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नर्सों ने की वैवाहिक स्थानांतरण संबंधी नीति की मांग, दिल्ली हाईकोर्ट ने एम्स और केंद्र से मांगा जवाब



Spousal Transfer of Nurses: केंद्र सरकार के अस्पतालों में काम करने वाली नर्सों ने आईएएस अधिकारियों की तरह पति-पत्नी का एक ही शहर में ट्रांसफर करने की मांग की है. इनका कहकना है कि कार्मिक विभाग ने ऐसा नियम बना रखा है, लेकिन नर्सों के मामले में इसे लागू नहीं किया जाता. इसलिए स्वास्थ्य विभाग को वैवाहिक स्थानांतरण संबंधी नीति बनानी चाहिए. दिल्ली हाईकोर्ट में इस विषय पर जोरदार बहस के बाद जस्टिस सचिन दत्ता ने केंद्र सरकार के साथ-साथ एम्स दिल्ली, एम्स भोपाल, एम्स भुवनेश्वर, एम्स पटना और अन्य एम्स को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.
नर्स संघों की ओर से दायर याचिका में वकील ने कहा है कि इस नीति का नहीं होना, महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण है. अदालत के समक्ष अखिल भारतीय सरकारी नर्स फेडरेशन, नर्सिंग प्रोफेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन, एम्स ऋषिकेश, एम्स पटना नर्स यूनियन और मंगलागिरि एम्स नर्सिंग ऑफिसर्स एसोसिएशन ने याचिका की ओर से यह याचिका दाखिल की गयी है.

नर्सों के परिवार के अधिकार से संबंधित है याचिका – वकील

याचिकाकर्ताओं की ओर से दिल्ली हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील विभा दत्ता मखीजा ने दलीलें पेश की. उन्होंने कहा कि याचिकाएं ‘नर्सों के परिवार’ के अधिकार से संबंधित हैं और वैवाहिक आधार पर स्थानांतरण के मुद्दे पर एक ‘शून्यता’ है, क्योंकि स्वास्थ्य संस्थानों के कर्मचारियों के ऐसे स्थानांतरण के लिए फिलहाल कोई नियम नहीं है.

नर्स यूनियनों के वकीलों ने की ट्रांसफर नीति की मांग

याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट सत्य सभरवाल और पलक बिश्नोई ने भी अपनी दलीलें रखीं. उन्होंने कहा कि दो एम्स अस्पतालों के बीच, एम्स और राष्ट्रीय महत्व के अन्य संस्थानों, एम्स और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन किसी भी संस्थान तथा एम्स और राज्य सरकार के अधीन किसी भी संस्थान में ट्रांसफर की नीति की मांग की जा रही है.

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वकील का दावा- महिलाओं से अप्रत्यक्ष तौर पर हुआ भेदभाव

याचिका में यह भी कहा गया है कि एम्स में वैवाहिक आधार पर स्थानांतरण नीति के नहीं होने की वजह से ‘महिलाओं के साथ अप्रत्यक्ष तौर पर भेदभाव’ हुआ, जिन्हें ‘परिवार की प्राथमिक देखभालकर्ता’ होने के कारण अपने रोजगार के अवसरों को छोड़ना पड़ा और इसलिए यह अवैध है. यह भी कहा कि यह अनुच्छेद 14 के तहत गैर-भेदभाव की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन भी है. याचिका में कहा गया कि यह संविधान के अनुच्छेद 16 और 15 के तहत समान अवसर और लैंगिक समानता का भी उल्लंघन है. मामले की अगली सुनवाई अब 30 जुलाई को होगी.

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