Cabinet:पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. हमले के बाद प्रधानमंत्री ने सख्त से सख्त कार्रवाई करने की बात कही है. इसे लेकर दिल्ली में उच्च-स्तरीय बैठकों का दौर जारी है. पाकिस्तान के साथ तनाव के बीच बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स (सीसीपीए) में राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया गया. कांग्रेस समेत कई क्षेत्रीय दल जातिगत जनगणना की कराने की मांग करते रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दलों की ओर से जातिगत जनगणना को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की गयी थी.
विपक्षी दल आरोप लगा रहे थे कि केंद्र सरकार जानबूझकर जातिगत जनगणना कराने से बच रही है. ऐसे में बिहार चुनाव से पहले केंद्र सरकार के जातिगत जनगणना के फैसले को मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक माना जा सकता है. कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि सामाजिक ताने-बाने को देखते हुए संविधान के दायरे में रहकर केंद्र सरकार ने यह फैसला लिया है. देश में वर्ष 1947 से जाति जनगणना नहीं की गई.
कांग्रेस सरकार के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जाति जनगणना की बात कही थी, लेकिन कभी इस पर अमल नहीं किया. सत्ता में रहते हुए कांग्रेस जातिगत जनगणना का विरोध करती रही, लेकिन सत्ता से बाहर होने के बाद राजनीतिक फायदे के लिए कांग्रेस और उसके सहयोगी दल जाति जनगणना की बात कर रहे हैं.
बिहार चुनाव में एनडीए को मिल सकता है फायदा
बिहार में राजनीतिक तौर पर जाति की राजनीति हावी रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ रहते हुए राज्य में जातिगत सर्वे कराने का काम किया. सर्वे के आधार पर पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया गया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी पिछले लोकसभा चुनाव से आक्रामक तरीके से जातिगत जनगणना की बात कराने का वादा करते रहे हैं. कांग्रेस के साथ ही राजद, सपा और अन्य विपक्षी पार्टी भी जातिगत जनगणना के मामले पर मोदी सरकार पर लगातार निशाना साध रहे थे. ऐसे में मोदी सरकार ने पहलगाम हमले के बाद उपजे हालात में जातिगत जनगणना कराने का फैसला लेकर विपक्ष के प्रमुख मुद्दे की धार को कमजोर कर दिया है. देश में पहलगाम हमले के बाद राष्ट्रवाद की नयी बयार बह रही है.
पाकिस्तान के खिलाफ संभावित फैसले के बीच जातिगत जनगणना का फैसला लेकर मोदी सरकार ने कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के प्रमुख हथियार की धार को कुंद कर दिया है. इसका राजनीतिक फायदा भाजपा और सहयोगी दलों को बिहार चुनाव में मिलना तय है. जदयू और भाजपा आम लोगों को यह बताने की कोशिश करेंगे कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की केंद्र सरकार ने कभी भी जातिगत जनगणना की मांग को गंभीरता से उठाने का काम नहीं किया. सिर्फ भाजपा और सहयोगी दल ही पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं. केंद्र के इस फैसले से बिहार में राजद की स्थिति जाति के मुद्दे पर कमजोर होगी. भाजपा सरकार ने यह फैसला ऐसे समय लिया है, जब विपक्षी दलों के पास सरकार के फैसले का समर्थन करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है.