Kankhajura Web Series Review :रोशन मैथ्यू के पावरफुल परफॉरमेंस से यह कनखजूरा दिमाग में कर जाता है घर
वेब सीरीज – कनखजूरा
निर्माता – अजय राय
निर्देशक -चन्दन अरोड़ा
कलाकार -रोशन मैथ्यू ,मोहित रैना, सारा जेन डायस,महेश शेट्टी, उषा नाडकर्णी,निनाद कामत, त्रिनेत्रा हलधर और अन्य
प्लेटफार्म -सोनी लिव
रेटिंग – तीन
kankhajura web series review :कनखजूरा के बारे में यह बात लोकप्रिय है कि यह कमजोर सा दिखने वाला जीव अगर कान में घुसा तो वह दिमाग को खत्म कर देगा. सोनी लिव की हालिया रिलीज हुई वेब सीरीज भी कनखजूरा की कहानी है,लेकिन इंसानी कनखजूरे की. जो किसी भी इंसान के दिमाग को मैनिपुलेट कर सकता है. यह सायकोलॉजिकल थ्रिलर सिर्फ कांसेप्ट में ही नहीं बल्कि अच्छे लेखन,सधे हुए निर्देशन और कलाकारों के सशक्त अभिनय (खासकर रोशन मैथ्यू )से एक एंगेजिंग ड्रामा बन गयी है. जिसे एक बार देखना बनता है.
विश्वासघात की है कहानी
कहानी की शुरुआत आशु (रोशन मैथ्यू )के जेल से छूटने से होती है. अगले ही पल उसका भाई मैक्स (मोहित रैना )उसे लेने के लिए आता है और अपने घर लेकर आता है. जहाँ पर पार्टी चल रही है. मैक्स की पत्नी (सारा ) दो दोस्त शार्दुल (महेश शेट्टी )और पेट्रो (निनाद कामत) उसका इंतजार कर रहे हैं.इस पार्टी के दौरान मैक्स आशु को बताता है कि वह बहुत बड़ा बिल्डर बन चुका है और गोवा में उसका एक बहुत बड़ा ड्रीम प्रोजेक्ट शुरू होने वाला है. आशु भी अपने भाई के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने में उसका साथ देना चाहता है लेकिन मैक्स ना सिर्फ प्रोजेक्ट बल्कि आशु को अपनी पत्नी और बेटी से भी दूर रहने को कहता है। इसके पीछे की वजह क्या है. क्या आशु का अतीत इसके लिए जिम्मेदार है या फिर आशु के उस अतीत के लिए मैक्स जिम्मेदार है.आशु बदला लेने आया है या सब मैक्स की साजिश है. यही इस सीरीज की कहानी है.
सीरीज की खूबियां और खामियां
यह इस्राइली शो मैग पाई का हिंदी अडॉप्टेशन है.आठ एपिसोड की इस कहानी को ब्लैक ,वाइट और ग्रे ट्रीटमेंट के साथ दिखाया है. यह शुरुआत से ही आपको बाँध लेती है क्योंकि आशु का दिलचस्प किरदार पहले ही एपिसोड में कनखजूरे के ढेर सारे पैर की तरह अपने किरदार से जुड़े ढेर सारे शेड्स दिखा देता है. कहानी धीरे -धीरे आगे बढ़ती है और रोमांच को भी धीरे -धीरे बढ़ाती जाती है. फिल्म रिश्तों की परते खोलते हुए विश्वासघात को सामने लेकर आती है.फिल्म बुली के विषय के साथ साथ ट्रांसजेंडर की भी कहानी को छूती है. फिल्म में कोई भी किरदार ब्लैक या वाइट नहीं है बल्कि सभी ग्रे है. जो इस सायकोलॉजिकल सीरीज को और खास बना गया है.स्क्रीनप्ले में खामियां भी रह गयी हैं. आशु के किरदार को बिल्डअप करने में लेखन टीम ने बाकी के किरदारों को उतनी मजबूती नहीं दी है, मैक्स के किरदार ने आशु का इस्तेमाल 14 साल पहले खुद को बचाने के लिए किया था.ऐसे में स्क्रीनप्ले में उस सीक्वेंस को दर्शाना थोड़ा अजीब लगता है. जब मैक्स उस पत्थर को ढूंढने जाता है ,जिसमें पत्त्थर पर उसके दोस्तों के साथ वह आशु के नाम की भी होने की बात कर रहा था. मैक्स अपने दोस्तों के साथ मिलकर आशु की बुली करता था. यह बात वह क्यों भूल गया था. इसे स्क्रीनप्ले में दर्शाने की जरुरत थी. कहानी शुरुआत में बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है,लेकिन सातवें एपिसोड के बाद सबकुछ जल्दीबाजी में समेटने की कोशिश लगती है.आशु के जेल जाने वाले प्रसंग को बहुत ही हलके अंदाज में पेश किया गया है,जबकि कहानी का वह मूल आधार था. शुरुआत से उस घटना को बहुत बिल्डअप दिया गया था, लेकिन सीन में वह उस तरह से नहीं आ पाया है,निर्देशक चन्दन अरोरा ने एक अरसे बाद निर्देशन में वापसी की है और अच्छी बात ये है कि उन्होंने अपनी काबिलयत को बखूबी दर्शाया है. सीरीज की सिनेमेटोग्राफी की भी तारीफ बनती है. कहानी का आधार गोवा है और गोवा मतलब समुन्द्र, बीच,फिरंगी लेकिन सीरीज अलग ही गलियों और रास्तों में घूमती है. सीरीज का संवाद कहानी के साथ न्याय करता है.
रोशन मैथ्यू का पावरफुल परफॉरमेंस
रोशन मैथ्यू शानदार रहे हैं. मक्कारी और मासूमियत दोनों को उन्होंने अपने अभिनय में कुछ इस कदर बैलेंस किया है कि आपको पता है कि इस किरदार पर भरोसा नहीं करना है लेकिन इसके बावजूद आपके दिमाग में यह चलता रहता है कि अब ये किसका दिमाग मैनिपुलेट करने वाला है. इसका अगला शिकार कौन और कैसे होगा।मैक्स की ग्रे भूमिका में मोहित रैना ने भी अपनी छाप छोड़ी है. महेश शेट्टी और निनाद भी अच्छे रहे हैं.सारा, उषा नाडकर्णी ,त्रिनेत्रा सहित बाकी के कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है.