EBM News Hindi
Leading News Portal in Hindi

गुरु वही, जो निखारे जीवन! आज के युग में गुरु-शिष्य रिश्ते का बदलता स्वरूप


‘गुरु पूर्णिमा’ न केवल गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में ज्ञान व विनय की अभिव्यक्ति भी है. संत कबीर कहते हैं- ‘गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिले न मोक्ष, गुरु बिन लहै न सत्य को, गुरु बिन मिटै न दोष’. अर्थात गुरु की कृपा के बिना न तो ज्ञान मिलता है, न ही सत्य-असत्य का ज्ञान होता है और न ही मोक्ष मिलता है. यह सब गुरु की छाया में ही संभव है. 

 जीवन को दिशा देते हैं गुरु 

गुरु केवल पाठ पढ़ाने वाले नहीं होते, बल्कि जीवन को दिशा देने वाले पथ-प्रदर्शक भी होते हैं. उनके बिना जीवन की यात्रा अधूरी है. गुरु पूर्णिमा के इस विशेष अवसर पर प्रभात खबर ने शहर के कुछ शिष्यों से संवाद कर यह समझने का प्रयास किया है कि बदलते समय के साथ गुरु-शिष्य संबंधों में क्या परिवर्तन आया है. क्या आज के गुरु वैसा ही मार्गदर्शन दे पा रहे हैं जैसा 20 वर्ष पहले मिलता था? और क्या आज के शिष्य उसी श्रद्धा व समर्पण के साथ अपने गुरु के प्रति जुड़ाव महसूस करते हैं?

1. शिक्षक समाज से केवल सम्मान पाने की चाह रखते हैं: प्रो केसी सिन्हा, पूर्व कुलपति, पटना विश्वविद्यालय

भारत में गुरु और शिष्य के रिश्ते प्राचीन काल से ही काफी प्रगढ़ रहे हैं. गुरु हमेशा अपने शिष्य को खुद से भी बड़ा मुकाम दिलाने के लिए प्रयासरत रहते हैं. किसी विद्यार्थी पर अगर सही मायने में गुरु का प्रभाव पड़ जाता है, तो उसमें नैतिक मूल्य, अनुशासन और संस्कार खुद-ब-खुद आ जाता है. शिक्षक अपने शिष्य को बेहतर बनाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं. एक गुरु की समाज से केवल सम्मान पाने की लालसा रहती है. हमारे भी जीवन पर प्रो ज्ञानंद चटर्जी और एमएस नाथ के साथ ही अन्य शिक्षकों का प्रभाव रहा जिसकी वजह से मुझे समाज में अलग पहचान मिली. जब हमारा कोई भी छात्र किसी बड़े मुकाम को हासिल करता है तो सबसे अधिक खुशी गुरू को ही होती है. मौजूदा दौर में जररूत है कि गुरु और शिष्य के बीच बेहतर बांडिंग स्थापित की जाये. इसमें शिक्षक और शिष्य दोनों को ही आगे बढ़ कर पहल करने की आवश्यकता है.

2. गुरु के महत्व को समझने के बाद ही शुरू होता है ज्ञान का वितरण: प्रो रासबिहारी सिंह, पूर्व कुलपति, पटना विश्वविद्यालय

गुरु शिष्य परंपरा सनातन परंपरा रही है. भारत में ब्रिटिश साम्राज्य स्थापित होने के बाद इस परंपरा का काफी पतन हुआ है. लेकिन मौजूदा दौर में भारती की प्राचीन गुरु शिष्य परंपरा को स्थापित करने के लिये एनइपी 2020 में रिवाइव किया गया है जो काफी सराहनीय है. मौजूदा दौर में सनातन परंपरा और आधुनिक शिक्षा को साथ लेकर चलने से ही भारत अपनी प्राचीन गुरु शिष्य परंपरा को अपना सकता है. मुझे याद है कि हमारे कॉलेज के शिक्षक प्रो आद्या शरण ने ट्यूटोरियल टेस्ट में बेहतर प्रदर्शन करने पर मुझे बुलाकर वो इनाम की राशि जो चेक रूप में दिया था जिसे मैं भूल गया था. उस ट्यूटोरियल टेस्ट में मुझे 50 में 45 अंक मिले थे जिससे हमारे शिक्षक काफी खुश हुए थे और कहा था कि कभी किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे बताना. इसके बाद मेरा लिखा नोट्स भी सर करेक्ट कर देते थे. हमारी शिक्षकों से ऐसी बांडिंग थी कॉलेज के बाद भी घर पर बुलाकर हमें पढ़ाते थे. वैसे स्कूल के दिनों में प्रभाकर झा सर ने इतनी अच्छी तालीम दी जिसके बदौलत मैं ग्रामीण परिवेश से निकल पटना विश्वविद्यालय में नामांकन कराया. मौजूदा दौर में गुरु शिष्य परंपरा का पतन हुआ जिसे वापस सुदृढ़ बनाने के लिये समाज के हर वर्ग को आगे आना होगा.

