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एक मौका दो, मिलकर घटाएं घाटा, चीन की भारत से अपील



Trade Deficit:अमेरिका द्वारा चीनी उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाए जाने के बाद चीन ने अब भारत के साथ अपने संबंधों को सुधारने और व्यापारिक संतुलन कायम करने की दिशा में कदम बढ़ाया है. चीन ने भारत को आश्वस्त किया है कि वह द्विपक्षीय व्यापार घाटा कम करने में पूरी मदद करेगा. गौरतलब है कि हालिया आंकड़ों के अनुसार भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया है, जो 99.2 अरब डॉलर को पार कर गया है. इस स्थिति को देखते हुए चीन ने भारत के साथ ‘विन-विन’ यानी परस्पर लाभकारी व्यापारिक संबंध स्थापित करने की इच्छा जताई है.

चीन के भारत में नवनियुक्त राजदूत शू फेइहोंग ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए अपने पहले साक्षात्कार में कहा कि चीन भारत के साथ पारस्परिक लाभ वाले संबंधों को महत्व देता है. उन्होंने स्पष्ट किया कि चीन ने जानबूझकर व्यापार अधिशेष नहीं बढ़ाया, बल्कि यह बाजार की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का परिणाम है. उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 2024 में भारत से चीन को कुछ प्रमुख वस्तुओं के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. उदाहरणस्वरूप, मिर्च के निर्यात में 17%, लौह अयस्क के निर्यात में 160% और कॉटन यार्न के निर्यात में 240% की बढ़ोतरी दर्ज की गई.

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शू फेइहोंग ने बताया कि चीन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है और यहां का मध्यम वर्ग अत्यंत विशाल है. यह भारतीय उत्पादों और कंपनियों के लिए एक बड़ा अवसर है. उन्होंने भारतीय उद्यमियों से आग्रह किया कि वे चीन इंटरनेशनल इम्पोर्ट एक्सपो (CIIE), चाइना-साउथ एशिया एक्सपो और चाइना इंटरनेशनल कंज्यूमर प्रोडक्ट्स एक्सपो (CICPE) जैसे वैश्विक मंचों का लाभ उठाएं, जिससे उन्हें चीनी बाजार की मांगों को समझने और वहां स्थापित होने में सहायता मिल सके.

चीन ने भारत से यह अपेक्षा भी की है कि वह चीनी कंपनियों को निष्पक्ष, पारदर्शी और गैर-भेदभावपूर्ण कारोबारी माहौल प्रदान करे. शू फेइहोंग का मानना है कि दोनों देशों के बीच यदि विश्वास और सहयोग की भावना बनी रहे, तो आर्थिक संबंध नई ऊंचाइयों तक पहुंच सकते हैं और दोनों देशों के नागरिकों को वास्तविक लाभ मिल सकता है.

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भारत की ओर से चीनी कंपनियों के खिलाफ कुछ नीतियों और रुखों पर उठते सवालों के जवाब में राजदूत ने यह स्पष्ट किया कि चीन ने कभी भी भारतीय कंपनियों पर निर्यात नियंत्रण या प्रतिबंध नहीं लगाए हैं. उन्होंने उल्टा आरोप लगाया कि भारत में काम कर रही चीनी कंपनियों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, जैसे वीजा प्रक्रिया में जटिलता और निवेश को लेकर नकारात्मक माहौल. उन्होंने कहा कि मीडिया में चीनी निवेश को लेकर कई बार विरोध के सुर सुनाई देते हैं, जिससे कारोबार में बाधा उत्पन्न होती है.

राजदूत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान का समर्थन किया कि प्रतिस्पर्धा को संघर्ष में तब्दील नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि संवाद ही किसी भी स्थायी संबंध की आधारशिला होता है और चीन भारत के साथ संवाद व सहयोग पर आधारित मजबूत रिश्ते बनाना चाहता है. उन्होंने यह भी बताया कि आगामी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में चीन प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत करने को तैयार है.

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भारत-चीन सीमा विवाद पर भी राजदूत ने अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि दोनों देशों ने सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने की दिशा में रचनात्मक प्रयास किए हैं. वर्ष 2024 में हुई 23वीं विशेष प्रतिनिधि बैठक में भी इस बात पर जोर दिया गया था कि सीमा प्रबंधन को और प्रभावी और समन्वित किया जाए. शू ने कहा कि दोनों देशों को समान विचार-विमर्श और आपसी सुरक्षा के सिद्धांतों को अपनाते हुए सीमा संबंधी नियमों को और स्पष्ट बनाना चाहिए.

चीन की यह कूटनीतिक पहल ऐसे समय पर आई है जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापार तनाव चरम पर है. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीनी उत्पादों पर 200% से अधिक टैरिफ लगाने की घोषणा की है. इसके परिणामस्वरूप चीन नए व्यापारिक साझेदारों की तलाश में है और भारत इस रणनीति में प्रमुख भूमिका निभा सकता है.

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हालांकि विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि इससे भारत में चीनी वस्तुओं का आयात बढ़ सकता है, जिससे देश के घरेलू उद्योगों को खतरा हो सकता है. इसी वजह से भारत सरकार ने सस्ते आयात की निगरानी के लिए एक विशेष इकाई बनाने की योजना बनाई है और उन फर्मों को चेतावनी दी है जो अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए चीन को ‘बैक डोर’ एक्सेस दे सकती हैं.

भारत पहले से ही चीन के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने की दिशा में काम कर रहा है. भारत ने फार्मास्यूटिकल्स, आईटी, कृषि उत्पादों, और अन्य क्षेत्रों में चीनी बाजार में अधिक पहुंच की मांग की है. विशेषज्ञों की राय में भारत को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं (PLI स्कीम्स) को मजबूत करने और वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाओं के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है. वियतनाम, दक्षिण कोरिया और ताइवान जैसे देशों के साथ सहयोग को बढ़ाकर भारत चीनी निर्भरता को कम कर सकता है.

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संक्षेप में, चीन की यह कूटनीतिक पहल एक रणनीतिक बदलाव को दर्शाती है, जो न केवल व्यापार घाटा कम करने की दिशा में है, बल्कि दोनों देशों के संबंधों को एक नई दिशा देने की संभावनाओं से भी जुड़ी है. अब यह भारत की रणनीतिक चतुराई पर निर्भर करता है कि वह इस मौके को किस तरह से अपने हित में बदलता है.