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शिक्षा और आदिवासी संस्कृति के संरक्षण को समर्पित था डॉ रोज का जीवन


Dr Rose Kerketta News| 85 वर्षीय डॉ रोज केरकेट्टा शिक्षाविद् के साथ-साथ झारखंड आंदोलनकारी व महिला मानवाधिकारकर्मी भी रही थीं. डॉ केरकेट्टा ने शिक्षा, भाषा प्रचार-प्रसार, और आदिवासी संस्कृति के संरक्षण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था. वह आदिवासी आंदोलन और झारखंड व भारत के अनेक जनांदोलनों में सक्रिय रहीं, विशेष रूप से आदिवासी भाषा, साहित्य, संस्कृति और महिला अधिकारों के मुद्दों पर. उन्होंने देश-विदेश में इन विषयों पर यात्राएं कीं और व्याख्यान दिये. अस्वस्थ होने से पहले तक वे ‘आधी दुनिया’ पत्रिका का संपादन करती रहीं. डॉ केरकेट्टा डॉ रामदयाल मुंडा की पीढ़ी की एकमात्र महिला विदूषी और झारखंड आंदोलनकारी थीं, जिन्होंने समाज को हर क्षेत्र में नेतृत्व प्रदान किया.

अपने ही राज्य में रोज को झेलनी पड़ी उपेक्षा

कम आबादी वाले खड़िया समुदाय से होने के कारण उन्हें अपने गृहराज्य में सरकारी उपेक्षा का सामना करना पड़ा. फिर भी, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें अपार सम्मान और स्नेह मिला. वे सबकी प्रिय ‘रोज दी’ थीं. डॉ रोज केरकेट्टा बहुप्रकाशित लेखिका भी थीं. उनके तीन प्रमुख कहानी संग्रह ‘पगहा जोरी-जोरी रे घाटो’, ‘बिरुवार गमछा तथा अन्य कहानियां’ और ‘रोज केरकेट्टाः प्रतिनिधि कहानियां’हैं. इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक शोधग्रंथ, अनुवाद, खड़िया कविता-संग्रह, लोककथा, नाटक, जीवनी और गद्य-पद्य संग्रह प्रकाशित किये.

चिर निद्रा में लीन रोज केरकेट्टा. पोटो प्रभात खबर

गोस्सनर कॉलेज के शिक्षक व खड़िया समाज के प्रवक्ता डॉ यौत्तम कुल्लू ने कहा है कि डॉ केरकेट्टा का झारखंड राज्य के साहित्यिक जगत में बहुमूल्य योगदान रहा है. उनका सामाजिक, नैतिक, राजनीतिक शैक्षणिक, योगदान के लिए खड़िया समाज और राज्य ॠणी रहेगा.

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गोस्सनर कॉलेज के कुड़ुख विषय के शिक्षक हेमंत कुमार टोप्पो ने कहा है कि डॉ केरकेट्टा का जाना समाज के लिए अपूरणीय क्षति है. इन्होंने अपनी लेखनी द्वारा समाज को जगाने का काम किया है.

फिल्म निर्माता मेघनाथ ने कहा कि मेरी दो दीदी हैं, जिनमें से एक को मैंने खो दिया है. रोज दी का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है. वे एक ऐसे परिवार से आती थीं, जिन्होंने झारखंड निर्माण में अहम भूमिका निभायी.

सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने कहा कि वो हमारे संघर्ष की साथी थीं. उन्होंने महिलाओं को सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से संघर्ष करना सिखाया. उन्होंने महिलाओं को बताया कि वह किस रास्ते पर चल कर अपना अधिकार प्राप्त कर सकती हैं.

साहित्यकार रणेंद्र ने कहा कि रांची आने के बाद मैंने जिन विद्वानों से बहुत कुछ सीखा है, उनमें रामदयाल बाबा के बाद रोज दी ही हैं. वह बहुत ही विनम्र और विदुषी महिला थीं. उन्होंने हिंदी व खड़िया के बीच पुल का काम किया.

वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवास ने कहा कि वे सिर्फ विदुषी ही नहीं, बल्कि संवेदनशील महिला भी थीं. उन्होंने न सिर्फ आदिवासी महिलाओं बल्कि सभी महिला समाज के अधिकारों के लिए अपनी आवाज उठायी.

सामाजिक कार्यकर्ता रतन तिर्की ने कहा कि रोज दी ने झारखंडी भाषा साहित्य को स्थापित करने के लिए काफी मेहनत की. खड़िया को झारखंड की प्रमुख भाषाओं की श्रेणी में स्थापित करने के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया. मैं भी उनके साथ इस संघर्ष में शामिल था. उनके साथ मेरे वैचारिक मतभेद भी थे, इसके बावजूद उन्होंने हमेशा उदारता दिखायी.

रंगकर्मी महादेव टोप्पो ने कहा कि रोज दी ने झारखंडी समाज, यहां की भाषा और संस्कृति को संजोकर रखने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किये. झारखंड आंदोलन के बौद्धिक मोर्चा की वह मुखर महिला सदस्य थीं.

सामाजिक कार्यकर्ता मालंच घोष ने कहा कि अब रोज दी नहीं हैं, लेकिन हम उन्हें हर पल याद करेंगे. वह हमारी आदर्श थीं. हमने काफी समय उनके साथ काम किया. वे एक बेहतरीन लेखिका और महिला अधिकारों के लिए सजग महिला थीं.

रांची विवि टीआरएल के शिक्षक डॉ वीरेंद्र कुमार महतो ने कहा कि डॉ रोज केरकेट्टा का जाना हम सभी झारखंडी भाषा-भाषियों के लिए अपूरणीय क्षति है. इसकी भरपाई कर पाना कतई संभव नहीं है. आदिवासी भाषा साहित्य, संस्कृति और स्त्री सवालों को डॉ केरकेट्टा ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रमुखता के साथ उठाया.

कोल्हान विवि की शिक्षिका डॉ मीनाक्षी मुंडा ने कहा कि डॉ रोज आदिवासी महिला सशक्तीकरण की अग्रदूत व प्रेरणा थीं. उन्होंने बहुत ही सरल स्वभाव, मृदुभाषी के साथ-साथ व्यक्तिगत, सामूहिक एवं संस्थागत स्तर पर कार्य करते हुए न केवल झारखंड, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करायी. उन्होंने झारखंड नेशनल एलायंस ऑफ वीमेन, जुड़ाव (मधुपुर), बिरसा (चाईबासा), आदिम जाति सेवा मंडल और झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा जैसे कई संस्थानों से जुड़कर आदिवासी समुदाय विशेषकर महिलाओं के लिए काम किया.

रांची विवि टीआरएल के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ हरि उरांव ने कहा कि जनजातीय भाषा खड़िया और हिंदी की विदुषी डॉ रोज केरकेट्टा के निधन से मर्माहत हूं. मुझे हमेशा उनका सानिध्य प्राप्त होता रहा. वह आदिवासी और महिलाओं के मुद्दे पर हमेशा मुखर रहीं.

डॉ रोज केरकेट्टा की प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें

खड़िया लोक कथाओं का साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन, प्रेमचंदाओं लुडकोय (प्रेमचंद की कहानियों का खड़िया अनुवाद), सिंकोय सुलोओ, लोदरो सोमधि (खड़िया कहानी संग्रह), हेपड़ अवकवि बेर (खड़िया कविता एवं लोक कथा संग्रह), खड़िया निबंध संग्रह, खड़िया गद्य-पद्य संग्रह, जुझइर डांड़ (नाटक संग्रह), पगहा जोरी-जोरी रे घाटो (हिंदी कहानी संग्रह), सेंभो रो डकई (खड़िया लोकगाथा) खड़िया विश्वास के मंत्र, अबसिब मुरडअ (खड़िया कविताएं) एवं स्त्री महागाथा की महज एक पंक्ति (शीघ्र प्रकाश्य वैचारिक लेख संग्रह) हैं.

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