Bihar News: एक तरफ सरकार आम लोगों को सस्ती व गुणवत्तापूर्ण दवा की उपलब्धता सुनिश्चित कराने की कोशिश कर रही है, तो दूसरी ओर बिहार में नियम-कानून की धज्जियां उड़ाते हुए दवा दुकानों का संचालन किया जा रहा है. बिना फार्मासिस्ट के रिटेल दवा दुकानों को चलाने के साथ ही बिना कैश मेमो के दवाओं की बिक्री की जा रही है. प्रभात खबर की पड़ताल में सामने आया कि मुंगेर में हर महीने करोड़ों की दवाएं बिना किसी कैश मेमो के बेची जा रही हैं. इससे न केवल सरकारी राजस्व को क्षति पहुंचा रही है, बल्कि मरीजों की सुरक्षा के साथ भी गंभीर खिलवाड़ है.
दवा दुकानों की नहीं हो रही ठीक से निगरानी
दवा लोगों के जीवन से जुड़ा मामला है. रोगियों को गुणवत्तापूर्ण व मानक के अनुसार दवा मिले यह सुनिश्चित करना औषधि विभाग की जिम्मेदारी है. इसके लिए विभाग ने एक-एक जिले में कई ड्रग इंसपेक्टर की तैनाती कर रखी है. जिला स्तर पर सहायक औषधि नियंत्रक व प्रमंडल स्तर पर उप औषधि नियंत्रक पदस्थापित हैं. मुंगेर जिले में भी चार ड्रग इंसपेक्टर का पद सृजित है. बावजूद दवा दुकानों की सही से निगरानी नहीं हो पा रही है. मुंगेर के ड्रग इंसपेक्टर-2 शिव किशोर चौधरी का कहना है कि उन्हें प्रतिमाह 20 दुकानों का निरीक्षण करना है, लेकिन वे इससे अधिक निरीक्षण करते हैं. उनका मानना है कि वे दुकानदारों को जागरूक करते हैं कि वे दो रोटी कम खाएं, लेकिन नियम का पालन करें.
मुंगेर में औसतन हर माह आठ करोड़ रिटेल दवा का कारोबार
मुंगेर जिले में लगभग 600 से अधिक रिटेल मेडिकल स्टोर्स हैं, जहां औसतन हर महीने आठ करोड़ रुपये का रिटेल दवा कारोबार होता है. जानकारों के अनुसार, इसका लगभग 90% हिस्सा बिना बिल के होता है. अर्थात ग्राहकों को दुकानदार बिल नहीं देते हैं. सूत्रों की मानें, तो दुकानदार जान-बूझकर बिना बिल दिये दवा बेचते हैं, ताकि टैक्स की चोरी कर सकें. इसके लिए दुकानदार कई प्रकार के हथकंडे भी अपना रहे हैं. एक दुकानदार ने ग्राहक द्वारा बिल मांगने पर सीधा जवाब दिया गया कि बिल देंगे तो दवा महंगी पड़ेगी. आप चाहें तो ऐसे ही ले जाइए.
बिना बिल के नकली व एक्सपायर दवाओं होने आशंका
बिना कैश मेमो के दवा बिकने की सबसे खतरनाक कड़ी यह है कि इससे नकली, घटिया या एक्सपायरी दवाएं भी ग्राहकों को बेच दी जाती हैं. दवाओं की खुदरा बिक्री में पारदर्शिता बनाये रखने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने सख्त नियम बनाये हैं. पर, यहां नियमों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं. बड़े ब्रांड की महंगी दवाओं से लेकर जीवनरक्षक इंजेक्शन तक ग्राहकों को बिना बिल के बेचे जा रहे हैं.
इस खेल में बड़े व्यापारी से लेकर छोटे खुदरा विक्रेता तक शामिल हैं. ग्राहक के पास कोई खरीद प्रमाण नहीं होने के कारण शिकायत दर्ज कराना भी मुश्किल होता है. कई बार मरीज के स्वास्थ्य में गंभीर गड़बड़ी इसलिए हो जाती है, क्योंकि उसे गलत या नकली दवा दे दी जाती है. जब मरीज के परिजन दुकान पर पहुंचते हैं, तो दुकानदार कहता है कि कोई बिल नहीं है, आप कैसे साबित करेंगे कि दवा यहीं से खरीदी गयी है. इस परिस्थिति में ग्राहक निराश हो जाते हैं.
औषधि नियंत्रण विभाग का रवैया ढीला
औषधि नियंत्रण विभाग इस गोरखधंधे से पूरी तरह वाकिफ है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कभी-कभार यह औपचारिक जांच और नोटिस तक ही सीमित रहता है. जिले में बड़ी संख्या में थोक दुकानों के लाइसेंस पर खुदरा दवाएं बेची जा रही हैं. ऐसे दुकानदारों की मजबूरी है कि वे सीधे ग्राहक को दवा का बिल नहीं दे सकते, क्योंकि वह लाइसेंसी दवा दुकान के नाम पर ही बिल बना सकता है. विदित हो कि रिटेल दुकान में फार्मासिस्ट के लफड़े से बचने के लिए मुंगेर जिले में थोक दुकान का लाइसेंस बनाने का खेल चल रहा है, जहां खुदरा दवाएं बेची जाती हैं. सदर प्रखंड के नौवागढ़ी में दो थोक दुकानों का लाइसेंस बनवाकर ड्रग इंसपेक्टर की मिलीभगत से खुलेआम रिटेल दुकान चलायी जा रही है.
क्या कहते हैं ड्रग इंसपेक्टर?
ड्रग इंसपेक्टर शिव किशोर चौधरी का कहना है कि दवा दुकानदारों को जागरूक किया जा रहा है कि वे नियमों का पालन करें. खुदरा दुकानदारों द्वारा दवा खरीदने वालों को बिल देना जरूरी है. दवा दुकान की जांच में इस बात को भी देखा जाता है.
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