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अल-कायदा से जुड़ा संगठन ‘अल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन’ कौन है? जिस पर 3 भारतीयों के अपहरण का शक


Who is JNIM: पश्चिम अफ्रीका के माली देश से एक बड़ी और चिंताजनक खबर सामने आई है. 1 जुलाई को माली के कायेस इलाके में स्थित डायमंड सीमेंट फैक्ट्री पर हथियारों से लैस आतंकवादियों ने हमला किया और वहां काम कर रहे तीन भारतीय नागरिकों को अगवा कर लिया. यह हमला सुनियोजित था और आतंकियों ने फैक्ट्री को निशाना बनाकर सीधे भारतीय कर्मचारियों को बंधक बना लिया. घटनास्थल पर मौजूद लोगों के अनुसार, यह हमला काफी तेजी और ताकत के साथ अंजाम दिया गया.

इस अपहरण के पीछे अल-कायदा से जुड़ा एक कट्टरपंथी संगठन जमात नुसरत अल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन (JNIM) हो सकता है, हालांकि अभी तक किसी भी संगठन ने इसकी आधिकारिक जिम्मेदारी नहीं ली है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि हमले की शैली और समय को देखते हुए इसमें JNIM की भूमिका होने की संभावना अधिक है. इससे पहले भी यह संगठन माली में आतंकी गतिविधियों में शामिल रहा है.

कौन है JNIM?

जमात नुसरत अल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन (JNIM) 2017 में बना एक जिहादी संगठन है, जो अल-कायदा इन द इस्लामिक मघरेब (AQIM) का ही एक घटक है. यह संगठन माली के अलावा बुर्किना फासो और नाइजर जैसे साहेल क्षेत्र के देशों में सक्रिय है. JNIM का उद्देश्य इस्लामी शासन स्थापित करना और क्षेत्र से विदेशी ताकतों, विशेष रूप से फ्रांस और पश्चिमी देशों के प्रभाव को खत्म करना है. यह संगठन सरकार और विदेशी संस्थानों पर हमले, अपहरण और बम धमाकों के लिए कुख्यात है. इस संगठन की रणनीति में विदेशी नागरिकों को अगवा करना शामिल रहा है. ये अपहरण आमतौर पर फिरौती के लिए होते हैं, जिससे आतंकी संगठन अपनी गतिविधियों के लिए वित्तीय मदद जुटाते हैं. डायमंड सीमेंट फैक्ट्री पर हुआ हमला भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.

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अपहरण के संभावित कारण

हालांकि भारतीय नागरिकों के अपहरण की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन इसकी जिम्मेदारी किसी भी संगठन ने नहीं ली है. सुरक्षा विश्लेषकों के मुताबिक, इसके पीछे मुख्यतः दो संभावनाएं हो सकती हैं – एक, आर्थिक कारण जिसमें फिरौती लेकर आतंकी संगठन अपने संसाधनों को मजबूत करना चाहता है; और दूसरी, राजनीतिक और रणनीतिक उद्देश्य जिसके तहत वे भारत जैसी उभरती ताकत को चेतावनी देना चाहते हैं या माली में विदेशी निवेश को हतोत्साहित करना चाहते हैं. विदेशी नागरिकों को निशाना बनाकर आतंकवादी संगठन अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचते हैं और स्थानीय सरकारों पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं. इस अपहरण को भी ऐसे ही प्रयास का हिस्सा माना जा सकता है.

भारत सरकार की प्रतिक्रिया

भारत सरकार ने इस गंभीर घटना पर तत्काल प्रतिक्रिया दी है. विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि बमाको स्थित भारतीय दूतावास स्थानीय प्रशासन, पुलिस और फैक्ट्री प्रबंधन के साथ लगातार संपर्क में है. सरकार ने अपहृत भारतीयों के परिवारों को आश्वस्त किया है कि उनकी सुरक्षित रिहाई के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं. मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी स्थिति पर पैनी नजर बनाए हुए हैं. भारत-माली संबंध पिछले कुछ वर्षों में मजबूत हुए हैं और दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियां बढ़ी हैं. माली में भारतीयों की संख्या लगभग 400 के आसपास है और वे मुख्यतः व्यापार और उद्योग क्षेत्रों में कार्यरत हैं. इस अपहरण की घटना ने भारतीय समुदाय के बीच चिंता का माहौल पैदा कर दिया है.

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माली पिछले एक दशक से आतंकवाद और अस्थिरता का सामना कर रहा है. 2012 में शुरू हुए विद्रोह के बाद से देश में अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूहों ने पैर जमाए हैं. फ्रांस ने 2013 में माली में सैन्य हस्तक्षेप कर आतंकवाद के खिलाफ अभियान शुरू किया था, जिसमें हजारों सैनिकों की तैनाती की गई. इसके बावजूद माली के कई हिस्से अब भी आतंकियों के प्रभाव में हैं. JNIM जैसे संगठनों की गतिविधियां माली में लगातार बढ़ रही हैं और वे विदेशी नागरिकों, स्थानीय प्रशासन और सेना को निशाना बनाते रहते हैं. यह अपहरण उसी कड़ी का हिस्सा हो सकता है, जो क्षेत्र में शांति स्थापित करने के प्रयासों को एक बार फिर कठिन बना रहा है. इस घटना ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि साहेल क्षेत्र में आतंकवाद से निपटने के लिए और अधिक समन्वित प्रयासों की जरूरत है, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके.

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