भागलपुर नगर पालिका को 15 अप्रैल, 1981 को प्रमोट कर भागलपुर नगर निगम बनाया गया था. इस तिथि से गणना करें, तो भागलपुर नगर निगम ने मंगलवार को 44 साल का सफर पूरा कर लिया, लेकिन इस गर्व से भरे दिन का किसी को याद तक नहीं रहा. कई बार निर्णय भी लिये गये कि भागलपुर नगर निगम का स्थापना दिवस मनाया जायेगा. लेकिन सारे निर्णय भुला दिये गये. कहीं कोई उत्साह नहीं. कहीं कोई कार्यक्रम नहीं. कहीं इस बात पर सामान्य विमर्श भी नहीं हुआ कि 44 वर्षों में हमने क्या खोया क्या पाया और आगे हमारी क्या योजना होगी इसे और बेहतर बनाने की.
स्थापना दिवस को लेकर हुई थीं दो बैठकें
पहली बैठक : मार्च 2016 में नगर निगम कार्यालय वेश्म में महापौर दीपक भुवानिया की अध्यक्षता में बैठक हुई थी. बैठक में नगर निगम के स्थापना दिवस पर आयोजन का निर्णय लिया गया था. तत्कालीन डिप्टी मेयर डॉ प्रीति शेखर, नगर आयुक्त अवनीश कुमार सिंह व निगम पार्षद ने स्थापना दिवस के मौके पर झांकियां, खेलकूल प्रतियोगिता, मंजूषा कला पेंटिंग आदि के आयोजन का निर्णय लिया गया था. इस बैठक में तत्कालीन पार्षद अमरकांत मंडल, संजय कुमार सिन्हा, मो मेराज, नीलकमल, आशीष कुमार, मो फखरे आलम, रंजन सिंह, पंकज कुमार, दिनेश तांती, प्रमिला देवी, मो सोइन अंसारी, महबूब आलम आदि उपस्थित हुए थे.
दूसरी बैठक
इस वर्ष 12 मार्च को निगम कार्यालय में सामान्य बोर्ड की बैठक हुई थी. बैठक में वार्ड पार्षद डॉ प्रीति शेखर ने अन्य कार्यक्रम मद से नगर निगम स्थापना दिवस मनाने का सुझाव दिया था और इसपर महापौर डॉ बसुंधरा लाल, नगर आयुक्त व सभी निगम पार्षदों ने नगर निगम स्थापना दिवस मनाने की स्वीकृति प्रदान की थी.
काफी पुराना नगर है भागलपुर
वर्ष 1887 में बरारी वाटर वर्क्स की स्थापना हुई थी. इसमें राजा शिवचंद्र बनर्जी ने बड़ी धनराशि से सहयोग किया था. महान स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर नारायण अग्रवाल भागलपुर नगरपालिका के दूसरे चेयरमैन थे
1811 में शुरू हुई थी होल्डिंग टैक्स की वसूली
30 सितंबर 1811 को भागलपुर में हाउस टैक्स (होल्डिंग टैक्स) वसूलने की शुरुआत की गयी. जब हाउस टैक्स वसूलने के लिए तहसीलदार आते, तो लोग अपने-अपने घरों के दरवाजे बंद कर लेते थे. एक शाम जब फ्रेडरिक हेमिल्टन अपनी घोड़ा गाड़ी से जा रहे थे, तो सड़क के दोनों किनारे हजारों लोग खड़े होकर टैक्स देने में असमर्थता जतायी. ब्रिटिश सरकार के अड़ियल रवैये को देखते हुए भागलपुर की जनता ने 21 अक्तूबर, 1811 को ईंट-पत्थर चला कर विरोध जताया. पथराव में कलक्टर के सर पर चोट लगी. बाद में मिलिट्री का सहारा लेकर ब्रिटिश सरकार ने उपद्रवियों को दबाया और टैक्स वसूला. इस घटना का उल्लेख इतिहास के शिक्षक डॉ रमन सिन्हा ने अपनी पुस्तक भागलपुर : अतीत एवं वर्तमान में (भागलपुर गजेटियर पृष्ठ 61 का हवाला देते हुए) किया है.
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