3. ‘गुरु, आपने मेरा सपना साकार किया’: एक छात्रा की भावनात्मक कहानी: प्रो इंद्रजीत प्रसाद राय, प्राचार्य, कॉलेज ऑफ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस

कॉलेज ऑफ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस के प्राचार्य ने कहा कि पिछले वर्ष की बात है. कॉलेज में प्लेसमेंट का दौर चल रहा था. कई विद्यार्थियों को नौकरी मिली. केवल वोकेशनल कोर्स नहीं, बल्कि सामान्य (जनरल) विषयों के छात्रों को भी प्रतिष्ठित टीसीएस जैसी कंपनियों में स्थान मिला. लेकिन इन सबके बीच एक पल ऐसा आया, जिसने हर किसी को भीतर तक छू लिया. कॉलेज की एक छात्रा, जो साइकोलॉजी विषय की छात्रा थी, मिठाई का डिब्बा लेकर प्राचार्य कक्ष में आयी. चेहरे पर मुस्कान थी लेकिन आंखें नम थीं. वह मेरे के सामने खड़ी होकर अचानक रोने लगी. यह दुख के नहीं, खुशी के आंसू थे. ऐसे आंसू जो दिल के सबसे कोमल कोने से निकलते हैं. कांपती आवाज में उसने कहा, ‘सर’ मुझे यकीन नहीं हो रहा… बिना एक पैसा खर्च किये, बिना कोचिंग, बिना किसी सिफारिश के, सिर्फ आप सबकी मेहनत और इस कॉलेज की बदौलत, मुझे टीसीएस में जॉब मिल गयी है. मैं साइकोलॉजी जैसे विषय की छात्रा हूं, फिर भी मुझे प्लेसमेंट मिला. यह मेरे लिए सिर्फ नौकरी नहीं, सम्मान है… पहचान है. आप मेरे लिए सिर्फ शिक्षक नहीं, जीवन निर्माता हैं. उसकी यह बात पूरे कॉलेज के लिए एक संदेश बन गयी कि जब शिक्षक सच्चे मन से ज्ञान दें और संस्था छात्रों को अवसर दे, तो किसी भी पृष्ठभूमि का छात्र बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है.

4. हमारे समय में गुरु एक मार्गदर्शक हुआ करते थे: डॉ अरुणा चौधरी, रिटायर्ड पीयू पीजी मैथिली एचओडी

शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देते हुए 30 साल से ज्यादा हो गये हैं. पिछले साल पीयू मैथिली विभाग की एचओडी पद को संभालते हुए सेवानिवृत्त हो चुकी हूं. गुरु शिष्य परंपरा आज भी है बस इसके स्वरूप में अंतर आया है. हमारे समय में जब हम शिष्य हुआ करती थी तो दूर से टीचर के देख कर रास्ते से हट जाते थे. जब वह पढ़ाते तो क्लास में एक दम शांति होती थी. उनकी शिक्षा के साथ सही मार्गदर्शन ने इस मुकाम तक पहुंचाया है. जब मैं शिक्षिका बनीं तो जनरेशन हैलो मैम, हाय मैम का हो गया. रेसपेक्ट में कोई कमी नहीं आयी लेकिन सोच में अंतर बहुत आया. आज की जनरेशन में धैर्य नहीं है और अगर कोई शिक्षक उन्हें कोई सलाह दे तो जरूरी नहीं वह उन्हें अपनी जिंदगी में शामिल करें. पीजी में जब थी तो बच्चों का भरपूर प्यार मिला जो ताउम्र मेरे साथ रहेगा.

5. गुरु-शिष्य परंपरा में आज के आधुनिकता का असर है: प्रियदर्शनी नारायण, रिटायर्ड पीयू साइकोलॉजी एचओडी

जिस दौर में हमारी शिक्षा हुई उस दौर में गुरु का बहुत उचा स्थान होता था. उनके पढ़ाने की शैली से लेकर बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण में ज्यादा ध्यान रहता था. अनुशासन में रहना जरूरी था. 1986 में खुद शिक्षिका बनीं तो इन्हीं बातों को शामिल किया और बच्चों को बेहतर शिक्षा देने की मुहिम में लगी. बदलते वक्त के साथ शैक्षणिक कार्यों में तकनीक जुड़ गया. अभी की जनरेशन को उनकी पढ़ाई याद नहीं होती है जबकि आज भी हमें अपने गुरु के पढ़ाएं पाठ याद है. आज के समय में शिक्षक-शिष्य हम उम्र की तरह हो गये है जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं.