झारखंड का एक गांव, जहां एक भी मुस्लिम नहीं, 7 दशक से हिंदू परिवार मना रहा मुहर्रम Jharkhand Village Hedum in Chatra Muharram 2025 celebrating Hindu family
Jharkhand Village: चतरा, दीनबंधु-जहां एक ओर देश में धर्म और जाति के नाम पर उन्माद और वैमनस्यता की घटनाएं बढ़ रही हैं, वहीं चतरा जिले के लावालौंग प्रखंड के हेड़ुम गांव का एक हिंदू परिवार आपसी एकता की मिसाल पेश कर रहा है. कामाख्या सिंह भोगता का परिवार 71 वर्षों से मुहर्रम का पर्व मनाता आ रहा है. इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है. यह परिवार मुहर्रम के साथ-साथ रमजान में रोजा, ईद, बकरीद समेत अन्य पर्व भी मनाता है. मुहर्रम में ताजिया तैयार करने में पूरे परिवार के साथ-साथ गांव के लोग भी सहयोग करते हैं. परिवार की ओर से गाजे-बाजे के साथ मुहर्रम का जुलूस निकाला जाता है. इस वर्ष भी मुहर्रम की दसवीं को परिवार के सदस्य जुलूस निकालेंगे, जिसमें गांव के लोग सहयोग करेंगे.
मुहर्रम पर निकलता है जुलूस, मेले का होता है आयोजन
मुहर्रम के जुलूस में हिंदू और मुसलमान शामिल होते हैं और आपसी एकता का परिचय देते हैं. जुलूस गांव से निकलकर कल्याणपुर बाजारटांड़ पहुंचता है. यहां मेला का आयोजन किया जाता है. इस मेले में दूर-दराज से लोग पहुंचते हैं और खरीदारी करते हैं. गांव के युवक पैकाह बनते हैं. कमर में घुंघरू बांध दौड़ लगाते हैं. जुलूस के दौरान लाठी खेल का करतब भी दिखाते हैं. जुलूस देखने के लिए प्रखंड के कई गांवों के लोग पहुंचते हैं.
तीन पीढ़ी से मनाते आ रहे हैं मुहर्रम-कामाख्या सिंह भोगता
कामाख्या सिंह भोगता का परिवार तीन पीढ़ी से मुहर्रम मनाता आ रहा है. उनके मुताबिक मुहर्रम की शुरुआत उनके दादा स्व बंधु गंझू ने की थी. दादा के निधन के बाद पिता जुगती गंझू ने परंपरा को आगे बढ़ाया. अब वह परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.
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फकीर की बात मान मनाने लगे मुस्लिम त्योहार
कामाख्या सिंह के अनुसार उनके दादा की जब भी कोई संतान होती थी, तो जन्म लेते ही उसकी मौत हो जाती थी. इससे दादा काफी चिंतित थे. इसी चिंता में वह पुत्र और बहू को लेकर गांव छोड़ कहीं जा रहे थे. चारू के जंगल में एक बरगद पेड़ के नीचे कुछ देर के लिए आराम कर रहे थे, तभी बरगद पेड़ के पास एक फकीर आया. उसने परेशानी और गांव छोड़ने का कारण पूछा. दादा ने पूरी घटना की जानकारी दी. इस पर फकीर ने मुहर्रम, ईद, बकरीद और अन्य मुस्लिम त्योहार मनाने की बात कही. उसके बाद परिवार वापस गांव लौटा और फकीर की बात मान मुस्लिम त्योहार मनाना शुरू किया. उसके बाद से ही पूरा परिवार संपन्न हो गया. उनके पिता के पांच भाई और चार बहन हुए. फिलहाल परिवार में लगभग 100 से अधिक सदस्य हैं.
एक ही कैंपस में हैं मंदिर और मस्जिद
कामाख्या सिंह भोगता के घर के आंगन में मंदिर और मस्जिद है. मस्जिद में अजान और मंदिर में आरती होती है. हिंदू त्योहार, पूजा-पाठ के साथ-साथ मुस्लिम त्योहार मनाते हैं और इबादत करते हैं. पूरे जिले में यह मंदिर और मस्जिद एकता की मिसाल है.
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