Defense: मौजूदा समय में साइबर, अंतरिक्ष और सूचना के जरिये युद्ध लड़ा जा रहा है. ऐसे में सेना को पारंपरिक अभियानों की तरह बदलते युद्ध के तरीके में भी सशक्त होना होगा. वैश्विक भू-राजनीति तीन प्रमुख मानदंडों द्वारा तय किया जा रहा है. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए तकनीक और इनोवेशन को अपनाना होगा. तमिलनाडु के वेलिंगटन में डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज (डीएसएससी) के 80वें स्टाफ कोर्स के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सशस्त्र बलों को तकनीकी तौर पर सशक्त बनाने की दिशा में काम कर रही है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अन्य उभरती हुई तकनीक युद्ध में क्रांति ला रही हैं. यूक्रेन-रूस संघर्ष में ड्रोन एक नए हथियार के तौर पर उभरा है. ड्रोन से सेना को काफी नुकसान उठाना पड़ा है. लो अर्थ ऑर्बिट में अंतरिक्ष क्षमताएं सैन्य खुफिया, निरंतर निगरानी, स्थिति निर्धारण, लक्ष्य निर्धारण और संचार को बदल रही हैं और इससे युद्ध का तरीका पूरी तरह बदल गया है.
वर्ष 1948 में स्थापित डीएसएससी तीनों सेनाओं का प्रशिक्षण संस्थान है जो भारतीय सशस्त्र बलों और मित्र देशों के चयनित मध्य-स्तर के अधिकारियों को व्यावसायिक शिक्षा मुहैया कराता है. पिछले कुछ सालों में 19000 से अधिक भारतीय अधिकारी और 2000 अंतर्राष्ट्रीय अधिकारी डीएसएससी से स्नातक हुए हैं, जिनमें से कई दुनिया भर में राष्ट्रों और सैन्य बलों के प्रमुख बने हैं.
हाइब्रिड युद्ध के लिए रहना होगा तैयार
रक्षा मंत्री ने कहा कि दुनिया ग्रे जोन और हाइब्रिड युद्ध के युग में है. साइबर हमले, दुष्प्रचार अभियान और आर्थिक युद्ध ऐसे साधन बन गए हैं, जिनसे एक भी गोली चलाए बिना राजनीतिक-सैन्य लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं. भारत को अपनी सीमाओं पर लगातार खतरों का सामना करना पड़ रहा है. पड़ोस से उत्पन्न छद्म युद्ध और आतंकवाद की चुनौती से यह और जटिल हो गया है.
उन्होंने प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन जैसे गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों के अलावा पश्चिम एशिया में संघर्ष और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक तनावों के समग्र सुरक्षा परिदृश्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर जोर देते हुए कहा कि भविष्य के युद्धों के लिए सक्षम और प्रासंगिक बने रहने के लिए सशस्त्र बलों के परिवर्तन को सख्ती से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है.
वर्ष 2047 तक विकसित भारत के लिए सुरक्षित भारत और सशक्त भारत का होना जरूरी है. दुनिया में चल रहे संघर्षों से सबक लेते हुए हमें एक सुदृढ़, स्वदेशी और भविष्य के लिए तैयार रक्षा प्रौद्योगिकी और विनिर्माण इकोसिस्टम का निर्माण करना जरूरी है. यह एक विकल्प नहीं है, बल्कि रणनीतिक आवश्यकता है. कम लागत वाले उच्च तकनीक समाधान विकसित करने और सशस्त्र बलों की युद्ध क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी. भारतीय सेना को न केवल तकनीकी परिवर्तनों के साथ समन्वय रखना चाहिए, बल्कि इसका नेतृत्व भी करना चाहिए.