Operation Sindoor: भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान को गहरा जख्म दिया है. भारतीय सेना ने अपनी सीमा में रहते हुए पड़ोसी देश पर टारगेट कर हमला किया और कई आतंकवादी ठिकानों को तबाह कर दिया है. भारत के हमले में जैश-ए-मोहम्मद के हेडक्वार्टर को भारी नुकसान हुआ है. खबर है कि भारत ने जैश के हेडक्वार्टर पर सबसे ज्यादा शक्तिशाली हथियार से हमला किया था. जिससे आतंकी ठिकाना धुंआ-धुंआ हो गया.
भारत के एयर स्ट्राइक में यूसुफ अजहर समेत 5 आतंकवादी ढेर
यूसुफ अजहर आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के बहावलपुर स्थित मुख्यालय पर किए गए भारत के हवाई हमले में मारे गए पांच आतंकवादियों में से एक था. 1999 में विमान (उड़ान आईसी-814) के अपहरण के जिम्मेदार मुख्य षड्यंत्रकर्ताओं में शामिल यूसुफ इस आतंकी संगठन के प्रमुख मसूद अजहर का बहनोई था. अधिकारियों ने बताया कि यूसुफ (करीब 50 वर्ष) 1998 में अपहरण से एक वर्ष पहले उस फर्जी पासपोर्ट के आधार पर भारत में घुसा था जिसकी व्यवस्था उसके सहयोगी अब्दुल लतीफ ने की थी. यूसुफ के खिलाफ इंटरपोल का रेड नोटिस जारी था. वर्ष 2002 में भारत ने उसका नाम पाकिस्तान को वांछित आतंकवादी के रूप में सौंप दिया.
लश्कर-ए-तैयबा के ठिकाने पर भी भारत ने किया था हमला
जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के बहावलपुर मदरसे को भारतीय हमलों से कई दिन पहले खाली करा दिया गया था. यह हमला 7 मई की सुबह पहलगाम में आतंकी हमले के प्रतिशोध में किया गया था जिसमें 26 लोगों की हत्या कर दी गई थी. यूसुफ अजहर उन पांच शीर्ष आतंकवादियों में शामिल था जिनकी हमलों में मौत हो गई. इस हमले में मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा के ठिकाने को भी निशाना बनाया गया. अन्य मारे गए आतंकियों की पहचान मुदस्सर खादियान खास उर्फ अबू जुंदाल और खालिद उर्फ अबू अकाशा (लश्कर-ए-तैयबा), हाफिज मुहम्मद जमील और मोहम्मद हसन खान (जेईएम) के रूप में हुई. मसूद अजहर ने स्वीकार किया है कि बहावलपुर में संगठन के मुख्यालय पर हुए मिसाइल हमले में उसके परिवार के 10 सदस्य और चार करीबी सहयोगी मारे गए.
24 दिसंबर 1999 को काठमांडू से दिल्ली जा रहे विमान को किया गया था हाईजैक
24 दिसंबर 1999 को काठमांडू से दिल्ली जा रहे विमान (आईसी-814 उड़ान) को, पांच पाकिस्तानी आतंकवादियों (अतहर, शाहिद अख्तर सईद, सनी अहमद काजी, मिस्त्री जहूर इब्राहिम और शाकिर) ने अपहरण कर लिया था. इस विमान में 179 यात्री और 11 चालक दल के सदस्य सवार थे. अमृतसर, लाहौर और अबू धाबी में कुछ देर रुकने के बाद इसे कंधार ले जाया गया, जहां इसे 31 दिसंबर 1999 तक रखा गया.