EBM News Hindi
Leading News Portal in Hindi

14वें दलाई लामा का चीन के खिलाफ संघर्ष और भारत आने की कहानी


Dalai Lama : उस समय के पूर्वोत्तर तिब्बत (अम्दो), जो अब चीन का क्विंघई प्रांत है, में 6 जुलाई ,1935 को एक किसान परिवार में जन्में 14वें दलाई लामा का मूल नाम ल्हामो थोंडुप था, जब उन्हें दलाई लामा के रूप में मान्यता मिली, तब उनका धार्मिक नाम रखा गया तेनजिन ग्यात्सो. एक खोज दल अम्दो के तक्तसेर गांव पहुंचा, जहां उन्हें दो साल का एक असाधारण बालक ल्हामो थोंडुप मिला. उन्होंने 13वें दलाई लामा की पुरानी वस्तुओं जैसे माला, छड़ी, ड्रम आदि का पहचाना और 4 वर्ष की उम्र से पहले में तिब्बत की राजधानी ल्हासा में स्थित पोटाला पैलेस में उन्हें औपचारिक पदवी दी गयी और मठवासी प्रशिक्षण देने के साथ ही बौद्ध दर्शन का अध्ययन कराया गया. नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा को बीजिंग अलगाववादी कहता है, पर उन्हें दुनिया के सबसे प्रभावशाली धार्मिक नेताओं में से एक माना जाता है.

पंद्रह वर्ष की आयु में किया तिब्बती जनता का नेतृत्व

वर्ष 1950 में चीनी सैनिक तिब्बत में प्रवेश कर गये. 15 वर्ष की आयु में दलाई लामा तिब्बत के राजनीतिक नेता बने और उन्होंने संकट के समय तिब्बती जनता का नेतृत्व किया. वर्ष 1959 में चीन ने तिब्बत पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित कर लिया और चीन के खिलाफ असफल विद्रोह के कारण दलाई लामा को निर्वासित होकर भारत आना पड़ा और फिर कभी वे तिब्बत वापस नहीं लौटे. वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बस गये और वहां एक निर्वासित सरकार का गठन किया. तब से धर्मशाला का त्सुगलाखंग मठ दलाई लामा का आध्यात्मिक निवास है और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र भी है और वे तिब्बती स्वशासन (अर्थपूर्ण स्वायत्तता) की मांग का नेतृत्व करते आ रहे हैं. वे चीन के दमन के खिलाफ एक शांतिपूर्ण संघर्ष का चेहरा हैं. दलाई लामा निर्वासित तिब्बती समुदाय के लिए संवेदनात्मक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक हैं. उन्होंने तिब्बती भाषा, धर्म, पहनावा, शिक्षा और पहचान को दुनिया भर में संरक्षित और प्रचारित किया है.

तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद ली भारत में शरण

भारत की हिमालय पर्वत श्रृंखला के उत्तर में स्थित है तिब्बत का पठार. शांत, गंभीर, दृढ़. सदियों पहले यहां भारत से होकर चीन और नेपाल के रास्ते बौद्ध धर्म का प्रचार हुआ और तिब्बत बौद्ध संस्कृति का केंद्र बन गया. सदियों तक तिब्बत की यह बौद्ध पहचान बनी रही, जिसे मंगोल शासकों ने भी स्वीकार किया. इसी तिब्बत की 20 वीं सदी में हिंदी के महान यायावर लेखक राहुल सांकृत्यायन ने यात्रा की और वहां से बहुमूल्य बौद्ध साहित्य लेकर वे भारत आये. बौद्ध धर्म की जन्मस्थली होने के कारण भारत और तिब्बत का संबंध स्वाभाविक और सदियों पुराना रहा है. आधुनिक काल में चीन और भारत के बीच स्थित होने से इसकी भू-सामरिक महत्ता भी काफी बढ़ गयी क्योंकि भारत के लिए यह एक बफर क्षेत्र था, जो चीनी खतरे को कम करता था. लेकिन 1950 में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा करने के बाद से तिब्बत और तिब्बती लोग अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान और स्वायत्तता-स्वतंत्रता को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. 1959 में इस पहचान पर एक बड़ा संकट तब आया, जब तिब्बती बौद्धों के धर्मगुरु दलाई लामा को तिब्बतियों द्वारा चीनी शासन के खिलाफ एक असफल विद्रोह के बाद अपने हजारों अनुयायियों के साथ भाग कर भारत में शरण लेना पड़ा. 1962 में चीन के भारत पर हमले में तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु 14वें दलाई लामा को तत्कालीन भारत सरकार द्वारा शरण देने को लेकर चीनी नाराजगी का भी हाथ रहा.

तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा का स्थान

Dalai Lama Security
Dalai lama security, ani

प्राप्त लिखित इतिहास के अनुसार तिब्बत में बौद्ध धर्म सबसे पहले चीन और नेपाल के रास्ते सातवीं सदी की शुरुआत में पहुंचा और आठवीं सदी के उत्तरार्ध में यह यहां का राजकीय धर्म बन गया.लेकिन, 9वीं शताब्दी के दौरान तिब्बती साम्राज्य और बौद्ध मठ ढह गये. यहां बौद्ध धर्म फिर 10वीं शताब्दी के मध्य में पनपा, जिसे दूसरा प्रसार कहा जाता है. तिब्बती बौद्ध मतावलंबी बौद्धों के वज्रयान शाखा से संबंधित हैं,तांत्रिक ग्रंथों पर आधारित है. वज्रयानी बौद्ध धर्म में योग्य गुरु, जिसे तिब्बत में लामा कहा जाता है, की अहम भूमिका है. वही दीक्षा देता है. दलाई लामा तिब्बती बौद्धों की सर्व प्रमुख गेलुकपा संप्रदाय के आध्यात्मिक तथा राजनीतिक नेता माने जाते हैं. तिब्बती बौद्धों में दलाई लामा के पुनर्जन्म में विश्वास किया जाता है और उन्हें अवलोकितेश्वर का अवतार माना जाता है. दलाई लामा उपाधि तिब्बती शब्द लामा (शिक्षक या नेता) को मंगोलियन शब्द ता-ले(महासागर), जिसका अंग्रजीकृत रूप दलाई है, के साथ जोड़ने से बनी है और 16वीं शताब्दी में गेलुकपा संप्रदाय के नेता के लिए प्रयुक्त उपाधि बन गयी. तिब्बतियों के लिए दलाई लामा महज एक धार्मिक नेता नहीं हैं, बल्कि तिब्बती पहचान, संस्कृति और संघर्ष के प्रतीक भी हैं. 17वीं सदी से लेकर 1959 तक, दलाई लामा तिब्बत के धार्मिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक शासक भी थे.

शांति एवं बौद्ध विचारों के प्रसार के लिए मिला नोबेल

परंपरागत रूप से दलाई लामा तिब्बत के राजनीतिक नेता भी होते हैं, लेकिन 2011 में उन्होंने निर्वासित तिब्बती सरकार में अपनी राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका छोड़ दी और सत्ता को निर्वासित तिब्बती सरकार के लोकतांत्रिक रूप से चुने गये प्रतिनिधियों को सौंप दिया, लेकिन आध्यात्मिक नेता के रूप में अपना पद बरकरार रखा. 14वें दलाई लामा ने अपने से पूर्व के दलाई लामाओं से इतर एक मठ में रहस्यमय जीवन बिताने से इतर विश्वभर की यात्राएं की, शांति एवं बौद्ध विचारों का प्रसार किया. दलाई लामा को 1989 में शांति के नोबेल पुरस्कार सहित कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं.

यह भी पढ़ें : Iran Israel War : कभी दोस्त रहे ईरान- इस्राइल ऐसे बने कट्टर दुश्मन