगर आपने अबतक फिल्म नहीं देखी, तो आइए आपको समझाते हैं इसकी एंडिंग और आखिर में किसकी मौत होगी.

कहानी का मोड़: नीलेश की हत्या की कोशिश

धड़क 2 की कहानी पहले भाग ‘धड़क’ की तरह एक दुखद हत्या पर खत्म नहीं होती, बल्कि इसमें एक नया मोड़ और उम्मीद की किरण दिखाई देती है. विधि के चाचा और चचेरे भाई जातिवाद की सोच में इतने अंधे हो जाते हैं कि नीलेश को मरवाने की कोशिश करते हैं. वे उसे बुरी तरह पीटकर रेलवे ट्रैक पर मरने के लिए छोड़ देते हैं. लेकिन तभी नीलेश को अपने मरे हुए डॉग बिरजू का सपना आता है. बिरजू उसे प्यार से जगाता है, और नीलेश होश में आकर ट्रैक से हट जाता है.

एक्शन और बदला

होश में आने के बाद नीलेश उन लोगों से लड़ता है. वह विधि के चचेरे भाई को पकड़ता है और उसके घर जाकर सबके सामने उसकी पिटाई करता है. लेकिन जब उसे मारने का मौका मिलता है, तो वह रुक जाता है.

इसके बाद नीलेश समाज में जाति के नाम पर हो रहे भेदभाव पर एक इमोशनल भाषण देता है. यह देखकर विधि टूट जाती है और अपने परिवार के खिलाफ खड़ी हो जाती है. वह सबके सामने नीलेश का साथ देती है.

नई शुरुआत और बदलाव

फिल्म के आखिरी सीन में नीलेश और विधि लॉ (कानून) की परीक्षा देते हुए दिखते हैं. नीलेश की पेन खराब हो जाती है और चौंकाने वाली बात ये होती है कि विधि का वही चचेरा भाई उसे अपनी पेन दे देता है. इससे साफ होता है कि वह अब बदल रहा है.

फिर दोनों एक साथ बस में सफर करते हुए दिखते हैं, जो नई खुशहाल जिंदगी की तरफ इशारा करती है.

क्लाइमेक्स में किसकी मौत होती है?

फिल्म में नीलेश और विधि बच जाते हैं, लेकिन हत्यारा शंकर (जो नीलेश को मारने आया था) खुद ही अपनी जान ले लेता है. उसे लगता है कि वह अपने ‘धर्म’ में असफल हो गया है, क्योंकि वह दलित लड़के को मार नहीं पाया. इसी गुस्से और हार से दुखी होकर वह उसी रेलवे ट्रैक पर जाकर आत्महत्या कर लेता है.

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